पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८२९

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दि J- इन्द्र-क्या तुम नहीं जानती कि यहाँ अपने भी पराए होकर दुख दने के लिए तैयार हो जाते हैं ? भैरो-(कमलिनी से ) आपने खयाल किया या नहीं? यह मेरी पूजा हो रही है। कम-होनी ही चाहिये आप इसी योग्य है । (इन्द्रजीतसिहसे भगर आप मुझ लौंडी पर किसी तरह का शक न करें। यदि आप यह समझते हों कि मैं वास्तव में कमलिनी नहीं हू तो मै बहुत सी बातें उस जमाने की आपको याद दिलाकर अपने पर विश्वास करा सकती हु जिस जमान में आप तालाव वाले तिलिस्मी मकान में मरे साथ रहते थे। (उस समय की दो-तीन गुप्त बातों का इशारा करके) कहिए अब भी मुझ पर शक है ? इन्द्र-(बनावटी मुस्कुराहट के साथ) नहीं अब तुम पर शक तो किसी तरह का नहीं है मगर रज जरूर है। कम-रज ! सो किस बात का? इन्द्र-इस बात का कि यहा आने पर तुमने जान बूझ के अपने को मुझसे छिपाया और मुझे तरदुद में डाला । कम (हसकर और कुमार का हाथ पकड के) अच्छा आप यहा से उठिये और उस कमरे में चलिए तो मै आपकी सब बातों का जवाब दूगी! आप तो जरा सी बातों में रज हो जाते हैं। अगर आपके साथ किसी तरह का मसखरापन किया या हम लोगों को आपसे मिलने नहीं दिया तो आपकी भावज साहेबा ने अस्तु आपकी ऐसी बातों का जवाब भी वे ही देंगी और उनसे भी उसी कमरे में मुलाकात होगी। इन्द-मेरी मावज साहेबा । सो कोन, क्या लक्ष्मीदेवी? कम-जी हाँ वे उसी कमरे में बैठी आपका इन्तजार कर रही है चलिए। इन्द्र-हाँ उनसे तो मैं जरुर मिलूगा। जब से मैंने यह सुना है कि तारा वास्तव में लक्ष्मीदेवी है 'तभी से मै उनसे मिलने के लिए बेताय हो रहा है । यह कहकर इन्द्रजीतसिह उठ खडे हुए और अपने सूखे हुए कपडे पहिर कर कमलिनी के साथ उसी कमरे की तरफ चले जिसमें पहिले भी कई दफे आराम कर चुके थे। उनके पीछे-पीछे आनन्दसिह और भैरोसिह भी गए। इस समय कमलिनी मामूली ढग में न थी बल्कि बेशकीमत पोशाक और गहनों से अपने को सजाए हुए थी। एक तो यो ही किशोरी के मुकाबिले की खूबसूरत और हसीन थी तिस पर इस समय की बनावट और श्रृंगार ने उसे और भी उभाड रक्खा था। यद्यपि आज उससे मिलने के पहिले कुमारतरह-तरह की बातें सोच रहे थे और इन्द्रानी तथा आनन्दी वाले मामले से शर्मिन्दा होकर जल्दी उससे मिलना नहीं चाहते थे मगर जब सामने आकर खड़ी हो गई तो सब बातें एक तरह पर थोड़ी देर के लिए भूल गये और खुशी-खुशी उसके साथ चलकर उस कमरे में जा पहुचे। इस कमरे का दर्वाजा मामूली ढग पर बन्द था जो कमलिनी के धक्का देने से खुल गया और ज्यादे सेशनी के सबब भीतर के जगमगाते हुए सामान तथा कई औरतों पर दोनों कुमारों की निगाह पड़ी जो उन्हें देखते ही उठ खडी हुई और जिन में से एक को छोड बाकी की सभी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह को और कई ने आनन्दसिह को भी प्रणाम किया। वह औरत जिसने कुमार को सलाम नहीं किया लक्ष्मीदेवी थी और वह राजा गोपालसिह की जुबानी सुन चुकी थी कि दोनों कुमार उनके छोटे भाई है अस्तु दोनों कुमारों ने स्वय लक्ष्मी देवी को सलाम किया और उनकी पिछली अवस्था यर अफसोस करके पुन जमानिया की रानी बनने पर प्रसन्नता के साथ मुबारकवाद देने बाद और विषयों में भी देर तक उससे बातें करते रहे। इसके बाद किशोरी, कामिनी इत्यादि से बातचीत की नौरत पहुची। किशोरी और इन्द्रजीतसिह में तथा कामिनी और आनन्दसिह में सच्ची और बढी-चढी मुहब्बत थी परन्तु धर्म लज्जा और सभ्यता का पल्ला भी उन लोगों ने मजबूती के साथ पकडा हुआ था, इसलिए यद्यपि यहा पर कोई बडी बुढी औरत मौजूद न थी जिससे विशेष लज्जा करनी पडती तथापि इन चारों ने इस समय बनिस्बतनुवान के विशेष करके आखों के इशारों तथा भावों ही में अपने दुख दर्द और जुदाई के सदमे को झलका कर उपस्थित अवस्था तथा इस अनोखे मेल मिलाप पर प्रसन्नता प्रकट की। कमलिनी लाडिली कमला सर्दू और इन्दिरा आदि से भी कुशल क्षेम पूछने बाद इन लोगों में यों बातें होने लगी इन्द्र-(लक्ष्मीदेवी से ) आपको इस बात की शिकायत तो जरूर होगी कि आपको हद से ज्यादे दुख भोगना पडा मगर यह जानकर आप अपना दु ख जरुर भूल गई होंगी कि भाई साहब ने कम्बख्त मायारानी की बदौलत जो कुछ कष्ट भोगा उसे भी कोई साधारण मनुष्य सहन नहीं कर सकता। लक्ष्मीदेवी नि सन्देह ऐसा ही है क्योंकि मुझे तो किसी न किसी तरह आजादी की हवा मिल भी रही थी मगर उन्हें अधेरी कोठरी में जिस तरह रहना पड़ा वैसा ईश्वर न करे किसी दुश्मन को भी नसीब हो। इन्द-(मुस्कुराकर ) मगर मैंने तो सुना था कि आप उनसे नाराज हो गईहैऔर जमानिया जाने में कम (हस कर) ये बनिस्बत उनके जिन्न को ज्यादे पसन्द करती थीं। लक्ष्मी-वास्तव में उन्होंने बडा भारी धोखा दिया था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८२१