पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८३

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lart लगभग आध कोस के जाने बाद उन्हें पत्ते की एक झोपडी दिखाई पड़ी जिसके आगे की जमीन बहुत साफ और सुथरी थी। छाटे छोटे जगली मगर खुशनुमा पेडों को लगा कर छाटा सा बाग भी बनाया हुआ था जिसके बीच में एक साधु धूनी लगाये बैठा था जिसने रनवीरसिंह को दखते ही पुकारा और कहा आओ रनवीर मै मुबारकबाद देता हू कि तुम दुश्मन के हाथ से बच गए रनवीर--(पास जाकर और दण्डवत करके) मेरी समझ में न आया कि आपने किस दुश्मन की तरफ इशारा करके 1 मुझे मुबारकबाद दी। साधु-(आशीर्वाद देकर) आओ मेरे पास बैठ जाओ सब कुछ मालूम हो जायगा ! रनवीर-(बैठ कर और हाथ जोड कर) क्या आप अपना परिचय मुझे दे सकते है ? साधु-हों परन्तु आज नहीं इसके बाद मैं एक दफे तुमसे और मिलूगा तब अपना हाल कहूगा । इस समय जो जरूरी चातें मैं कहता हू उसे ध्यान देकर सुनो। रनवीर-आज्ञा कीजिये मै ध्यान देकर सुनूंगा। रनबीरसिह के ऊपर उस साधु का राब छा गया। दमकता हुआ चेहरा कहे देता था कि साधु महाशय साधारण नही है बल्कि तपोबल की बदोलत अच्छ दर्जे को पहुच चुके हैं। उनकी अवस्था चाहे जो हो परन्तु सिर और दाढी के बाल चोथाई से ज्यादे सफेद नहीं हुए ये और रनबीरसिह गौर करने पर भी नहीं समझ सकते थे कि इन साधु महाशय की इज्जत और मुहब्बत उनके दिल में ज्याद क्यों होती जा रही है। साधु-मैं समझता हूँ कि तुम्हें इस समय जख्मों की तकलीफ न होगी और उस अनमाल बूटी ने तुम्हें बहुत कुछ फायदा पहुचाया होगा जो तुम्हारे जख्मों पर चादी गई थीं। रनबीर-वेशक अब मुझे किसी तरह की तकलीफ नहीं है। मालूम होता है कि यह कृपा आप ही की तरफ से हुई है ? साधु-इसका जवाब में अभी नहीं दे सकता। हाँ अब सुनो कि मैं क्या कहता हूं। कुसुम वेशक तुम्हारी है क्योंकि उसके साथ तुम्हारी शादी हो चुकी है परन्तु तेजगढ उसकी अमलदारी है इसलिये तुम स्त्री की अमलदारी में रह का और वहाँ हुकूमत करके जमाने के आगे इज्जत नहीं पा सकत । वेशक उस से जुदा होने का रज तुम्हें होगा, परन्तु इस समय उसका ध्यान भुला देना चाहिये। तुम्हे वह दिन याद होगा जिस दिन तुम्हारा बाप राजा इन्द्रनाथ अपना राज अपने मित्र नारायणदत्त को देकर आजाद हुआ था और तुम्हें उसके सुपुर्द करके साधु हुआ था। रनबीर-जी हॉ वह बात मुझे बखूबी याद है, परतु ऐसा करने का सबब मैं कुछ नहीं जानता। साधु-इसके कई सबब है जो पीछे मालूग होगे, उनमे से एक सवव यह भी है कि बेईमान कर्मचारियो ने उहे कई दफे जहर दे दिया था जिससे उन्हें राज्य से घृणा हो गई तथापि उन्होंने जो कुछ किया अच्छा किया। आज इतना समय नहीं है कि मैं उनका खुलासा हाल तुमसे कहू बल्कि मै समझता हू कि बहुत कुछ हाल दीवान सुमेरसिह ने तुमसे उन चित्रों को दिखा कर कहा होगा जो कुसुम के खासमहल में एक कमरे के अन्दर दीवार पर बने हुए है। रनबीर-येशक उन चित्रों ने मेरी आखें खोल दी थी परन्तु दीवान साहब की जुबानी उनका हाल सुनने का मौका न मिला क्योंकि पहिले दिन जब दीवान साहब उन तस्वीरों की तरफ इशारा कर के खुलासा हाल कहने लगे तभी कुसुम पर आफत आ गई जिसके साधु-हाँ हाँ उसका हाल मुझे मालूम है, अपना बयान जल्द खतम करो। रनवीर-दूसरे दिन जब दीवान साहब से उन तस्वीरों का हाल मेंने पूछा तो उन्होंने यह कह कर टाल दिया कि बीमारी अथवा रज की अवस्था में इन तस्वीरों का हाल कहने की आज्ञा नहीं है। साधु-दीवान ने बहुत अच्छा किया खैर सुनो इस समय मेरी आज्ञानुसार तुम्हें एक जरूरी काम करना होगा जिससे तुम इनकार नहीं कर सकते और न उस काम को किये बिना तुम दुनिया में खुशी और नेकनाभी के साथ रह सकते हो। रनवीर-मै समझता हू कि कुसुम के महल से यकायक मेरा यहाँ पहुचना आप ही के सयब स हुआ? साधु-(कुछ चिढकर) इन सब बातों को तुम अभी मत पूछो क्योंकि में तुम्हारी इन बातों का जवाब न दूगा। अच्छा पहिले इस कागज को देखो और पढ़ो फिर जो कुछ मैं कहू उसे करो। इतना कह कर साधु ने धूनी के बगल की जमीन खोदी और वहाँ से कागज का एक छोटासा मुद्रा निकालकर रनबीरसिह के हाथ में दिया। रनवीरसिह ने उसे खोला और पढना शुरू किया। सब के ऊपर एक तस्वीर थी और उसके नीचे कुछ लिखा हुआ था। रनबीरसिह उस ५ । पढते जाते थे और आँखों से आसू की बूँदें गिरा रहे थे यहां तक कि कागज खतम करते करते तक हिचकी त में कागज जमीन पर रखकर साधु महाराज के पैर पर गिर 1 १०९१