पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४३

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R N घर जाकर अपने पिता से मिलती और यह सब हाल कहती तो दुश्मनों का सत्यानाश भी होता और मेरी मॉ भी छूट जाती मगर सो न तो मुझको सूझा और न हुआ। इस सम्बन्ध में उस समय मुझको घडी-घडीइस बात का भी खयाल होता था मनारमा मेरा पीछा जरूर करेगी अगर मैं घर की तरफ जाऊँगी तो नि सन्देह गिरफ्तार हो जाऊँगी। खैर, मुख्तसर यह है कि वरदेवू के बताए हुए रास्ते से मै इस तिलिस्म के अन्दर आ पहुंची। आप तो यहा की सब 'वातों का भद जान गए होंगे इसलिए विस्तार के साथ कहने की कोई जरूरत नहीं केवल इतना ही कहता काफी होगा कि गगा किनारे एक श्मशान पर जो महादेव का लिग एक चबूतरे के ऊपर हे वही रास्ता आने के लिए बरदेबू ने मुझे बताया था। इन्दिरा ने अपना हाल यहॉ तक बयान किया था कि कमलिनी ने रोका और कहा हॉ-हाँ उस रास्ते का हाल मुझे मालूम है ( कुमार से ) जिस रास्ते से मैं आप लोगों को निकाल कर तिलिस्म के बाहर ले गई थी * ! इन्द्रजीत-ठीक है (इन्दिरा से ) अच्छा तय क्या हुआ? | इन्दिरा-मे इस तिलिस्म के अन्दर आ पहुची और घूमती-फिरती उसी कमरे में पहुच गई जिसमें आपने उस दिन मुझे मेरे पिता और राजा गोपाल सिह को देखा था, जिस दिन आप उस बाग में पहुंचे थे जिसमें मेरी माँ कैद थी। इन्द्रजीत-अच्छा ठीक है तो उसी खिडकी में से तूने भी अपनी माँ को देखा होगा? -जी हॉ दूर ही से उसने मुझे देखा ओर मैंने उसे देखा मगर उसके पास न पहुच सकी। उस समय हम दोनों की क्या अवस्था होगी इसेआप स्वय समझ सकते हैं मुझ में कहने की सामर्थ्य नहीं है। (एक लम्बी सास लेकर) कई दिनों तक व्यर्थ उद्योग करने पर भी जब मुझे निश्चय हो गया कि मैं किसी तरह उसके पास नहीं पहुंच सकती और न उसके छुड़ाने का कुछ बन्दोबस्त ही कर सकती हू तब मैंने चाहा कि अपने पिता को इन सब बातों की इत्तिला दूँ! मगर अफसोस यह काम भी मेरे किए न हो सका। मैं किसी तरह इस तिलिस्म के बाहर न जा सकी और मुद्दत तक यहॉ रह कर ग्रह दशा के दिन काटती रही। इन्दजीत-अच्छा यह बता कि राजा गोपालसिह वाली तिलिस्मी किताब तुझे क्योंकर मिली ? इन्दिरा यह हाल भी मैं आपसे कहती हूँ। इतना कह कर इन्दिरा थोडी देर के लिए चुप हो गयी और उसके बाद फिर अपना किस्सा शुरू किया ही चाहती थी कि कमरे का दर्वाजा जो कुछ घूमा हुआ था, यकायक जोर से खुला और राजा गोपालसिह आते हुए दिखाई पडे । सातवाँ बयान राजा गोपालसिह को देखते ही सब कोई उठ खडे हुए और बारी-बारी से सलाम की रस्म अदा की। इस समय भेरोसिह ने लक्ष्मीदेवी की आँखों से मिलती हुई राजा गोपालसिह की उस मुहब्बत,मेहरबानी और हमदर्दी की निगाह पर गौर किया जिसे आज के थोडे दिन पहिले लक्ष्मी देती बेताबी के साथ दूंढती थी याजिसके न पाने से वह तथा उसकी बहिनें तरह-तरह का इलजाम गोपालसिह पर लगाने का ख्याल कर रही थीं। सभों की इच्छानुसार राजा गोपालसिह भी दोनों कुमारों के पास ही बैठ गए और सभों के कुशल मगल पूछने के बाद कुमार से बोले 'क्या आपको उस बडे इजलास की फिक्र नहीं है जो चुनार में होने वाला है जिसमें भूतनाथ का दिलचस्प मुकद्दमा फैसला किया जायेगा और जिसमें उसके तथा और भी कई कैदियों के सम्बन्ध में एक से एक बढकर अनूठा हाल खुलेगा? साथ ही इसके मुझे यह भी सन्देह होता है कि आप उनकी तरफ से भी कुछ बेफिक्र हो रहे हैं जिनके लिए इन्द्र-नहीं-नहीं मैं न तो बेफिक्र हू और न अपने काम में सुस्ती ही किया चाहता हूँ । गोपाल-क्या हम लोग नहीं जानते कि इधर के कई दिन आपने किस तरह व्यर्थ नष्ट किए हैं और इस समय भी किस बेफिक्री के साथ बैठे गप्पें उड़ा रहे है ? इन्द्र-(कुछ कहते-कहते रुक कर ) जी नहीं इस समय तो हम लोग इन्दिरा का किस्सा सुन रहे थे। गोपाल-इन्दिरा कहीं भागी नहीं जाती थी यहाँ नहीं तो चुनार में हर तरह से वेफिक्र होकर आप इसका किस्सा सुन सकते थे जहा और भी कई अनूठे किस्से आप सुनेंगे। खैर बताइए कि आप इन्दिरा का किस्सा सुन चुके या नहीं? 'देखिए आठवाँ भाग दूसरे बयान का अन्त । चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८३५