पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७१

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शि उस आदमी ने चबूतरा छूआ मगर उस पर कुछ बुरा असर न हुआ और तव कुमार की आज्ञा पा वह चबूतरे पर बैठ गया। उसकी देखा-देखीसभी आदमी उस चबूतरे पर बैठ गये और जव किसी तरह का बुरा असर होते न देखा तब हाथ जोड कर कुमार से बोले अब हम लोगों को आपकी बात में किसी तरह का शक न रहा आशा है कि आप कृपा करके अपना परिचय देंगे। जब कुँअर इन्द्रजीतसिह ने अपना परिचय दिया तब सब के सब उनके पैरों पर गिर पड़े ओर डबडबाई ऑखों से उनकी तरफ देख के बोले दोहाई है महाराज की हमारे मामले पर विचार होकर दुष्टों को दण्ड मिलना चाहिये। इतना कहकर नकाबपोश चुप हो गया और कुछ सोचने लगा। इसी समय वीरेन्द्रसिह ने उससे कहा 'मालूम होता है कि उस चबूतरे में बिजली का असर था और इस सबब से उसे कोई छू नहीं सकता था मगर दोनों लडकों के पास विजली वाला तिलिस्मी खञ्जर मौजूद था और उसके जोड की अगूठी भी इसलिये तब तक के लिए उसका असर जाता रहा जब तक दोनों लडके उस पर बैठे रहे। नकाब-( हाथ जोडकर ) जी बेशक यही बात है। वीरेन्द्र-अच्छा तब क्या हुआ? नकाक्-इसके बाद कुमार ने उन सभों का हाल पूछा और उन सभों ने रो रो कर अपना हाल बयान किया। बीरेन्द-उन लोगों ने अपना हाल क्या कहा ? नकाब–मै यही सोच रहा था कि उन लोगों ने जो कुछ अपना हाल बयान किया वह मैं इस समय कहूँ या न कहूँ। तेज-क्या उन लोगों का हाल कहने में कोई हर्ज है ? आखिर हम लोगों को मालूम तो होगा ही। नकाय-जरूर मालूम होगा और मेरी ही जुबानी मालूम होगा मैं जो कहने से रुकता हू वह केवल एक ही दो दिन के लिए, हमेशा के लिए नहीं । तेज-अगर यही बात है तो हमें दो एक दिन के लिए कोई जल्दी भी नहीं। नकाव-(हाथ जोडकर) अस्तु अब आज्ञा हो तो हम लोग डेरे पर जाय ! कल पुन सभा में उपस्थित होकर यदि देवीसिह और भूतनाथ न आये तो कुमार का हाल सुनावेंगे। सुरेन्द्र (इशारे से जाने की आज्ञा दे कर ) तुम दोनों ने इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का हाल सुनाकर अपने विषय में हम लोगों का आश्चर्य और भी बढा दिया। दोनों नकाबपोश उठ खड हुए और अदव के साथ सलाम करके वहा से रवाना हुए। पॉचवॉ बयान देवीसिह और भूतनाथ की यह इच्छा न थी कि आज सवेरा होते ही हम लोग यहा से चले जाय और अपनी स्त्रियों के विषय में किसी तरह की जाच न करें, मगर लाचारी थी क्योंकि नकाबपाशों की इच्छा के विरुद्ध वे यहा रह नहीं सकत थे साथ ही इसके मालिक मकान की मेहरबानी और मीठे बत का भी उन्हें वेसा ही खयाल था जैसा कि इस मजबूरी की अवस्था में होना चाहिए। सवेरा होने पर जब कई नकाबपोश उनके सामने आये और उन्हें बाहर निकलने के लिए कहा ता देवीसिह और भूतनाथ उठ खडे हुए और कमरे के बाहर निकल उनके पीछे-पीछेरवाना हुए। जब मकान के नीचे उतरकर मैदाम में पहुंचे तो देवीसिह का इशारा पाकर भूतनाथ ने एक नकाबपोश से कहा हम तुम्हारे मालिक से एक दफ और मिलना चाहते हैं। नकाय इस समय उनसे मुलाकात नहीं हो सकती। भूत-अगर घण्टे या दो घण्टे में मुलाकात हो सके तो हम लोग ठहर जाय । नकाव-नहीं अब मुलाकात हो ही नहीं सकती उन्होंने रात ही को जो हुक्म दे रक्खा था हम लोग उसको पूरा कर भूत-हम लोगों को कोई जरूरी बात पूछनी हो तो? नकाव-एक चीठी लिख कर रख जाओ, उसका जवाब तुम्हारे पास पहुच जायगा। भूत-अच्छा यह बताओ कि यहा हम लोगों ने गिरफ्तार होने के पहिले जिन दो औरतों को देखा था उनसे भी मुलाकात हो सकती है या नहीं? नकार नहीं क्या उन लोगों को आपने खानगी समझ रक्खा है ? दूसरा नकाब--इन सब फजूल बातों से कोई मतलब नहीं और न हम लोगों को इतनी फुरसत ही है। आप लोग चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २०