पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८४८

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बदौलत अपने को सुखी न बना सका उल्टा इसने जमाने को दिखा दिया कि प्रतिष्ठा और सम्यता का पल्ला छोडकर केवल लक्ष्मी का कृपापात्र बनने के लिए उद्योग और उत्साह दिखाने वाले का परिणाम कैसा होता है। इन्द्रदेव-नि सन्देह ऐसा ही है। अगर मूतनाथ उसके साथ ही साथ प्रतिष्ठा और सभ्यता का पल्ला भी मजबूती के साथ पकडे होता और इस बात पर ध्यान रखता कि जो कुछ करे वह इसकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध न होने पावेतो आज दुनिया में भूतनाथ तीसरे दर्जे का ऐयार कहा जाता । जीत-(मुस्कुराकर } मगर सुना जाता है कि अव भूतनाथ इज्जत और हुर्मत की मीनार पर चढकर दुनिया की सैर किया चाहता है और यह बात देवताओं को भी वश में कर लेने वाले मनुष्य की सामर्थ्य से बाहर नही। इन्द्रदेव-अगर सिफारिश न समझी जाय तो मे यह कहने का हौसला कर सकता है कि दुनिया में इज्जत और हुर्मत उसी को मिल सकती है जो इज्जत और हुर्मत का उचित बर्ताव करता हुआ किसी बडे इज्जत और हुर्मत वाले का कृपापात्र बने। देवी-भूतनाथ का खयाल भी आज कल इन्हीं बातों पर है। मैने बहुत दिनों तक छिप-छिपभूतनाथ का पीछा कर के जान लिया है कि भूतनाथ को होशियारी,चालाकी और ऐयारी की विद्या के साथ ही साथ दौलत की भी कमी नहीं है। अगर यह चाहे तो बेफिक्री के साथ अमीराना ढग पर अपनी जिन्दगी बिता सकता है मगर भूतनाथ इसे पसन्द नहीं करता और खूब समझता है कि वह सच्चा सुख जो प्रतिष्ठा सभ्यता और सज्जनता के साथ सज्जन और मित्र मण्डली में बैठ कर हँसने-बोलने से प्राप्त होता है और ही कोई वस्तु है और उसके विना मनुष्य का जीवन वृथा है। बलभद्र-बेशक यही सबब है कि आजकल भूतनाथ अपना समय ऐसे ही कामों और विचारों में बिता रहा है और चाहता है कि अपना चेहरा बेदाग आइने में उसी तरह देख सके जिस तरह हीरा निर्मल जल में, मगर इसके लिए भूतनाथ को अपने पुराने मालिक से भी मदद लेनी चाहिए। इन्द्रदेव-(कुछ चौककर ) हा. मै यह निवेदन करना तो भूल ही गया कि आज ही कल में यहा रणधीरसिह भी आने वाले हैं अस्तु उनके लिए महाराज को प्रबन्ध कर देना चाहिए। यह एक ऐसी बात थी जिसने भूतनाथ को चौका दिया और वह थोडी देर के लिए किसी गम्भीर चिन्ता में निमग्न हो गया मगर उद्योग करके उसने शीघ्र ही अपने दिल को सम्हाला और कहा- भूतनाथ-क्योंकि वे महाराजक मेहमान बनकर इस मकान में रहना कदाचित स्वीकार न करेंगे। जीत-ठीक है तो उनके लिए दूसरा प्रबन्ध किया जायगा। इन्द-उनका आदमी उनके लिए खेमा वगैरह सामान लेकर आता ही होगा। जीत-(इन्द्रदेव से) हमारे पास कोई इत्तिला तो नहीं आई। इन्द्र-जी यह काम भी मेरे ही सुपुर्द किया गया था। जीत-तो क्या तुम्हारे पास उनका कोई आदमी या पत्र गया था? इन्द-जी नहीं वे स्वय राजा गोपालसिह के पास यह सुनकर गए थे कि माधवी उन्ही के यहाँ कैद है क्योंकि उन्होंने अपने हाथ से माधवी को मार डालने का प्रण किया था सुरेन्द्र-( ताज्जुब से ) तो क्या उन्होंने माधवी को अपने हाथों से मारा ? इन्द-जी नहीं, अपने खानदान की एक लड़की को मारकर हाथ रगने की बनिस्बत प्रतिज्ञा भग करना उत्तम समझा उस समय मैं भी वहाँ था । भूत-(सुरेन्द्रसिह के साथ हाथ जोडकर ) यदि मुझे आज्ञा हो तो खेमा वगैरह खडा करने का इन्तजाम में करें और समय पर आगवानी के लिए कुछ दूर जाकर अपना कलकित मुख उनको दिखाऊँ। यद्यपि मैं इस योग्य नहीं हू और न वे मेरी सूरत देखना पसन्द ही करेंगे मगर उनके नमक से पला हुआ यह शरीर उनसे दुर्दुराया जाकर भी अपनी प्रतिष्ठा ही समझेगा। सुरेन्द्र-ठीक है मगर उनकी इच्छा के विरुद्ध ऐसा करने की आज्ञा हम नहीं दे सकते। हा यदि तुम अपनी इच्छा से ऐसा करो तो हम रोकना भी उचित नहीं समझेंगे। ये बातें हो ही रही थीं कि जमानिया से राजा गोपालसिह के कूच करने की इत्तिला मिली इस तौर पर कि-किशोरी कामिनी और लक्ष्मीदेवी वगैरह को लिए राजा गोपालसिह चले आ रहे है। नौवां बयान चुनारगढ वाली तिलिस्मी इमारत के चारों तरफ छोटे बड़े सैकड़ों खेमों डेरों रावटियों और शामियानों की बहार दिखाई दे रही है जिनमें से बहुतों में लोगों के डेरे पड चुके हैं और बहुत अभी तक खाली पड़े है मगर वे भीधीरे-धीरे भर देवकीनन्दन खत्री समग्र ८४०