पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८३५

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ari बोती है उसे अर्ज कर सकता हू मगर इस समय नहीं, क्योंकि मेरी तबीयत कुछ खराब हो रही है, आशा है कि अगर मैं दो- तीन घण्ट सो सक्गा तो सुबह तक ठीक हो जाऊगा। सुरेन्द्र-कोई चिन्ता नहीं आप इस समय जाकर आराम कीजिए। जीत-यदि इच्छा हो तो अपने उसी पुराने डेरे में भूतनाथ के पास रहिए नहीं तो कहिए आपके लिए दूसरे डेरे का इन्तजाम कर दिया जाय। बलभद्र-जी नहीं मैं अपने मित्र भूतनाथ के साथ ही रहना पसन्द करता हूँ। बलभद्रसिह को साथ लिए भूतनाथ अपने डेरे की तरफ रवाना हुआ, इधर राजा सुरेन्द्रसिह जीतसिह बीरेन्द्रसिह और तेजसिह उस तिलिस्मी चबूतरे तथा बलभद्रसिह के बारे में बात-चीतकरने लगे तथा अन्त में यह निश्चय किया कि बलभदसिह जो कुछ कहेंगे उस पर भरासा न करके अपनी तरफ से इस बात का पता लगाना चाहिए कि उस तिलिस्मी चबूतरे की राह से आने जान वाले कोन है उस दालान में ऐयारों का गुप्त पहरा मुकर्रर करना चाहिए। छठवां बयान कुमार की आज्ञानुसार इन्दिरा ने अपना किस्सा यों बयान किया इन्दिरा-मै कह चकी हु कि ऐयारी का कुछ सामान लेकर जब मै उस खोह के बाहर निकली और पहाड तथा जगल पार करके मैदान में पहुची तो यकायक मेरी निगाह एक ऐसी चीज पर पडी जिसने मुझे चौका दिया और मैं घबडा- कर उस तरफ देखने लगी। जिस चीज को देखकर मैं चौकी वह एक कपडा था जो मुझसे थोडी ही दूर पर ऊचे पेड़ की डाल के साथ लटक रहा था और उस पेड के नी मेरी मा बैठी हुई कुछ सोच रही थी। जब मैं दौडती हुई उसके पास पहुची तो वह ताज्जुब भरी निगाहों से मेरी तरफ देखने लगी क्योंकि उस समय ऐयारी से मेरी सूरत बदली हुई थी। मैंने बड़ी खुशी के साथ कहा 'मॉ, तू यहा कैसे आ गई?' जिसे सुनते ही उसने उठ कर मुझे गले से लगा लिया और कहा, ' इन्दिरा, यह तेरा क्या हाल है ? क्या तून ऐयारी सीख ली है 'मैने मुख्तसर में अपना सब हाल वयान किया मगर उसने अपने विषय में केवल इतना ही कहा कि अपना किस्सा में आग चल कर तुझसे बयान करुगी इस समय केवल इतना ही कहूगी कि दारोगा ने मुझे एक पहाडी में कैद किया था जहा से एक स्त्री की सहायता पाकर परसों में निकल भागी मगर अपने घर का रास्ता न पाने के कारण इधर-उधर भटक रही हूँ। अफसोस उस समय मैने बड़ाही धोखा खाया और उसके सबब से मैं बडे सकट में पड़ गई क्योंकि वह वास्तव में मरी मॉ न थी बल्कि मनोरमा थी और यह हाल मुझे कई दिनों के बाद मालूम हुआ। मैं मनोरमा को पहिचानती न थी मगर पीछे मालूम हुआ कि वह मायारानी की सखियों में से थी ओर गौहर के साथ वह वहाँ तक गई थी मगर इसमें कोई शक नहीं कि वह बडी शैतान बेदर्द और दुष्टा थी। मेरी किस्मत में दुख भोगना बदा हुआ था जो मैं उसे मॉ समझ कर कई दिनों तक उसक साथ रही और उसने भी नहाने धोने के समय अपने को मुझसे बहुत उचाया। प्राय कई दिनों के बाद वह नहाया करती और कहती कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है। साथ ही इसक यह भी शक हो सकता है कि उसने मुझे जान से क्यों नहीं मार डाला? इसके जवाब में मै कह सकती है कि वह मुझे जान से मार डालने के लिए तैयार थी, मगर वह भी उसी कम्बख्त दारोगा की तरह मुझसे कुछ लिखवाया चाहती थी। अगर मैं उसी की इच्छानुसार लिख देती तो वह नि सन्देह मुझे मार कर बखेडा ते करती. मगर ऐसा न हुआ। जब उसनमुझस यह कहा कि रास्ते का पता न जानने के कारण से भटकती फिरती हू तब मुझे एक तरह का तरद्द हुआ मगर मैंने कुछ जोश के साथ उसी समय जवाब दिया- कोई चिन्ता नहीं मै अपने मकान का पता लगा लूगी। मनो-मगर साथ ही इसके मुझे एक रात और भी कहनी है। मै-वह क्या ? मनो-मुझ ठीक खबर लगी है कि कम्बख्तदारोगा ने तेर बाप को गिरफ्तार कर लिया है और इस समय वह काशी में मनोरमा के मकान में कैद है। मैं-मनोरमा कौन? मनो-राजा गोपालसिह की स्त्री लक्ष्मीदेवी (जिसे अब लाग मायारानी के नाम से पुकारते है ) की सखी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८२७