पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५३

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दि भूत-अब मैं उन बातों को भी जान चुका हूँ जिन्हें उस समय न जानने के कारण मैं सचाई के साथ अपनी बेकसूरी साबित नहीं कर सकता था। हाँ कहो अब तुम अपने बारे में क्या कहते हो? जैपाल-मालूम होता है कि आज तू अपने हाथ की लिखी हुई उन चीठियों से इनकार किया चाहता है जो तेरी पुराइयों के खजान को खोलने क काम में आ चुकी है और आवेगी। क्या लक्ष्मीदेवी की गद्दी पर मायारानी को बैठाने की कार्रवाई में तूने सबसे बड़ा हिस्सा नहीं लिया था और क्या वे सब चीठियाँ तेरे हाथ की लिखी हुई नहीं है ? भूत-नहीं-नहीं मैं इस बात से इनकार नहीं करूँगा कि वचीठियों मेरे हाथ की लिखी हुई नहीं है बल्कि इस बात को सावित करूँगा कि लक्ष्मीदेवी के बारे में मैं बिल्कुल बेकसूर हू और वे चीठियाँ जिन्हें मैंने अपने फायदे के लिए लिख रक्खा था मुझे नुकसान पहुंचाने का सबब हुई. तथा इस बात को भी सक्तिकरूँगा कि मैं वास्तव में वह रघुबरसिह नहीं हू जिसने लक्ष्मीदेवी के बारे में कार्रवाई की थी। इसके साथ ही तुझे और नकटे दारागा को भी यह सुनकर-अपने उछलते हुए कलजे को रोकने के लिए तैयार हो जाना चाहिए कि केवल असली बलभद्रसिह ही नहीं बल्कि इन्दिरा तथा सई भी दम-भर म तुम लोगों की कलई खोलने के लिए यहाँ आ चुकी है। जैपाल-(वहयाई के साथ ) मालूम होता है कि तुम लोगों ने किसी को जाली बलभद्रसिह बनाकर राजा साहब के सामने पेश कर दिया है। इतना सुनते ही बलभद्रसिंहन अपने चेहरे से नकाय हटाकर जैपाल की तरफ देखा और कहा, नहीं-नहीं जाली बलभद्रसिह बनाया नहीं गया बल्कि में स्वय यहाँ बैठा हुआ तेरी बातें सुन रहा है। बलमदसिह की सूरत देख के एक दफे तो जैपाल हिचका मगर तुरन्त ही उसने अपने को सम्हाला और परले सिरे की बेहयाई को काम में ला कर बोला आहा हेलासिह भी यहाँ आ गए ! मुझे तुमसे मिलने की कुछ भी आशा न थी. क्योंकि मेरे मुलाकातयों न जोर दकर कहा था कि हेलासिह मर गया और अब तुम उसे कदापि नहीं देख सकते।' बलमद-(मुस्कुराता हुआ तेजसिह की तरफ देख के ) ऐसे बेहया की सूरत भी आज के पहिले आप लोगों ने न देखी होगी। (जैपाल से) मालूम होता है कि तू अपने दोस्त हेलासिह की मौत का सवय भी किसी दूसरे को ही बताना चाहता है मगर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे दोस्त मूतनाथ मेरे साथ हेलासिह के मामले का सबूत भी वेगम के मकान सेलते आये है। भूत-हॉ-हॉ वह सबूत भी मेरे पास मौजूद है जो सबसे ज्यादे मेरे खास मामले में काम देगा। इतना कह के भूतनाथ ने दो-चारकागज दस बारह पन्ने की एक किताब, और हीरे की अंगूठी जिसके साथ छोटा सा पुरजा बँधा हुआ था अपने बटुए में से निकाल कर राजा गोपालसिह के सामने रख दिया और कहा, 'बेगम नौरतन और जमालो को भी तलव करना चाहिए। इन चीजों को गौर से देखकर राजा गोपालसिह ताज्जुब में आ गए और भूतनाथ का मुंह देखने लगे। भूत-(गोपालसिह से आप जिस समय कृष्णाजिन्न की सूरत में थे उस समय मैंने आपसे अर्ज किया था कि अपनी बेकसूरी का बहुत अच्छा सबूत किसी समय आपके सामने ला रक्खूगा सो यह सबूत मौजूद है इसी से दोनों काम चलेगा। - गोपाल-(ताज्जुब के साथ) हाँ ठीक है .( बीरेन्द्रसिह 'ते) य बडे काम की चीजें भूतनाथ ने पेश की है। बगम नौरतन और जमालो के हाजिर होने पर मै इनका मतलब वयान करूँगा। वीरेन्द्रसिह ने तजसिह की तरफ देखा और तेजसिह ने बगम नौरतन और जमालों के हाजिर होने का हुक्म दिया। इस समय जैपाल का कलेजा उछल रहा था। वह उन चीजों को अच्छी तरह देख नहीं सकता था और न उसे इसी बात का गुमान था कि बगम के यहा से भूतनाथ फलानी चीजें ले आया है। कैदियों की सूरत में बेगम नौरतन और जमालो हाजिर हुई। उस समय एक नकाबपोश ने जिसने भूतनाथ की पेश की हुई चीजों को अच्छी तरह देख लिया था गापालसिह से कहा में उम्मीद करता हूँ कि भूतनाथ की पेश की हुई इन चीजों का मतलब बनिस्बत गपके भै ज्यादा अच्छी तरह बयान कर सकूगा। यदि आप मेरी बातों पर विश्वास करके य चीजे मरे हवाल करें तो उत्तम हो। नकाबपोश की बातें सभी ने ताज्जुव के साथ सुनी खास करके जैपाल ने जिसकी विचित्र अवस्था हो रही थी। यद्यपि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा था मगर साथ ही इसके यह भी साच हुए था कि मेरी चालबाजियों में उलझे हुए भूतनाथ का कोई कदापि यचा नहीं सकता और इस समय भूतनाथ के मददगार जी आदमी है वे लोग तभी भूतनाथ का बचा सकेंगे जब मरी बातों पर पर्दा डालेंगे या मेरे कसूरों की माफी दिला देंगे तथा जब तक एसा न होगा मैं कभी भूतनाथ को अपने पजे से निकल्न न दूंगा। यही सबब था कि एसी अवस्था में भी वह बोलने और बातें बनाने से बाज नहीं आता था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९