पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४२

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६ कहा। इसके जवाब में मनोरमा ने कहा, हाँ ठीक है, मैने नादान समझ कर तुझे वे बाते नहीं कही थीं। मे-अच्छा यह तो बताओ कि मायारानी को थोडे ही दिनों में वहां का सब हाल कैसे मालूम हो गया ? मनोरमा-ये सब बातें मुझे मालूम न थी मगर दारोगा ने मुझको असली मनोरमा समझ कर बता दिया, अस्तुजो कुछ उसकी जुबानी सुनने में आया है सो तुझे कहती हूँ। मायारानी को वहा का हाल यकायक थोडे ही दिनों में मालूम न हो जाता और दारोगा भी इतनी जल्दी उसे होशियार न कर देता. मगर उराके (मायारानी क) याप ने उसे हर तरह से होशियार कर दिया है क्योंकि उसके बड़े लोग दीवान क तौर पर वहाँ की हुकूमत कर चुके है और इसीलिए उसके बाप को भी न मालूम किस तरह पर यहाँ की बहुत सी बातें मालूम है। मैं-खैर इन सब बातों से मुझे कोई मतलब नहीं यह बताओ कि मेर पिता कहा है ओर उन्हें छुड़ाने के लिए तुमन क्या वन्दोवस्त किया? वह छूट जायें तो राजा गोपालसिट को मायारारी के फन्दे से बचा लें। हम लोगों के किय इस बारे में कुछ न हो सकेगा। मनोरमा-उन्हें छुडो क लिए भी में सव वन्दोवस्त कर चुकी हू, दर यस इतनी ही है कि तू एक चोठी गापालसिह के नाम की उसी मजमून की लिख दे जिसमजमून की लिखन के लिए दारोगा तुझ कहता था। अफसोस इसी बात का है कि दारागा को तेरा हाल मालूम हो गया है। वह तो मुझे नहीं पहिचानासका मगर शाला कहता था कि इन्दिरा को तून अपनी लडकी बना कर घर में ररा लिया है सो खैर तरे मुलाहिज से मैं उस छोड देता हूँ मगरउसके हाथ से इस मजमून की चीठी लिखाकर जरूर भेजना होगा (कुछ रुक कर ) न मालूम क्यों मेरा सिर घूमता है। मै-खाने को ज्यादा खा गई होगी। मनोरमा-नहीं नगर इतना कहते-कहतेगनारमा ने गौर की निगाह से मुझे दरया और में अपने को चायाले की नीयत से उठ राडी हुई। उसने यह देख मुझे पकड़ने की नीयत स उठना चाहा मगर उठन सकी और उस यहाशी की दया का पूरा-पूराअसर उस पर हो गया अर्थात वह बेहोश होकर गिर पड़ी। उस समय में उसके पास से चली आई और कमरे के बाहर निकली। चारों तरफ देखन से मालूम हुआ कि सब लोडी नोकर मिसरानी और माली वगैरह जहा तहा यहोश पडे है किसी का तनावदन की सुध नहीं है। मै एक जानी हुई जगह से मजवत रस्सी लेकर धुन मनारमा के पास पहुंची और उसी ससूर्य जकडकर दूसरी पुडिया सुघा उस होश में लाई। चैतन्य होने पर उस हाथ में खसर लिए हुए मुझ सामने सरे पाया। वह उसी का खजर था जो मैन ले लिया था। मनोरमा-हैं यह गया? तूने मरी ऐसी दुर्दशा क्यों कर रक्या है? मैं इसलिए कि तू वास्तव में मरी मा नहीं है और मुझे धोखा देकर यहा लेलाइ है। मनोरमा-यह तुझे किसने कहा? मैं-तरी बातों ओर करतूर्ता ने । मनोरमा-नहीं-नहीं यह सब तेग भ्रम है। मैं-अगर यह सब मेरा भ्रम है और तू वास्तव में मेरी माँ है ता बता मेरे नाना ने अपने अन्तिम समय में क्या कहा था? मनोरमा (कुछ सोच कर ) मेरे पास आ ता बताऊँ। मै-मै तेरे पास आ सकती हूँ मगर इतना समझ ले कि अब यह जहरीलो अगूटी तेरी उँगली में नहीं है। इतना सुनते ही वह चौक पड़ी। इसके बाद और भी राष-यूब बाते उसस हुई जिससे निश्चय हो गया कि मेरी ही करनी से वह बेहोश हुई थी और अब में उसके फेर में नहीं पड सकती। मैं उसे नि सन्देह जान से मार डालती मगर बरदबू ने एसा करने से मुझे मना कर दिया था। वह कह चुका था कि मै तुझ इस कैद से छुड़ा तो देता हूँ मगरमनोरमा की जान पर किसी तरह की आफत नहीं ला सकता क्योंकि उसका नमक खा चुका हू।' यही सवय था कि उस समय मैने उसे केवल बातों की ही धमकी देकर छोड़ दिया। बची हुई बेहोशी की दवा जबर्दरती उसे सुंघा कर बेहोश करने बाद में कमरे के बाहर निकली और वाग में चली आई जहाँ प्रतिज्ञानुसार वरदेवू खडा मेरी राह देख रहा था। उसने मेरे लिए एक खजर और एक ऐयारी का बटुआ भी तैयार कर रक्खा था जो मुझे देकर उसके अन्दर की सब चीजों के बारे में अच्छी तरह समझा दिया और इसके बाद जिधर मालियों के रहने का मकान था उधर ले गया। माली सब तो येहोश येही अस्तु कमन्द के सहारे मुझे याग की दीवार के बाहर कर दिया और फिर मुझे मालूम न हुआ कि बरदेवू ने क्या कार्रवाइयों की और उस पर तथा मनोरमा इत्यादि पर क्या बीती। भनोरमा के घर से बाहर निकलते ही भै सीधे जमानिया की तरफ भागी क्योंकि एक तो अपनी मां को छुड़ाने कि फिक लगी हुई थी जिसके लिए वरदेवू ने कुछ रास्ता भी बता दिया था मगर इसके इलाये मेरी किस्मत में भी यही लिखा या कि धनिबस्त घर जाने के जमानिया को जाना पसन्द करूँ ओर वहाँ अपनी मों की तरह खुद भी फंस जाऊ। अगर मैं देवकीनन्दन खत्री समग्र ५३४