पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८५५

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तरह बैठ हुए दिखाई न देते, क्योंकि भूतनाथ की ही बदौलत दारोगा की गुप्त कुमेटी का अन्त हुआ और इसी की बदौलत कमलिनी भी मायारानी के साथ मुकाबला करने लायक हुई। अगर भूतनाथ ने दो काम बुरे किये है तो दस काम अच्छे भी किए है जो आप लोगों से छिपे नहीं है। भूतनाथ के अनूठे कामों का बदला यह नहीं हो सकता कि उसे किसी तरह की सजा मिले बल्कि यही हो सकता है कि उसे मुह मॉगा इनाम मिले. आशा है कि मेरी इस बात को महाराज खुले दिल से स्वीकार भी करेंगे। इतना कहकर नकाबपोश चुप हो गया और महाराज की तरफ देखने लगा। महाराज का इशारा पाकर तेजसिह ने कहा 'महाराज आपकी इस बात को प्रसन्नता के साथ स्वीकार करते हैं। इतना सुनते ही भूतनाथ ने खड़े होकर सलाम किया और नकाबपोश ने भी सलाम करके पुन इस तरह कहना शुरू किया बहुतों को ताज्जुब होगा कि जैपाल जब बलभदसिह बन ही चुका था तो इतने दिनों तक कहा और क्योंकर छिपा रहा लक्ष्मीदेवी या कमलिनी से मिला क्यों नहीं और इसी तरह से भूतनाथ भी जब जानता था कि बलभदसिह कौन और कहा है तो उसने इस बात को इतने दिनों तक छिपा क्यों रक्या? इसका जवाव में इस तरह देता हूँ कि अगर भूतनाथ कमलिनी का ऐयार बना हुआ न होता तो यह नकली बलभद्रसिह अर्थात जैपाल जिसे भूतनाथ मरा हुआ समझे बैठा था कभी का प्रकट हो चुका होता मगर भूतनाथ का डर इसे हद से ज्याद था और यह चाहता था कि कोई ऐसा जरिया हाथ लग जाय जिससे भूतनाथ इसके सामने सर उठान लायक न रह और तब यह प्रकट होकरअपने को बलभदसिह के नाम से मशहूर करे। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात वह छोदी सन्दूकडी जिसकी तरफ देखने की भी ताक्त भूतनाथ में नहीं है इसके हाथ लग गई और वह कागज का मुद्दामीडसे मिल गया जो भूतनाथ के हाथका लिखा हुआ था।अपनी इस बात के सबूत में मैं इस (हाथ की चीठी दिखाकर ) चीठी कोजो आज के बहुत दिन पहिले की लिखी हुई है पढकर सुनाऊँगा । इतना कह कर उनसे चीठी पढना शुरू किया जिसमें यह लिखा हुआ था - 'प्यारी बेगम वह सन्दूकडी तो मेरे हाथ लग गई जो भूतनाथ को वस में करने के लिए जादू का असर रखती है मगर भूतनाथ तथा उसके आदमी वेहतर मेरे पीछे पड़े हुए हैं। ताज्जुब नहीं कि में गिरफ्तार हो जाऊँ इसलिए यह सन्दूकडी तुम्हारे पास भेजता हू, तुम इसे हिफाजत के साथ रखना। मैं भूतनाथ को धाखा देने का बन्दोबस्त कर रहा हूँ। अगर में अपना काम पूरा कर सका तो नि सन्देह भूतनाथ को विश्वास हो जायगा कि जैपाल भर गया। उस समय मै तुम्हारे पास आकर अपनी खुशी का तमाशा दिखाऊँगा। मुझ इस बात का पता लग चुका है कि वह कागज की गठरी उस्की स्त्री के सन्दूक में है जिसका जिक्र मै कई दफे तुमस कर चुका हूँ और जिसके मिले विना मै अपन को बलभदसिह बना कर प्रकट नहीं कर सकता। -वही जैपाल। पढ़ने के बाद नकाबपोश ने वह चीठी गोपालसिह के आगे फेंक दी और बेगम की तरफ देख के पूछा तुझे याद है कि यह चीडी किस महीने में जैपाल ने तेरे पास भेजी थी? बेगम बहुत दिन की बात हो गई इसलिए मुझे महीना और दिन तो याद नहीं है। नकाव-(जैपाल स ) क्या तुझे याद है कि यह चीठी तूने किस महीने में लिखी थी? जैपाल-वह चीठी मेरे हाथ की लिखी हुई होती तो मैं तेरी बात का जवाब देता। नकाच तो यह बेगम क्या कह रही है ? जैपाल-तू ही जाने कि तेरी बेगम क्या कह रही है ? मैं तो उसे पहिचानता भी नहीं । इतना सुनते ही नकाबपोश को गुस्सा चढ आया। उसने अपने चेहरे से नकाब हटा कर गुस्से भरी निगाहों से जैयाल की तरफ देखा जिसकी ताज्जुब भरी निगाहपहिले ही उसकी तरफ जम रही थीं और इसके बाद तुरन्त अपना चेहरा ढॉक लिया। न मालूम उस नकाबपोश की सूरत में क्या बात थी कि उसे देखते ही जैपाल की सूरत बिगड गई और वह कांपता तथा नकाबपोश की तरह देखता हुआ अपने हथकडी सहित हाथों को जोडकर बोला, बस-यसमाफ कीजिए, बेशक यह चीठी मेरे हाथ की लिखी हुई है ! ओफ, मैं नहीं जानता था कि तुम अभी तक जीते हो। मै तुम्हारी तरफ देखना नहीं चाहता बल्कि अपनी मौत चाहता हू इतना कहकर जैपाल ने दोनों हाथों से अपनी ऑखे ढक ली और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगा। इस नकाबपोश की सूरत पर सभों की तो नहीं मगर बहुतों की निगाह पडी। हमारे राजा साहब, ऐयार लोग चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १९