पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८३४

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R मिला था और उस तरफ थोडे से फोजी सिपाहियों और शागिर्द पेशशपालों को भी जगह दी गई थी। इस जगह राजा जीतसिह तथा तजसिह के भी आ जाने से भूनाथ तादुद में पड़ गया और सोचने लगा कि 'उप तिलिस्मी चबूतरेक अन्दर से निकलकर मुद्रास मुलाकात करने वाले या बलभरिह को ले जाने वाले आदमियों का हाल कही राजा साहव या उनके एयारा को मालूम न हो जाय और में एक नई अफत में न फस जा क्योंकि उनका पुन उस चबूतरे के नीचे से निकलकर मुझसे मिलने जना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। रात आधी से कुछ ज्यादे जा चुकी है। राजा वीरेन्द्रसिह अपो के बाहर बारामा में फर्श पर बैठे अपन मित्र तेजसिह सधीरे-धीरे कुछ बातें कर रहे है। कमरे के अन्दर इस समय महलको रोशन हो रही है सही मगर कमरे का दर्वाजा चूमा रहन के सबंध यह रोशनी बीरेन्दति और तेजासिह तक नहीं पहुच रही थी जिसस ये दोनों एक प्रकार से अन्धकार में बैठे हुए थे और दूर में इन दोनों का कोई देख नहीं सकता था। नीचे वाग के लोहे के बड-बडे खम्भों पर लालटेन जल रही थी फिर भी बाग की घनी सब्जी और तताओं का सहारा उसमें छिप कर घूमने वालों के लिए कम न था। उस दालागने भी कन्दाल जल रहा थीं जिसमे तिलिस्मी धन्यूतरा या और इस समय राजा वीरेन्द्रसिह की निगाह भी जो तजसिह स बात कर रहे थे उसी तिलिस्मी चबूतरे की तरफ ही थी। यकायक चबूतरे के निचले हिस्से में रोशनी देख कर राजा वीरेन्द्रसिंह को ताज्जुब हुआ और उन्होंने तेजसिह का ध्यान भी उस तरफ दिलाया। उस रोशनी के समय स साफ भाल्म होता था कि चबूतरे का अगला हिस्सा (जो रिन्दसिंह की तरफ पड़ता था) किवाड के पल्ले की तरह खुल कर जमीन के साथ लग गया है और दो आदमी एक गठरी राटकाये हुए चबूतरे से बाहर की तरफ ला रहे है। उन दोनों के बाहर आने के साथ ही चबूतरे के अन्दर वाली राशनी बन्द हो गई ओर उन दोनों में से एक ने दूसरे के कधे पर चढकर वर कदील भी बुझा दी जो उस दालान में जल रही थी। कन्दील बुझ जाने से वहाँ अन्धकार हो गया और इसके बाद मालूम न हुआ कि यहाँ क्या हुआ या क्या हो रहा है। तेजसिह और धीरेन्द्रसिह उसी समय उत खड़े हुए और हाय में नगो तलवार लिए तथा एक आदमी को रानटन लेकर वहा जाने की आज्ञा देकर उस दालान की तरफ रवाना हुए जिसमें तिलिस्मी चबूतरा था मगर वहॉ लाकर सिवाय एक गठरी के जो उसी चबूतरे के पास पड़ी हुई थी और कुछ नजर न आया। जब आदमी लालटेन लेकर वहा पहुचा ता तेजसिह ने अच्छी तरह घूमकर जाच की मगरनतीजा कुछ भी न निकला न ता यहा कोई आदमी दिखाई दिया और न उस चबूतरे ही में किसी तरह का निशान या दर्षजे का पता लगा। तेजसिह ने जब वह गठरी खोली तो पर अगदमी पर निगाह पड़ी। लालटेन की रोशनी में बड़े गौर से देखने पर भी तेजसिह या वीरेन्दसिह उसे पहिचान न सके अस्तु तेजसिह ने उसी समय जफील बनाई जिसे सुनते ही कई सिपाही और खिदमतगार वहाँ इकट्ठे हो गये। इसके बाद बीरेन्द्रसिह और तेजसिह उस आदमी को उठवा कर राजा सुरेन्द्रसिह के पास ले आए जो इस समय काशोर-गुलसुन कर जाग चुके थ और जीतसिह वो अपने पास बुलवा कर कुछ बातें कर रहे थे। उस बेहोश आदमी पर निगाह पडत ही जीतसिह पहिचान गये और बोल उठे-"यह तो बलभद्रसिह है !" धोरेन्द्र-( ताज्जुब से ) है. यही बलभद्रसिह है जो यहा से गायब हो गये थे !! जीत-हा यही है ताज्जुब नहीं कि जिस अनूठे ढग से ये यहा पहुचाए गये है उसी ढग से गायब भी हुए हो । सुरेन्द्र-जरुर ऐसा ही हुआ होगा, भूतनाथ पर व्यर्थ का शक किया जाता था। अच्छा अब इन्हें होश में लाने की फिक्र करो और भूतनाथ को बुलासे । तेज-जो आशा सहज ही में बलभद्रसिह चैतन्य हो गये और तब तक भूतनाथ भी वहाँ आ पहुंचा। राजा सुरेन्दसिह जीतसिह और तेजसिह को सलाम करने बाद भूतनाथ बैठ गया और बलभदसिह से बोला- भूत-कहिये कृपानिधान आप कहा छिप गये थे और कैसे प्रकट हो गये सभी को मुझ पर सन्देह हो रहा है। पाठक इसके जवाब में बलभदसिह ने यह नहीं कहा कि तुम्ही ने तो मुझे बेहोश किया था जिसके सुनने की शायद आप इस समय आशा करते होंगे, बल्कि बलभद्रसिह ने यह जवाब दिया कि नहीं भूतनाथ तुम पर कोई क्यों शक करेगा? तुमने ही तो मेरी जान बचाई है और तुम्ही मेर साथ दुश्मनी करोगे ऐसा भला कौन कह सकता है ? तेज-खैर यह बताइये कि आपको कौन ले गया था और कैसे ले गया था? बल-इसका पता तो मुझे भी अभी तक नहीं लगा कि वे कौन थे जिनके पाले में पड़ गया था हा जो कुछ मुझ पर देवकीनन्दन खत्री समग्र ८२६