पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५२

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६. इन्द्रदेव की बातें सुन और इस कलमदान की सूरत पुन देखकर दारोगा की बची बचाई उम्मीद भी जाती रही। उसने भय और लज्जा से सिर झुका लिया और बदन में पैदा हुई कैंपकपी को रोकने का उद्योग करने लगा। इसी बीच में भूतनाथ बोल उठा --- दारोगा साहब इन्दिरा को आपके पजे से बार-बार छुड़ाने वाला भूतनाथ भी ता आपक सामन ही मौजूद है और अगर आप चाहें तो उस नेकवख्त औरत से भी मिल सकते है जिसने उस बाग में आपको कूएँ क अदर और बचारी इन्दिरा का दुख के अथाह समुद्र से बाहर किया था । भूतनाथ की बात सुनते ही दारोगा काप गया और घबडाकर उन नए आए हुए दानों नकाबपाशों की तरफ देखन लगा। उसी समय उनमें से एक नकाबपोश ने नकाब हटाकर रुमाल से अपने चहरे का इस तरह पोछा जैस पसीना आने पर काई अपने चहरे का साफ करता है लेकिन इसस इसका असल मतलब कवल इतना ही था कि दारागा उम्की सूरत देख ले। दारोगा के साथ ही साथ और कई आदमियों की निगाह उस नकाबपोश के चेहरे पर पड गई मगर उनमें राकिर ने भी आज के पहिलेउसकीस्त नहीं देखी थी इसलिए कोई कुछ अनुमान न कर सका हॉ दारागा उसकी सूरत रखने ही भय और दुख से पागल हो गया। वह घबड़ाकर उठ खडा हुआ और उसी समय चक्कर खाकर जमीन पर गिर साथ ही वेहोश हो गया। यह कैफियत दख लोगों को बडा ही ताज्जुब हुआ। राजासुरेन्दसिह,जीतसिह वीरन्द्रसिह तेजसिहदेवीसिंह पार राजा गोपालसिह ने भी उस नकाबपोश की सूरत देख ली थी मगर इनमें से न तो किसी न उस पहिचाना और न उसन कुछ पूछना ही उचित जाना अस्तु आज्ञानुसार दरवार बर्खास्त किया गया और वह कमबख्त नकटा दारागा पुन कैदखान की अधेरी कोठरी में डाल दिया गया । उन दोनों नकाबपोशों में से एक ने तेजसिह से पूछा कल किसका मुकदमा होगा? जवाब में तेजसिह ने बलभदसिह का नाम लिया और दोनों नकाय पोश वहा से रवाना हो गया । ग्यारहवां बयान दूसरे दिन नियत समय पर फिर दरबार लगा और वे दोनो नकाबपोश भी आ मौजुद हुए। आज के दरबार में बलभद्रसिह भी अपने चेहर पर नकाब डाले हुए थे। आज्ञानुसार पुन वह नकटा दारोगा और नकली वलभदसिह हाजिर किए गए और सबसे पहिले इन्द्रदेव ने नकली बलभदसिह से इस तरह पूछना शुरू किया- इन्द्रदेव-क्यों जी, क्या असली बलभद्रसिह का ठीक-ठीक पता न बताओगे? नकली बलमद-(लम्बी साँस लेकर और महाराजा साहब की तरफ देखकर ) कैसा बुरा जमाना हो रहा है। हजार बार पहिचाने जाने पर भी अभी तक मै नकली बलभद्रसिह ही कहा जाता हू और गुनाहों की टोकरी सर पर लादने वाले भूतनाथ को मूछों पर ताव देता हुआ देखता हू। (इन्द्रदेव की तरफ देख कर ) मालूम होता है कि आपको जमानिया के दारोगा वाला रोजनामचा नहीं मिला. अगर मिलता तो आपको मुझ पर किसी तरह का शक न रहता। भूत-(जैपाल अर्थात नकली बलभद्रसिंह से ) तुझे अभी तक हौसला बना ही हुआ है ? (तेजसिह से) कृपानिधान अभी कल की बात है. आप उन बातों को कदापि न भूले होंगे जो मैने कमलिनीजी के तालाब वाले तिलिस्मी मकान में इस दुष्ट के सामने आप लोगों से उस समय कही थीं जब आप लोग इसे सच्चा मान कर मुझे कैदखान की हवा खिलाने का बन्दोबस्त कर चुके थे। क्या मैंने नहीं कहा था कि महाराज के सामने मेरा मुकद्दमा एक अनूठा रंग पैदा करके मेरे बदले में किसी दूसरे ही को दिखाने की कोठरी का मेहमान बनावेगा ? देखिये आज वह दिन आपकी आँखों के सामने है आपके साथ वे लोग भी हर तरह से मेरी बातों को सुन रहे है जिन्होंने उस दिन इसे असली बलभद्रसिह मान लिया और मुझे घृणा की दृष्टि से भी देखना पसन्द नहीं करते थे। आशा है आप लोग उस समय की भूल पर अफसोस करेंगे और इस समय मैं बडे अनूठे रहस्यों को खोलकर जो तमाशा दिखाने वाला हू उसे ध्यान देकर देखेंगे। तेज-बेशक ऐसा ही है औरों के दिल की तो मैं नहीं कह सकता,मगर मैं अपनी उस समय की भूल पर जरूर अफसोस करता हूं। इस कमरे में जिसमें दार लगा हुआ था ऊपर की तरफ कई खिडकिया थीं जिनमें दोहरी चिकें पड़ी हुई थी जहा वैठी लक्ष्मीदेवी कमलिनी वगैरह इन बातों को बड़े गौर से सुन रही थीं। भूतनाथ ने पुन जैपाल की तरफ देखा और कहा-- देवकीनन्दन खमी समग्र