पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८३३

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Je 11 भाई साहब ने पहिले हीउसकीसैतानी स हम लोगों को होशियार कर दिया था इसलिए हम लोगों का वह कुछ बिगाडन सका। कम-मगर आपने उसकी बात मान ली और इसलिये उसने भी आपसे खुश होकर आपकी शादी करा दी। आपको तो उसका अहसान मानना चाहिये लक्ष्मी-(कमलिनी को झिडक कर ) फिर तुम उसी रास्ते पर चली | खामखाह एक आदमी को इन्द्रजीत-अबकी अगर वह मुझे मिले तो उस विना मारे कभी न छोडू चाहे जो हो।- इन्द्रजीतसिह की इस बात पर सब हस पडे और इसके बाद लक्ष्मीदवी ने कुमार से कहा, 'अच्छा अब यह बताइये कि मेरे चले जाने के बाद आपने तिलिस्म में क्या किया और क्या देखा?" इसी समय स! भी वहीं आ पहुची और बोली, चलिये पहिले खा-पी लीजिए तब बातें कीजिय। लक्ष्मीदेवी के जिद्द करने से दोनों कुमारों को उठना पड़ा और भोजन इत्यादि से छुट्टी पाने बाद फिर उसी ठिकाने बैठ कर गप्पें उडने लगी। कुमार ने अपना बिल्कुल हाल बयान किया और वे सब आश्चर्य से सब कथा सुनती रहीं। इसके बाद कुमार ने इन्दिरा से उसका वाकी किस्सा पूछा : पाँचवां बयान दूसरे दिन तेजसिह को उसी तिलिस्मी इमारत में छोड़ कर और जीतसिह को साथ लेकर राजा वीरेन्द्रसिह अपने पिता से मिलने के लिए चुनार गए। मुलाकात होन पर वीरन्द्रसिह ने पिता के पैरों पर सर रक्खा और उन्होंने आर्शीवाद देने के बाद बड़े प्यार से उठा कर छाती से लगाया और सफर का हाल चाल पूछने लगें। राजा साहब की इच्छानुसार एकान्त हो जाने पर बीरेन्द्रसिह ने सब हाल अपने पिता से बयान किया जिसे वे बडी दिलचस्पी के साथ सुनते रहे। इसके बाद पिता के साथ ही साथ महल में जाकर अपनी माता से मिले और सक्षेप में सब हाल कहकर बिदा हुए तब चन्द्रकान्ता के पास गए और उसी जगह चपला तथा चम्पा से मिल कर देर तक अपने सफर का दिलचस्प हाल कहते रहे। दूसरे दिन राजा वीरेन्द्रसिह अपने पिता के पास एकान्त में बैठे हुए बातों में राय ले रहे थे जब जमानिया से आये हुए एक सवार की इत्तिला मिली जो राजा गोपालसिह की चीठी लाया था। आज्ञानुसार वह हाजिर किया गया. सलाम करके उसने राजा गोपालसिह की चीठी दी और तब बिदा देकर बाहर चला गया। यह चीठी जो राजा गोपालसिह ने भेजीथी, नाम ही को चीठी थी. असल में यह एक ग्रन्थ ही मालूम होता था जिसमें राजा गोपालसिह ने दोनों कुमार किशोरी कामिनी सर्दू तारा मायारानी और माधवी इत्यादि का खुलासा किस्सा जो कि हम ऊपर के बयानों में लिख आये है और जो राजा बीरेन्द्रसिह को अभी मालूम नहीं हुआ था तथा अपने यहा का भी कुछ हाल लिख भेजा था और साथ ही यह भी लिखा कि आप लोग उसीखण्डहर वाली इमारत में रह कर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के मिलने का इन्तजार करें इत्यादि। राजा सुरेन्द्रसिह को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि हम और राजा गोपालसिह असल में एक ही खानदान की यादगार हैं और इन्दजीतसिह तथा आनन्दसिह से भी अब बहुत जल्द मुलाकात हुआ चाहती है, अस्तु यह बात तै पाई कि सब कोई उसी तिलिस्मी खण्डहर वाली इमारत में चलकर रहें और उसी जगह भूतनाथ का हाल-चाल मालूम करें। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् राजा सुरेन्द्रसिह, बीरेन्द्रसिह महारानी चन्द्रकान्ता चपला और चम्पा वगैरह सभों की सवारी वहाँ आ पहुची और मायारानी दारोगा तथा और कैदियों को भी उसी जगह लाकर रखने का इन्तजाम किया गया। हम बयान कर चुके हैं कि इस तिलिस्मी खण्डहर के चारों तरफ अब बहुत बडी इमारत बन कर तैयार हो गई है जिसके बनवाने में जीतसिह ने अपनी बुद्धिमानी का नमूना बडी खूबी के साथ दिखाया है-इत्यादि। अस्तु इस समय इन लोगों को यहा ठहरने में तकलीफ किसी तरह की नहीं हो सकती थी बल्कि हर तरह का आराम था। पश्चिम तरफ वाली इमारत के ऊपर वाले खडों में कोठरिया और बालाखानों के अतिरिक्त बडे-बडेकमरे थे जिनमें से चार कमरे इस समय बहुत अच्छी तरह सजाए गये थे और उनमें महाराज सुरेन्द्रसिह,जीतसिह, बीरेन्द्रसिह और तेजसिह का डेरा था। यहा भूतनाथ के डेरे वाला बारह नम्बर का कमरा ठीक सामने पड़ता था और वह तिलिस्मी चयूतरा भी यहा से उतना ही साफ दिखाई देता था जितना भूलनाथ के डेरे से। इन कमरों के पिछले हिस्से में बाकी लोगों का डेरा था और बचे हुए ऐयारों को इमारत के बाहरी हिस्से में स्थान चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८२५