पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८६८

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lort साथ तक क्यों नहीं आये। हमारे महाराज समझ गये फि देवीसिह की तरह भूतनाथ भी उन्हीं दोनों नकाबपागों का पता लगाने चला गया मगर उन दानों के नलोटने से एक तरह को चित्ता पैदा हो गई और लाचार होकर आज दवारे-आम का जलसा बन्द रखना पड़ा। दर्वारे-आम के बन्द होन की खबर वहा वालों का लो मिल गई मगर वे दोनों नकाबपोश अपन मामूली समय पर सा ही गये और उनके आने की इतिला गजा वीरन्द्रसिह म ली गई। उस समय राजा बारेन्द्रसिह एकान्न में तेजसिह तथा और भी कई ऐयारों के साथ बैठे हुए देवीसिह और भूतना ग के सार में बात कर रह थे। उरोंने ताज्जुद नकाबपोशों का आना सुना और उसी जगह हाजिर करन का हुक्म दिया। हाजिर होकर दोनों नकाबपोशान बड अदब से सलाम किया और आज्ञा पाकर महाराज सयाजी दूर पर तेजासह के बगल में बैठ गये। इस समय तखलिय का दौर था तथा गिनती के मामूली आदमी थेउ हुए थे गजा वीरे दसिह का नकाबपोश की बातें सुनने का शौक था इसलिये तेजसिह के बगल ही में बैठने की आज्ञा दी और स्वय बातचीत कर लग। बीरेन्द-आच भूतनाथ के न होन ल मुकदमे की कारवाइ रोक देनी पड़ी। नकाय-(अदब से हाथ जोडकर ) जी हा मैने यहा पहुचने के साथ ही सुना कि कल से देवीसिह और भूतनाय का पता नहीं है इसलिए आज दर्बार न होगा। मगर ताज्जुब की बात है कि भूत ाथ और देवीसिह जी एक सायकॉपल गय। मैं तो यही समझता हूँ कि भूतनाथ हम लोगों का पता लगाने के लिए निकला है और उसका ऐसा करना काई ताज्जुब बात भी नहीं मगर देवीसिहजी बिना मर्जी चले गये इस बात का नाज्जुब है। पीरेन्द-देवीसिह बिना मर्जी क नहीं चले गये बल्फि हमसे पूछ के गये है। नकाव-तो उन्हें महाराज ने हम लोगों का पीछा करने की आज्ञा क्यों दी हम लोग तामागकताबदार रयम ही अपना भेद कहो के लिए तैयार है और शीघ्र ही समय पाकर अपने को प्रगट करेही फेवत मुकदम की उलझान खुलने और कैदियों को निरुत्तर करन क लिए अपने को छिपाये हुए है। तेज- आप लोगों को शायद यह मालूम नहीं है कि भूतनाथ ने देवीसिह का अपना दोस्त बना लिया है। जिस समय भूतनाथ के मुकदमे का बीज रोपा गया था उसके कई घट परिले ही देवीसिह ने उसकी सहायता कर की प्रतिज्ञा कर दी थी क्याकि वह भूतनाथ की चालाकी ऐयारी तथा अच्छ कामो स प्रसव थे। नकाव-ठीक है तब तो ऐरण हुआ ही चाहिय परन्तु काइ चिन्ता नहीं भूतनाथ वास्तव म अच्छा आदमी हे और उस महाराज की सेवा का उत्साह भी है। तेज-इसके अतिरिक्त उसने हमार कई काम भी बड़ी खूबी के साथ किए हैं। नकाव-ठीक है। तेज-हा में एक बात आप से पूछा चाहता हूँ। नकाय--आज्ञा तेज-नि सन्देह भूताथ और देवीसिह आप लोगों का भद लेन के लिए गए हैं अस्तु आश्चर्य नहीं कि ये दोनों उस तक पहुच गये हों जहाँ आप लोग रहते है और आपका उनका कुछ हाल भी मालूम हुआ हो । काय-न तो वे हम लोगों के डेरे तक पहुंचे और न हम लोगों को उनका कुछ हाल ही मालूम है। हम लोगो के विषय में हजारों आदमी वल्कि यों चाहिए कि आज-कल यहाँ जितने लोग इकटटा हो रहे है सभी आश्चर्य करते है और इसीलिए जब हम लोग यहा आत है तो सैकड़ों आदमी चारों तरफ से घेर लेते है और जाते समय तक कोसो तक पीछा करते हैं इसलिए हम ललगों को बहुत घूम फिर तथा लागों को भुलावा देते हुए अपने डेरे की तरफ जाना पडता है। तेज-तब तो उन दोनों का न लौटना आश्चर्य है। नकाब बेशक अच्छा तो आज हम लोग कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का कुछ हाल महाराज को सुनात जाय, आखिर आ गये तो कुछ काम करना ही चाहिय । वीरेन्द्र-(ताज्जुब से) उनका कौन सा हाल? नकाब-वही तिलिस्म के अन्दर का हाल। जब तक राजा गोपालसिह वहा थे तब तक का हाल तो उनकी जुबानी आप ने सुना ही होगा मगर उसके बाद क्या हुआ और तिलिस्म में उन दोनों भाइयों न क्या किया सोन सुना होगा। वह सब हाल हम लोग सुना सकते है यदि आज्ञा हो तो वीरेन्द्र-(ज्यादे ताज्जुब के साथ) कब तक का हाल आप सुना सकते हैं ? नकाब-आज तक का हाल, बल्कि आज के बाद भी रोज-रोज का हाल तब तक बराबर सुना सकते हैं जब तक उनले यहा आने में दो घण्टे की देर हो। वीरेन्द-हम बडी प्रसन्नता से उनका हाल सुनने के लिए तैयार हैं बल्कि हम चाहते हैं कि गोपालसिंह और अपने पिताजी के सामने वह हाल सुनें। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८६०