पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५१

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H इन दोनों नकाबपोशों की पोशाक बहुत ही बेशकीमत थी। सर पर बेलदार शलमा* था जिसके आगे हीरे का जगमगाता हुआ सरपंच था। भद्दी-मगर कीमती नकाब में बड़े-बड़े मोतियों की झालर लगी हुई थी। चपकन और पायजाम में भी सलमें सितारे की जगह हीरे और मोतियों की भरमार थी तथा परतले क बेशकीमत हीरे ने तो सभों को ताज्जुब ही में डाल दिया था जिसके सहारे जडाऊ कब्जे की तलवार लटक रही थी। दोनों नकाबपोशों की पोशाक एक ही ढग की थी और दोनों एक ही उम्र के मालूम पडते थे। यद्यपि देखने से तो यही मालूम होता था कि ये दोनों नकाबपोश राजाओ से भी ज्यादे दौलत रखने वाल और किसी अमीर खानदान के होनहार बहादुर है मगर इन दोनों ने बडे अदब के साथ महाराज सुरेन्द्रसिह और वीरेन्द्रसिहजीतसिह को सलाम किया और इन तीनों के सिवाय और किसी की तरफ ध्यान भी न दिया। महाराज की आज्ञानुसार राजा गोपालसिह के बगल में इन दोनों को जगह मिली जीतसिह ने सभ्यतानुसार कुशलमगल का प्रश्न किया। दुष्टों के सिरताज पतित के महाराजाधिराज नमकहरामों के किबलेगाह और दोजखियों के जहापनाह मायारानी के तिलिस्मी दारोगा साहब तलब किये गए और जब हाजिर हुए तो विना किसी को सलाम किए जहा चोपदार ने बैठाया बैठ गय । इस समय इनके हाथों में हथकडी और पैरों में ढीली वेडी पड़ी थी। जब से इन्हें कैदखाने की हवा नसीब हुई तब से बाहर की कोखबर इनके कानों तक पहुची न थी। इन्हीं के लिए नहीं बल्कि तमाम कैदियों के लिए इस बात का इन्तजाम किया गया था कि किसी तरह की अच्छी या बुरी खबर उनके कानों तक न पहुंचे और न कोई उनकी बातों का जवाब ही दे। महाराज का इशारा पाकर पहिले राजा गापालसिह न बात शुरू की और दारोगा की तरफ देख कर कहा - गोपाल-कहिए दारागा साहब मिजाज ता अच्छा है । अब आपको अपनी बकसूरी साबित करने के लिए किन-किन चीजों की जसरत है? दारोगा-मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है और उम्मीद करता हूँ कि आपको भी इस बात का कोई सबूत न मिला होगा कि मैंने आपके साथ किसी तरह की बुराई की थी या मुझे इस बात की खबर भी थी कि आपको मायारानी ने कैद कर रक्खा है। गोपाल-(मुस्कुराते हुए) नहीं-नहीं आप मेरे बारे में किसी तरह का तरददुद न करें। मैं आपसे अपने मामले में चात-चीत करना नहीं चाहता और न यही पूछना चाहता हूँ कि शुरू-शुरू में आपने मेरी शादी में कैसे-कैसे नोक-झोंक के काम किए और बहुत सी मडवेकीबातों को तै करते हुए अन्त में किस मायारानी को लेकर अपने किस मेहरबान गुरुभाई के पास किस तरह की मदद लेने गये थे या फिर जमाने ने क्या रग दिखाए. इत्यादि। मेरे साथ तो जो कुछ आपने किया उसे याद करने का ध्यान भी में अपने दिल में लाना पसन्द नहीं करता मगर मेरे पुराने दोस्त इन्द्रदेव आपसे कुछ पूछे विना भी न रहेंगे। उन्हें चाहिए था कि अब भी अपने गुरु भाई का नाता निया मगर अफसोस किसी वेविश्वासे ने उन्हें यह कह कर रज कर दिया है कि इन्दिरा और सर्दू की किस्मतों का फैसला भी इन्हीं दारागा साहब के हाथ से हुआ है ! राजा गोपालसिह के जुवानी थपेडा ने दारोगा का मुंह नीचा कर दिया। पुरानी बातों और करतूतों ने ऑखों के आगे ऐसी भयानक सूरतें पैदा कर दी जिनके देखने की ताकत इस समय उसमें न थी। उसके दिल में एक तरह का दर्द सा मालूम होने लगा और उसका दिमाग चक्कर खाने लगा। यद्यपि उसकी बदकिस्मती और उसके पापों ने भयानक अन्धकार का रूपधारण करके उसे चारों तरफ से घेर लिया था परन्तु इस अन्धकार में भी उसे सुबह के झिलमिलाते हुए तारे की तरह उन्मीद की एक बारीक और हलकी रोशनी बहुत दूर पर दिखाई दे रही थी जिसका सबब इन्द्रदेव था क्योंकि इसे (दारोगा को) इन्दिरा और सर्दू के प्रकट होने का हाल कुछ भी मालूम न था और वह यही समझ रहा था कि इन्द्रदेव पहिल की तरह अभीतक इन बातों से बेखवर होगा और इन्दिरा और सर्दू भी तिलिस्म के अन्दर मर-खप कर अपने बारे में मेरी बदकारियों का सबूत अपने साथ ही लेती गई होंगी अस्तु ताज्जुब नही कि आज भी इन्द्रदेव मुझे अपना गुरुभाई समझकर मदद करे। इसी सवब से उसने मुश्किल से अपने दिल को सम्हाला और इन्द्रदेव की तरफ देख के कहा- 'राम-राम भला इस अनर्थ का भी कुछ ठिकाना है । क्या आप भी इस बात को सच मान सकते है ? इन्द्रदेव-अगर इन्दिरा मर गई होती और यह कलमदान नष्ट हो गया होता तो इस बात को मानने के लिए मुझे जरूर कुछ उद्योग करना पड़ता। इतना कहकर इन्द्रदेव ने इन्दिरा की तस्वीर वाला वह कलमदान निकाल कर सामने रख दिया। .

  • पगडी का सिरा।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९ ८४३