पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४५

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गोपाल-वह सव चुनार में निकल जायगा यहाँ मैं आपको कुछ न बताऊँगा! देखिए अब रात बीता चाहती है, सवेरा हाने से पहिल ही आपको अपने काम में हाथ लगा दना चाहिए। लक्ष्मी-(हसकर ) आप क्या आये मानों भूचाल आ गया अच्छी जल्दी मचाई यात तक नहीं करने देते (कुमार से) जग इन्हें अच्छी तरह जॉच ता लीजिए, कहीं कोई ऐयार रूप बदल कर न आया हो। गोपाल-(इन्द्रजीतत्तिह के कान में कुछ कहकर ) बस अब अप्प विलम्ब न कीजिए। इन्द्रजीत-( उठकर) अच्छा ता फिर मै प्रणाम करता हूँ और भैरोसिह को भी आपके ही सुपुर्द किये जाता हूँ। (लक्ष्मीदेवी से ) आप किसी तरह की चिन्ता न करें ये (गोपालसिह) वास्तव में हमारे भाई साहव ही है अस्तु अव चुनार में पुन मुलाकात की उम्मीद करता हुआ में आप लोगों से विदा होता है। इतना कहकर इन्द्रजीतसिह न मुस्कुरात हुए सभों की तरफ देखा और आनन्दसिह ने भी बडे भाई का अनुसरण किया। गजा मापालसिह दानों कुमारों को लिए कमरे के बाहर चले गये और कुछ देर तक बातचीत करने तथा समझा कर चिदा करने के बाद पुन कमर में चले आये। आठवां बयान यद्यपि चुनारगढ़ वाले तिलिस्मी खडहर की अवस्था ही जीतसिह ने बदल दी और अब वह आला दर्जे की इमारत बन गई है मगर उस्क चारा तरफ दूर-दूर जो जगलों की शोभा थी उसमें किसी तरह की कमी उन्होंने होने न दी। मुवह का सुहावना समय है और राजा सुरन्दसिह बीरेन्दसिह जीतसिह तथा तेजसिह वगैरह धूर ऊपर वाले कमर म बैठजंगल की शामा दखने के साथ ही साथ आपुस में धीरे-धीर बात भी करते जाते है। जगली पेडों के पत्तों से छनी और फूलों की महक से सोंधी हुई.भई दक्षिणी हवा के झपेटे आ रहे हैं और रात भर की चुप बैठी हुई तरह तरह की चिडियाएँ सदंग होन की खुशी में अपनी सुरीली आवाजों से लागों का जी लुभा रही है। स्याह तीतर अपनी मस्त और चॅधी हुई आवाज स हिन्दू मुसलमान हुँजडे और कस्ताव में झगडा पैदा कर रहे हैं। मुसलमान कहते हैं कि तीतर साफ आवाज में यही कह रहा है सुब्हान तरी कुदरत मगर हिन्दू इस बात को स्वीकार नहीं करते और कहते है कि यह स्याह तोतर राम लक्ष्मण दशरथ कह कर अपनी भक्ति का परिचय दे रहा है। कुँजडे इसे भी नहीं मानते और उसकी बोली का मतलब मूली प्याज अदरक समझकर अपना दिल खुश कर रहे है, परन्तु कस्साबों को सिवाय इसके और कुछ नहीं सूझता कि यह तीतर कर जबह और ढक रख का उपदश दे रहा है। इसी समय देवीसिह भी वहाँ आ पहुंचे और मूतनाथ और बलभद्रसिह के हाजिर होने की इत्तिला दी। इच्छानुसार दोनों ने सामने आकर सलाम किया और फर्श पर बैठन के बाद इशारा पाकर भूतनाथ ने तेजसिह से कहा- भूत-(बलभदसिह की तरफ इशारा करके ) इनका हाल सुनने के लिए जी बेचैन हो रहा है मैं इनसे कई दफे पूछ चुका हू मगर ये कुछ कहते नहीं। तेज-(पलभदसिह से) अब ता आपकी तबीयत ठिकान हो गई होगी? बल-जी हाँ, अब मैं बहुत अच्छा और अपना हाल कहने के लिए तैयार है। तेज-अच्छी बात है हम लोग भी सुनने के लिए तैयार हैं और आप ही का इन्तजार कर रहे थे। सभा का ध्यान बलभद्रसिह की तरफ खिच गया और बलभद्रसिह ने अपने गायब होने का हाल इस तरह कहना शुरू किया इस बात की तो मुझे कुछ भी खयर नहीं कि मुझे कौन ले गया और क्यों कर ले गया। उस दिन मैं भूत नाथ के पास ही एक चारपाई पर सो रहा था और जब मेरी आँख खुली तो मैंने अपने को एकहरे-भरे और खूबसूरत बाग में पाया। उस समय मैं बिल्कुल मजबूर था अर्थात् मेरे हाथों में हथकडी और पैरों में बेडी पड़ी हुई थी और एक औरत नगी तलवार लिए मेरे सामने खडी थी। मैंने सोचा कि अब मेरी जान नहीं बचती और मेरे भाग्य ही में कैदीबनकर जान देना बदा है। वहुत सी बातें सोच-विचार के मैने उस औरत से पूछा कि 'तू कौन है और मैं यहॉ क्योंकर पहुंचा है? जिसके जवाब में उस औरत ने कहा कि 'तुझे मैं यहाँ ले आई हूँ और इस समय तू मेरा कैदी है। मैं जिस मुसीबत में फसी हुई हू उससे छुटकारा पाने के लिए इसक सिवाय और काई तरकीब न सूझी कि तुझे अपने कब्जे में करके अपने छुटकारे की सूरत निकालू क्योंकि मेरा दुश्मन तेरे ही कब्जे में है। अगर तू उसे समझाकर राह पर ले आवेगा तो मेरे साथ साथ तेरी जान बच जायगी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८३७