पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हम ऊपर लिख आये है कि इस सफर में रनवीरसिह फकीराना भेष में थे साथ ही उनका शरीर भी इतना काला हो गया था कि उनकी माँ भी यदि देखती तो शायद पहिचान न सकती इसलिये हमारे बहादुर ने निश्चय कर लिया कि ये लोग मुझे कदापि न पहिचान सकगे अस्तु पास चल कर टोह लेना चाहिय कि ये लोग कहाँ जा रहे हैं और इस पालकी के अन्दर कौन है। रनबीरसिह मस्त साधु की नकल करते हुए उस पालकी की तरफ चले अर्थात् कभी जमीन और कभी आसमान की तरफ दखत ओर यह बकते हुए आगे बढे कि- अहा । तू ही ता है । जब पालकी के पास पहुंचे तो सिपाहियों ने हाथ जोडा और अनोखे यावाजी ने पालकी की तरफ देख के कहा--- अहा! तू ही तो है । फिर आसमान की तरफ देख के कहा - 'अहा! तू ही ता है | उस पालकी का पट खुला हुआ था इसलिये रनवीरसिह ने देख लिया कि उसके अन्दर बालेसिह लेटा हुआ है। ऐसे उजाड और बीहड स्थान में बालेसिह को दख कर रनवीरसिह को ताज्जुब नहीं हुआ क्योंकि स्वामीजी की चदोलत वे बालेसिह के गुप्त भेदों को अच्छी तरह जान चुके थे और उन्हें यह भी निश्चय हो गया था कि जहाँ मै जा रहा हूँ बालसिह भी उसी जगह जायगा । बालेसिह क सिपाहियों ने भी रनवीरसिह को अच्छी तरह गोर से देखा मगर महात्मा जान कर चुप हो रह कुछ पूछने की हिम्मत न पडी। रनवीरसिह भी ज्यादा देर तक पालकी के पास न रहे. वहाँ से लौट कर चश्मे क पार उतर गये और एक पेड के नीच बैठ कर देखने लगे कि अब वे लोग क्या करते है या किधर जाते हैं।

  • घण्ट ही भर के बाद अन्धकार ने धीरे धीरे अपना दखल जमा लिया । बालेसिह के सिपाहियों ने मशालें जलाई

कहारों ने पालकी उठाई और सभी ने उस तरफ का रास्ता लिया जिधर चश्में का पानी बह कर जा रहा था। रनबीरसिह को भी उसी तरफ जाना था मगर एक तो सन्ध्या हा गई थी दूसरे बालेसिह के साथ जाना भी मुनासिब न जाना लाचार यह निश्चय किया कि रात इसी जगल में वितावेंगे और सवेरा होने पर रवाना होंगे। रनबीरसिह एक पत्थर की चट्टान पर लेट रहे मगर दिन को सो जाने और इस समय तरह तरह के विचारों में डूबे रहने के कारण उन्हें नींद न आई। पहर रात जात जाते तक जगली जानवरा के बोलने की आवाज आने लगी। ऐसी अवस्था में वहाँ ठहरना उचित न जान रनबीरसिह एक ऊँचे और घने पेड पर चढ़ गये उन्हें पेड पर चढे आधी घडी से ज्यादे न बीती थी कि दूर से मशाल की रोशनी नजर आई जो इन्हीं की तरफ चली आ रही थी, कुछ पास आने पर मालूम हुआ कि एक आदमी हाथ में मशाल लिये हुए आगे है और उसके पीछे पॉच औरतें और हाथ में नगी तलवार लिये हुए एक सिपाही है। कुछ ही देर में वे औरतें उसी पेड़ के नीचे आ पहुँची जिस पर रनबीरसिह चढ़े हुए थे। वे पाँचों औरतें कमसिन और खूबसूरत थी लेकिन पौशाक उनकी विलकुल ही सादी यद्यपि साफ थी,बदन में जेवर का नाम निशान न था। ये औरतें बहुत ही खूबसूरत और भोली भाली थीं मगर इनके चेहरे पर रज गम और तरद्द की निशानी साफ साफ पाई जाती थी। ये सब औरतें एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गई जो उसी पेड़ के नीचे था एक लरफ मशालची खडा हो गया और दूसरी तरफ वह सिपाही भी हुकूमत की निगाह से उन औरतों की तरफ देखता हुआ खड़ा हो गया। अन्दाज से मालूम होता था कि इन सभों को शीघ्र ही किसी के आने की आशा है क्योंकि वे पाँचों औरतें सिर झुकाए बैठी हुई थी। मशालची अपना काम कर रहा था, सिपाही को केवल हिफाजत का खयाल था, पूरी तौर से सन्नाटा था कोई किसीसे बात करने की इच्छा भी नहीं करता था। आधे घण्टे तक यही हालत रही. इसके बाद घोडे की टापों की नर्म आवाज आने लगी जिससे साफ जाना जाता था कि कोई आदमी घोडे पर सवार धीरे धीरे इसी तरफ आ रहा है। टापों की आवाज ने सभी को चौंका दिया, मशालची ने कुप्पी में से तेल उलट कर मशाल की रोशनी तेज कर दी सिपाही अपने कुर्ते को जो कईजगह से सिकुड गया था खींच तान कर और चपरास को ठीक कर मुस्तैदी के साथ खड़ा हो गया मगर उन पाँचों औरतों के चेहरे पर बदहवासी का हिस्सा बहुत ज्यादा हो गया और वे तरदुद भरी निगाहों से एक दूसरी को देखने और ऑसू की बूंदें गिराने लगीं। बात की बात में वह सवार वहाँ आ पहुचा जिसके आने की आहट ने सभों की हालत बदल दी थी। उसे देखते ही वे औरतें उठी और हाथ जोड कर मगर सिर झुकाये हुए सामने खडी हो गई। पेड पर बैठे हुए रनबीरसिह सोच रहे थे कि वह बेशक कोई जालिम और भयानक रूपधारी मनुष्य होगा जिसके आने की आहट से वे औरतें ज्यादे दुखी और परेशान हो गई थी मगर नहीं यह आदमी बहुत ही हसीन और नौजवान था। इसकी पोशाक भी बेशकीमत थी इसका मुश्की घोडा भी बहुत ही खूबसूरत और चञ्चल था, और सूरत देखने से यह जवान नेक और रहमदिल भी मालूम पड़ता था, फिर भी न मालूम वे औरतें उसके आने से इतना क्यों डरी थीं। हाँ एक बात और कहने के लायक है जो यह कि उस अभी आये हुए नौजवान की सूरत से भी रज और गम की देवकीनन्दन खत्री समग्र १०९४