पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८३०

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CY इन्द्र-जैसा कि आपने तारा बनकर कमलिनी को धोखा दिया था। कमला-आपने ठीक कहा क्योंकि ऐयारी दोनों ही ने की थी। कम-आफ जब मै वह समय याद करती हू जब ये तारा बनकर मेरे यहा रहती और ऐयारी का काम करती थी, ता मुझे आश्चर्य होता है। वास्तव में इनकी ऐयारी बहुत अच्छी होती थी और थे दुश्मनों का पता खूब लगाती थीं, रोहतासगढ़ पहाड़ी के नीचे जब मायारानी का ऐगार कचनसिह को मार कर आपको रथ पर सुला के ले गया था तब भी इन्होंने मुझे वह खवर कुछ ही दर पहिले पहुंचाई थी। इन्द्र-(ताज्जुब से) हा ! तब तो इनका बहुत बड़ा अहसान मेरी गर्दन पर भी है ! ओफ. ! वह जमाना भी कैसा भयानक था 1 मजा तो यह था कि दुश्मन लोग आपुस में लड़ मरते थे पर एक दूसरे को खबर नहीं होती थीं। देखो रोहतासगढ में मायारानी की चमेली ने तो माधवी पर वार किया और माधवी को मरतदम-तक इस बात का पता न लगा। अगर पता लग जाता तो क्या आज दिन माधवी मायारानी के साथ मिलकर यहाँ के तिलिस्मी बाग में आने की हिम्मत कभी करती? कम-कदापि नहीं (हस कर) मगर आश्चर्य तो यह है कि जिस माधवी और मायारानी ने इतना ऊधम मचा रक्खा था उन्हीं दोनों से आपने शादी कर ली। अफसोस तो यही कि उनके पापों ने उन्हें बचने न दिया और हम लोगों का मुबारकबाद देने का मौका न मिला। इन्द्र-(शर्मा कर ) तुम तो ! लक्ष्मी-(कुमार की बात काट कर कमलिनी से ) वहिन तुम भी कैसी शोख हो ! कई दफे तुमसे कह चुकी कि इस बात का जिक्र न करना मगर आखिर तुमने न माना ! खैर अगर कुमार ने शादी किया तो किया फिर तुम्हें क्या? तुम ताना मारने वाली कौन ? और फिर भूलचूक की बात ही क्या है इन्होंने कुछ जान बूझ के तो शादी की ही नहीं धोये में पड़ गये।खबरदार अब इस बात का जिक्र कोई करने पाये (कुमार से ) हां तो बताइए कि हम लोगों का हाल आपको कुछ मालूम हुआ या नहीं। इन्द्र-मै तो बहुत दिनों से तिलिस्म के अन्दर हू मगर बाहर का हाल जिसमें आप लोगों का हाल भी मिला हुआ था भाई साहब ( गोपालसिह) वरावर सुना दिया करते थे और जो कुछ नहीं मालूम वह अब मालूम हो जायगा, क्योंकि ईश्वर की कृपा से आप लोगों का बहुत अच्छा समागम हुआ है, एक दूसरे की बीतीफहने-सुनने का मौका आज से बढ कर फिर न मिलेगा। साथ ही इसके में यह भी कहूगा कि आप र कमलिनी की तरफ इशारा करके ) इन्हें यात-यात में आटने या दवाने की तकलीफन्करें. ये जितना और जो कुछ मुझे कहें कहने दीजिए क्योंकि मै इनके हाथ विका हुआ है, इन्होंने हम लोगों के साथ जो कुछ सलूक किया है वह किसी से छिपा नहीं है और न उसका बोझ हम लोगों के से कभी उतर सकता है कम-बस यस यस ज्यादे तारीफों की भरमार न कीजिए। अगर आप (सर्य की तरफ देख के ) चाची क्षमा कीजिए और जरा इस कमरे में जाकर (दोनों कुमारों और भैरोसिह की तरफ बताकर ) इन लोगों के लिए खान का इन्तजाम कीजिए। सर्प कमलिनी का मतलब समझ गई कि उसके सामने हसौ-दिल्लगीकी बातें करते इन लोगों को शर्म मालूम होती है और उचित भी यही है, अस्तु वह उठकर दूसरे कमरे में चली गई और तब कमलिनी ने पुन इन्द्रजीतसिह से कहा हा अगर मेरे हाथ चिके हुए है ता कोई चिन्ता नहीं, मैं आपको बड़ी खातिर के साथ अपने पास रक्खूगी। किशोरी-( मुस्कुराती हुई ) इनकी ताबीज बना के गले म पहिर लेना । कम-जी नहीं गले तो ये तुम्हारे मढे जायगे, मै तो इन्हें हाथों पर लिए फिरूगी। लक्ष्मी-बल्कि चुटकियों पर, क्योंकि तुम ऐसी ही शोख और मसखरी हो ! (कुमार से ) आज हम लोगों के लिए बड़ी खुशी का दिन है ईश्वर ने बड़े भागों से यह दिन दिखाया है अतएव अगर हम लाग इसी दिल्लगी में कुछ विशेष कह जाब तो रज न मानिएगा। इन्द्रजीत-ताज्जुब है कि आप रज हाने का जिक्र करती है ! क्या आप इस बात को नहीं जानती कि इन्हीं बातों के लिए हम लोग कब से तरस रहे है । (कमलिनी की तरफ देख के आर मुस्कुरा के ) मगर आशा है कि अब तरसना न पड़ेगा। . कमलिनी यह तो ( किशोरी की तरफ बता के ) इन्हें कहिए, तरसने की बात का जवाब तो यह ही दे सकेंगी। किशोरी-ठीक है, क्योंकि आदमी जय किसी के हाथ विक जाता है तो आजादी की हवा खाने के लिये उसे तरसना ही पड़ता है। देवकीनन्दन खत्री समग्र E२२