पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दि Are को भी गौर सेदेखने का शौक इन्हें हुआ मगर ठहरने की माहलत न मिलने के सवव से लाचार थे। यहाँ की जमीन सुर्ख मखमली मुलायम गद्दा विछा हुआ था और सदर दरवाजे के अतिरिक्त और भी तीन दाजे नजर आ रहे थे जिन पर बेशकीमत किमखाब क पर्दे पड़े हुए थे और उनमें मोलियों की झालरें लटक रही थीं। हमारे दोनों ऐयारों को दाहिने तरफ वाले दर्वाजे के अन्दर जाना पड़ा जहा गली के ढग पर रास्ता घूमा हुआ था। इस रास्ते में भी मखमली गद्दा बिछा हुआ था। दोनों तरफ की दीवारें साफ और चिकनी थी तथा छत के सहारे एक विल्लौरी कन्दील लटक रही थी जिसकी रोशनी इस सात-आठहाथ लम्बी गली क लिए काफी थी। इस गली को पार करके ये दोनों एक बहुत बड़े कमरे में पहुचाए गए जिसकी सजावट और खूवी न उन्हें ताज्जुब में डाल दिया और वे हैरत की निगाह से चारो तरफ दखने लग। जगल मैदान पहाड खोह दर्रे झरने शिकारगाह तथा शहरपनाह किले मारचे और लडाई इत्यादि की तस्वीरें चारो तरफ दीवार में इस खूबी और सफाई के साथ बनी हुई थीं कि देखने वाला यह कह सकता था कि बस इससे ज्याद कारीगरी और सफाई का काम मुसौवर कर ही नहीं सकता। छत पर हर तरह की चिडियों और उनके पीछे झपटते हुए वाज वहरी इत्यादि शिकारी परिन्दों की तस्वीरें बनी हुई थीं जो दीवारगीरों और कन्दीलों की तेज रोशनी के सवव बहुत साफ दिखाई दे रही थीं। जमीन पर साफ सुथरा फर्श विछा हुआ था ओर सामने की तरफ हाथ भर ऊची गद्दी पर दो नकाबपोश तथा गद्दी के नीच और कई आदमी अदब के साथ वेठे हुए थे मगर उनमें से ऐसा कोई भी न था जिसके चहरे पर नकाब न हो। दवीसिह और भूतनाथ को उम्मीद थी कि हम उन्हीं दोनों नकाबपोशों को उसी ढग की पोशाक में देखेंगे जिन्हें कई दफे देख चुके हैं मगर यहा उसके विपरीत देखने में आया। इस बात का निश्चय तो नहीं हो सकता था कि इस नकाव के अन्दर वही सूरत छिपी हुई है या कोई और लेकिन पोशाक और आवाज यही प्रकट करती थी कि वे दानों कोई दूसरे ही हे मगर इसमें भी कोई शक नहीं कि इन दोनों की पोशाक उन नकाबपोशों से कहीं बढचढ के थी जिन्हें भूतनाथ और देवीसिह देख चुके थे। जब देवीसिह और भूतनाथ उन दोनों नकाबपोशों के सामने खडे हुए तो उन दोनों में से एक ने अपने आदमियों से पूछा ये दोनों कौन है जिन्हें गिरफ्तार कर लाए हौ ? एक-जी इनमें से एक ( हाथ का इशारा करके ) राजा वीरेन्द्रसिह के ऐयार देवीसिह हैं और यह वही मशहूर भूतनाथ है जिसका मुकद्दमा आज कल राजा वीरन्द्रसिह के दार में पेश है। नकाय-( ताज्जुब से ) हा । अच्छा तो ये दोनों यहा क्यों आये ? अपनी मर्जी से आये है या तुम लोग जबर्दस्ती गिरफ्तार कर लाए हो? वही आदमी-इस हाते के अन्दर ता ये दोनों आदमी अपनी मर्जी से आये थे मगर यहा हम लोग गिरफ्तार करके लाय है। नकाव-(कुछ कडी आवाज में) गिरफ्तार करने की जरूरत क्यों पड़ी? किस तरह मालूम हुआ कि ये दोनों यहा बदनीयती के साथ आये है ? क्या इन दोनों ने तुम लोगों से कुछ हुज्जत की थी? वही आदमी-जी हुज्जत तो किसी से न की मगर छिप-छिपकर आने और पेड की आड में खडे होकर ताक झाक करने से मालूम हुआ कि इन दोनों की नीयत अच्छी नहीं है इसीलिए गिरफ्तार कर लिए गये। नकाव-इतने बड़े प्रतापी राजा वीरेन्द्रसिह के ऐसे नामी ऐयार के साथ केवल इतनी बात पर इस तरह का बर्ताव करना तुम लोगों को उचित न था कदाचित ये हम लोगों से मिलने के लिए आए हो। हा अगर केवल भूतनाथ के साथ ऐसा बर्ताव होता तो ज्यादे रज की बात न थी। यद्यपि नकाबपोश की आखिरी वात भूतनाथ को कुछ बुरी मालूम हुई मगर कर, ही क्या सकता था ? साथ ही इसके यह भी देख रहा था कि नकाबपोश भलमनसी और सभ्यता के साथ यातें कर रहा है जिसकी उम्मीद यहा आने के पहिले कदापि न थी। अस्तु जव नकाबपोश अपनी बात पूरी कर चुका तो इसके पहिले कि उसका नौकर कुछ जवाब दे भूतनाथ बोल उठा- भूतनाथ-कृपानिधान हम लोग यहा किसी बुरी नीयत से नहीं आये है न तो चोरी करने का इरादा है न किसी को तकलीफ देने का मैं केवल अपनी स्त्री का पता लगाने के लिए यहा आया हू, क्योंकि मेरे जासूसों ने मेरी स्त्री के यहा होने की मुझे इत्तिला दी थी। नकाव-(मुस्कुरा कर) शायद ऐसा ही हो मगर मेरा ख्याल कुछ दूसरा ही है। मेरा दिल कह रहा है कि तुम लोग उन दोनों नकाबपोशों का असल हाल जानने के लिए यहा आये हो जो राजा साहब केदार में जाकर अपने विचित्र कामों से लोगों को ताज्जुब में डाल रहे हैं मगर साथ ही इसके इस बात को भी समझ लो कि यह मकान उन दोनों नकाबपोशों देवकीनन्दन खत्री समग्र