पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६३

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दि का नहीं है बल्कि हमारा है। उनके मकान में जाने का रास्ता तुम उस सुरग के अन्दर ही छोड आये जिसे तै करके यहा आये हो अर्थात् हमारे और उनके मकान का रास्ता बाहर से तो एक ही हे मगर सुरग के अन्दर ही दोहो गया है। खेर जो कुछ हो हम इस बारे में ज्यादा बात-चीत करना उचित नहीं समझते और न तुम लोगों को कुछ तकलीफ ही देना चाहते हैं बल्कि अपना मेहमान समझ कर कहते है कि अब आ गये हो रात भर कुटिया में आराम करो सवेरा होने पर जहा इच्छा हो चल जाना। (गद्दी के नीचे बैठे हुए एक नकाबपोश की तरफ देख के ) यह काम तुम्हारे सुपुर्द किया जाता है, इन्हें खिला-पिला कर ऊपर वाली मजिल में सोने की जगह दो और सुबह को इन्हें खोह के बाहर पहुचा दो। इतना कहकर वह नकाबपोश उठ खडा हुआ और उसका साथीं दूसरा नकाबपोश भी जाने के लिए तैयार हो गया। जिस जगह इन नकाबपोशों की गद्दी लगी हुई थी उस (गद्दी) के पीछे दीवार से एक दर्वाजा था जिस पर पर्दा लटक रहा था। दोनों नकाबपोश पर्दा उठा कर अन्दर चले गये और यह छाटा सा दर वर्खास्त हुआ। गद्दी के नीचे बैठने वाले भी मुसाहव दर्यारी जो कोई हो उठ खडे हुए और उस आदमी ने जिसे दोनों ऐयारों की मेहमानी का हुक्म हुआ था देवीसिह और भूतनाथ की तरफ देख कर कहा-- आप लोग मेहरबानी करके मेरे साथ आइये और ऊपर की मजिल में चलिए। भूतनाथ और देवीसिह भी कुछ उज्ज न करके पीछे-पीछे चलने के लिए तैयार हो गये। नकाबपोश की बातों ने भूतनाथ और देवीसिह दोनों ही को ताज्जुब में डाल दिया। भूतनाथ ने नकाबपोश से कहा था कि मैं अपनी स्त्री की खोज में यहा आया हू, मगर बहुत कुछ कह जाने पर भी नकाबपोश ने भूतनाथ की इस बात का कोई जवाब न दिया और ऐसा करना भूतनाथ के दिल में खुटका पेदा करने के लिए कम न था। भूतनाथ को निश्चय हो गया कि उसकी स्त्री यहा है और अवश्य है। उसने सोचा कि जो नकाबपोश राजा बीरेन्द्रसिंह के दर्वार में पहुच कर बडी बडी गुप्त बातें इस अनूठे ढग से खोलते है उनके घर में यदि मैं अपनी स्त्री को देखू तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमारे देवीसिह ने तो एक शब्द भी मुंह से निकालना पसन्द न किया, न मालूम इसका सबब क्या था और वे क्या सोच रहे थे मगर कम से कम इस बात की शर्म तो उनको जरूर ही थी कि वे यहा आने के साथ ही गिरफ्तार हो गये। यह तो नकाबपोशों की मेहरवानी थी कि हथकडी और वेडी से उनकी खातिर न की गई। वह नकाबपोश कई रास्तों सघूमता-फिरता भूतनाथ और देवीसिह को ऊपर वाली मजिल में ले गया। जो लोग इन दोनों को गिरफ्तार कर लाए थे वे भी उनके साथ गये। जिस कमरे में भूतनाथ और देवीसिह पहुचाये गये वह यद्यपि बहुत बडा न था मगर जरूरी ओर मामूली ढग के सामान से सजाया हुआ था। कन्दील की रोशनी हो रही थी जमीन पर साफ सुथरा फर्श बिछा था और कई तकिए भी रक्खे हुए थे एक सगमर्मर की छोटी चौकी बीच में रक्खी हुई थी और किनारे दो सुन्दर पलग आराम करने के लिए बिछे हुए थे। भूतनाथ और देवीसिह को खाने पीने के लिए कई दफा कहा गया मगर उन दोनों ने इनकार किया अस्तु लाचार होकर नकाबपोशों ने उन दोनों को आराम करने के लिए उसी जगह छोडा और स्वय उन आदमियों को जो दोनों ऐयारों को गिरफ्तार कर लाये थे साथ लिए हुए वहा से चला गया। जाते समय ये लोग बाहर से दर्वाजे की जजीर बन्द करते गये और इस कमरे में भूतनाथ और देवीसिह अकेले रह गये। दूसरा बयान- जब दोनों ऐयार उस कमरे में अकेले रह गये तय थोडी देर तक अपनी अवस्था और भूल पर गौर करने के बाद आपुस में यों बातचीत करने लगे देवी-यद्यपि तुम मुझसे और मैं तुमसे छिप कर यहा आया मगर यहा आने पर वह छिपना बिल्कुल व्यर्थ गया। तुम्हारे गिरफ्तार हो जाने का तो ज्यादे रञ्ज न होना चाहिये क्योंकि तुम्हें अपनी जान की फिक्र पडी थी अतएव अपनी भलाई के लिए तुम यहा आये थे और जो कोई किसी तरह का फायदा उठाना चाहता है उसे कुछ न कुछ तकलीफ भी जरूर ही भोगनी पडती है मगर मैं तो दिल्लगी ही दिल्लगी में बेवकूफ बन गया। न तो मुझे इन लोगों से कोई मतलब ही था और न यहा आए विना मेरा कुछ हर्ज ही होता था । भूत-(मुस्कुरा कर) मगर आने पर आपका भी एक काम निकल आया क्योंकि यहा अपनी स्त्री को देख कर अब किसी तरह भी जाच किए बिना आप नहीं रह सकते। . चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २०