पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७०

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Geri मुहाना उसी मकान के अन्दर था और इसीलिये सुरग के बाहर होकर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह ने अपने को उसी मकान में पाया। इस मकान में चारो तरफ गालाकार दालान के अतिरिक्त कोई कोठरी या कमरा न था। बीच में एक सगमर्मर का चबूतरा था और उस पर स्याह रग का एक मोटा आदमी बैठा हुआ था जो जाच करने पर मालूम हुआ कि लोह का है। उसी आदमी के सामने की तरफ के दालान में सुरग का वह मुहाना था जिसमें दोनों कुमार निकले थे। उस सुरग के बगल में एक और सुरग थी और उसके अन्दर उतरने के लिए सीढिया बनी हुई थीं। चारो तरफ देख भाल करने के बाद दानों कुमार उसी सुरग में उतर गये और आठ-दस सीढी नीचे उतर जाने के बाद देखा कि सुरग खुलासा तथा बहुत दूर तक चली गई है। लगभग सौ कदम तक दोनों कुमार बेखटके चले गये और इसके बाद एक छोटे से वाग में पहुचे जिसमें खबसूरत पेड पत्तों का तो कहीं नाम निशान भी न था हा जगली बैर,मकोय तथा केले के पेड़ों की कमी न थी। दोनों कुमार सोचे हुए थे कि यहा भी और जगहों की तरह हम सन्नाटा पाएगे अर्थात् किसी आदमी की सूरत दिखाई न देगी मगर ऐसा न था। वहा कई आदमियों को इधर-उधर घूमते देख दोनों कुमारों को बडा ही ताज्जुब हुआ और वे गौर से उन आदमियों की तरफ देखने लगे जो विल्कुल जगली और भयानक मालूम पडते थे। वे आदमी गिनती में पाच थे और उन लोगों ने भी दोनों कुमारों को देख कर उतना ही ताज्जुब किया जितना कुमारों ने उनको देख कर। वे लोग इकट्ठे होकर कुमार के पास चले आये और उनमें से एक ने आगे बढ़ कर कुमार से पूछा 'क्या आप दानों के साथ भी वही सलूक किया गया जो हम लोगों के साथ किया गया था? मगर ताज्जुब है कि आपके कपडे और हरबे छीने नहीं गए और आप लोगों के चेहरे पर भी किसी तरह का रज मालूम नहीं पडता । इन्द्र-तुम लोगों के साथ क्या सलूक किया गया था और तुम लोग कौन हो ? आदमी हम लोग कौन है इसका जवाब देना सहज नहीं है और न आप थोडी देर में इसका जवाब सुन ही सकते है भगर आप अपने बारे में सहज में बता सकते है कि किस कसूर पर यहा पहुचाए गये। इन्द्र-हम दोनों भाई तिलिस्म को तोडते और कई कैदियों को छुडाते हुए अपनी खुशी से यहॉ तक आये है और अगर तुम लोग कैदी हो तो समझ रक्खो कि इस कैद की अवधि पूरी हो गई और बहुत जल्द अपने को स्वतन्त्र विचरते हुए देखाग। आदमी-हमें कैसे विश्वास हो कि जो कुछ आप कह रहे हैं वह सच है । इन्द्र-अभी नहीं तो थोड़ी देर में स्वय विश्वास हो जायगा। इतना कहकर कुमार आगे की तरफ बढे और वे लोग उन्हें घेरे हुए साथ-साथ जाने लगे। इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह को विश्वास हो गया कि सरयू की तरह ये लोग भी इस तिलिस्म में कैद किये गये है और दारोगा या मायारानी ने इनके साथ यह सलूक किया है और वास्तव में बात भी ऐसी ही थी। इन आदमियों की उम्र यद्यपि बहुत ज्यादे न थी मगर रज गम और तकलीफ की बदौलत सूख कर काटा हो गये थे। सर और दाढी के बालों ने बढ और उलझ कर उनकी सूरत डरावनी कर दी थी और चेहरे की जर्दी तथा गडहे में घुसी हुई आखें उनकी बुरी अवस्था का परिचय दे रही थीं। इस बाग में पानी का एक चश्मा था और वही इन कैदियों की जिन्दगी का सहारा मगर इस बात का पता नही लग सकता था कि पानी कहा से आता है और निकल कर कहा चला जाता है। इसी नहर की बदौलत यहा की जमीन का बहुत बड़ा हिस्सा तर हो रहा था और इस सबब से उन कैदियों को केला वगैरह फल खाकर अपनी जान बचाये रहने का मौका मिलता था। वाग के बीचोबीच में बीस या पचीस हाथ ऊँचा एक बुर्ज था और उस बुर्ज के चारों तरफ स्याह पत्थर का कमर बराबर ऊँचा चबूतरा बना हुआ था मगर इस बात का पता नहीं लगता था कि इस बुर्ज पर चढने के लिए कोई रास्ता भी है या नहीं अगर है तो कहा से है। दोनों कुमार उस चबूतरे पर बेधडक जाकर बैठ गये और तब इन्दजीतसिह ने उन कैदियों की तरफ देख के कहा 'कहो अब तुम्हें विश्वास हुआ कि जो कुछ हमने कहा था सच है ? आदमी-जी हा अब हम लोगों को विश्वास हो गया क्योंकि हम लोगों ने इस चबूतरे को कई दफे आजमा कर देख लिया है। इस पर बैठना तो दूर रहा हम इसे छूने के साथ ही बेहोश हो जाते थे मगर ताज्जुब है कि आप पर इसका असर कुछ भी नहीं होता। इन्द्र-इस समय तुम लोग भी इस चबूतरे पर बैठ सकते हो जब तक हम बैठे है। आदमी--( चबूतरा छूने की नीयत से बढ़ता हुआ ) क्या ऐसा हो सकता है ! इन्द-आजमा के देख लो। देवकीनन्दन खत्री समग्र ८६२