पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७

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निशानी पाई जाती थी। वह अपने घोडे स नहीं उतरा मगर हसरत भरी निगाहों से उन औरतों की तरफ देखने लगा। उन औरतों में से जा अभी तक हाथ जोडे खड़ी थीं एक ने सिर उठाया और नौजवान की तरफ देख कर पूछा, “क्या हमलॉगों के लिए जो कुछ हुरन हुआ था वह बहाल हो रहा? इसके जवाब में नौजवान ने एक लम्बी सॉस लेकर कहा अफसोस क्या करू लाचार हू । उस औरत ने फिर पूछा क्या कुसुमकुमारी के लिए भी वही हुक्म दिया गया है? अबकी दफे जवान हाँ! करके रह गया । अभी तक तो रनवीरसिंह बड़ी सावधानी से इन सभों की बातें सुन रहे थे मगर आखिरी दो वातों ने उन्हें भी उदास करके तरवुद में डाल दिया । वह सोचने लगे कि ये औरतें कौन है। यह नौजवान कहाँ से आया। इन ओरतों से और कुसुमकुमारी स क्या निस्वत या इस नौजवान से और कुसुमकुमारी से क्या सम्बन्ध !और इस भयानक जंगल में कुसुमकुमारी पर हुकूमत करन वाला कौन है और कहाँ रहता है । आह इस जगह उन्हें एक दूसरे ही तरवुद ने घेर लिया और वे मन ही मन सोचने लगे- अब मुझमें इतनी ताकत न रही कि इन बातों का पता लगाये विना आगे बढूँ। खैर देखना चाहिय अब ये औरते कहॉ जाती है और यह नौजवान इन सभों के साथ कैसा बर्ताव करता है । उन सभों में फिर कुछ बातें न हुई, हॉ उस नौजवान ने उन पाँचों की तरफ देख कर केवल इतना कहा, अच्छा मेरे पीछ पीछे चले आओ। नौजवान ने धीरे धीरे घने जगल की तरफ घोडा बढाया। सिपाही मशालची और औरते पीछ पीछ जाने लगी। रनबीर से भी रहा न गया उन सभों के कुछ आगे बढ जाने पर वे भी पेड से उतरे और छिपते हुए उन सभों के पीछे पीछे रवाना हुए। सत्ताईसवां बयान थोडी ही दूर जाने पर रनबीरसिह को मालूम हो गया कि वे सब लोग भी उसी तरफ जा रह है जिधर वालेसिह गया है या जिघर व जानेवाले थे। यद्यपि रात का समय था मगर आगे आगे मशाल की रोशनी रहने के कारण रनबीरसिह ने उन निशानों में से कई निशान देखे जो गस्ते में मिलने वाले थे और जिनके बारे में संन्यासी ने पता दिया था। यह रास्ता थोडी दूर तक चश्मे के किनारे किनारे गया था और उसके बाद चक्कर खाकर दालवी पहाडी उतरनी पडती थी। रनवीरसिह उनलागों के पीछे पीछे घूमधूमौव और पेचीले रास्ते पर नीचे की तरफ झुकते हुए पहर भर तक घरायर चले गए और इसके बाद एक मकान के पास पहुच। यह मकान बहुत लम्बा चौडा पत्थरों से बना हुआ और चारो तरफ के ऊचे ऊचे पहाड़ों स इस तरह घिरा हुआ था कि रास्त का हाल पूरा पूरा जाने विना यहाँ तक किसी का पहुंचना बहुत ही मुश्किल था। यद्यपि यह मकान बहुत बड़ा था मगर उसका दर्वाजा इतना छोटा था कि एक साथ दोआदमियों त ज्यादा उसके अन्दर नहीं जा सकते थे। नौजवान सवार न दाजे के पास पहुंच कर एक सीटी बजाई जिसे सुनते ही चार आदमी मकान के बाहर निकल आये। नौलवान घाडे पर से उतर पड़ा और उन चारों को कुछ कह कर मकान के अन्दर चला गया। उन चारों में से एक आदमी उसका घोडा थाम कर चक्कर खाता हुआ मकान के पीछे की तरफ चला गया और तीन आदमी उस नौजवान के अन्दर जातेही उन पाँचों औरतों और मशालची तथा सिपाही को साथ लिये हुए मकान के अन्दर चले गए। रनबीरसिह दूर खड यह सब तमाशा देख रहे थे। जब मकान क बाहर सन्नाटा हो गया तो वे एक पत्थर की चट्टान पर यह साच कर लेट रहे कि सवेरा होने पर जा कुछ हागा देखा जायगा मगर उनकी आँखों में नींद न थी क्योंकि वे इस बात को भी साच रहे थे कि कहीं ऐसा नहा कि इस मकान के अन्दर से वे औरतें जिनके पीछे पीछे हम आये है या और कोई निकल कर बाहर चला जाय और उन्हें खबर तक न हो। साफ सवरा हो जाने पर वही नौजवानजो उन पाँचों औरतों सिपाही तथा मशालची को साथ लिये हुए यहाँ आया था मकान के बाहर निकला और निगाह दौडा कर चारो तरफ दखने लगा। यकायक उसकी निगाह रनवीरसिह पर पड़ी जा उससे थोड़ी ही दूर पर एक चट्टान पर लेटे हुए था एक नये आदमी को वहाँ देख उसे ताज्जुब मालूम हुआ और हाल चाल मालूम करने के लिये वह रनवीरसिह की तरफ बढ़ा रनवीरसिह ने उसे अपने पास आते देख ऑखें बन्द कर लों और घुर्राटा लेने लगे। नौजवान रनवीरसिह के पास पहुचा और उन्हे गौर से देखने लगा, उसी समय रनबीरसिह ने भी मानों पैर की आहट पाकर आखें खोल दी और चारो तरफ देख के बोले, 'अहा! तू ही तो है !! नौजदान-कहिये बाबाजी आपका गुरुद्वारा कहाँ है और यहाँ किसके साथ आये ? रनवीर अहा ! तू ही तो है "गुरुद्वारा गिरनार है। अहा तू ही तो है। सत्तगुरु देवदत्त की जय ।। कुसुम कुमारी १०९५