पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७२

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नाहक हम लोगों को रज करते है और हमारे मालिक की उस मेहरयानी को एक दम भूल जाते हैं जिनकी बदौलत आप लोग कैदखाने की हवा खान से बच गये? भूत-(कुछ क्रोध भरी आवाज में) अगर हम लोग न जाय तो तुम क्या करोगे? नकाव-(रज के साथ) जबर्दस्ती निकाल बाहर करेगें। आप लोग अपने तिलिस्मी खजर के भरोसे न भूलियेगा, ऐसे-ऐसे तुच्छ खजरो का काम हम जोग अपने नाखूनों से लेते हैं । बस सीधी तरह कदम उठाइये और इस जमीन को अपनी मिलकियत न समझिये। नकाबपोशा की बातें यद्यपि भूतनाथ और देवीसिह को बुरी मालूम हुई मगर बहुत सी बातों को सोच-विचार कर चुप टोर और तकरार करना उचित न जाना। सब नकाबपाशों ने मिल कर उन्हें खोह के बाहर किया और लौटते समय भूतनाथ आर दवीसिह से एक नकाबपोश ने कहा, "वस अब इसके अन्दर आने का ख्याल न कीजियेगा, कल दर्वाजा खुला रह जाने के कारण आप लोग चले आये मगर अब ऐसा मौका भी न मिलेगा। नकाबपोशों के चले जाने बाद भूतनाथ और देवीसिह वहा से रवाना हुए और कुछ दूर जाकर जगल में एक घने पेड की छाया देखकर बैठ के यों बातचीत करने लगे भूत-कहिये अब क्या इरादा है ? देवी-बात तो यह है कि हम लोग नकाबपोशों के घर जाकर बेइज्जतहो गये। चाहे ये दोनों नकाबपोश कुछ भी कहे मगर मुझे निश्चय है कि दार में आने वाले दोनों नकाबपोश वही है जिनके हम महमान हुए थे। मुझे तो शर्म आयगी जय दार में मैं उन्हें अपने सामन देखूगा। इसके अतिरिक्त यदि यहा से जाकर अपनी स्त्री को घर में न देखूगा तो मेरे आश्चर्य, रज,और क्रोध का कोई हद न रहेगा। भूत-यद्यपि मैं एक तौर पर वेहया हो गया है परन्तु आज की बेइज्जतीदिल को फाडे डालती हैं बहुत ऐयारी की मगर ऐसा जक कभी न उठाया मेरी तो यहा से हटने की इच्छा नहीं होती यही जी में आता है कि इनमें से एक न एक को अवश्य पकडना चाहिये और अपनी स्त्री क विषय में तो इतना कहना काफी है कि यदि अपने घर जाकर अपनी स्त्री को पा लिया तो मैं भी अपनी स्त्री की तरफ से वेफिक्र हो जाऊगा। देवी-करने के लिए तो हम लोग बहुत कुछ कर सकते है मगर जब मैं उनके बर्ताव पर ध्यान देता हू तव लाचारी आकर पल्ला पकडती है। जब एक बार उन्होंने हम लोगों को गिरफ्तार किया तो हर तरह का सलूक कर सकते थे परन्तु किसी तरह की बुराई हम लोगों के साथ न की दूसरे वे लोग स्वय हमारे महाराज के दर्वार में हाजिर हुआ करते है और समय पर अपने को प्रकट कर देने का वादा भी कर चुके है ऐसी अवस्था में उनके साथ खोटा बर्ताव करते डर लगता है कहीं ऐसा न हो कि वे लोग रज हो जायं और दर्बार में आना छोड दें अगर ऐसा हुआ तो बडी बदनामी होगी और कैदियों का मामला भी आज कल के ढग से अधूरा ही रह जायेगा । भूत-आप बात तो ठीक कहते हैं, परन्तु देवी-नहीं. अब इस समय तरह देनाही उचित है जिस तरह मैं अपनी बदनामी का खयाल करता है उसी तरह तुमको भी तो खयाल होगा। भूत-जरूर यदि नकाबपोशा का कोई अकेला आदमी कब्ज में आ जाय तो शायद काम निकल जाय और किसी का इस बात की खबर भी न हो। इस तरह की बातें हो रही थी कि उनके कानों में घोड के टापों की आवाज आई और दोनों ने घूम कर पीछे की तरफ देखा। एक नकाबपोश सवार आता हुआ दिखाई पड़ा जिस पर निगाह पड़ते ही भूतनाथ ने देवीसिंह से कहा 'यह भी जरूर उन्हीं में से है. भला एक दफे और तो कोशिश कीजिए और जिस तरह हो सके इसे गिरफ्तार कीजिए फिर जैसा होगा देखा जायगा। यस अब इस समय सोचने विचारने का मौका नहीं है। वह सवार बिल्कुल बेफिक्री के साथ धीर-धीरे आ रहा था अस्तु ये दोनों भी उसके रास्ते के दोनों तरफ पेडों की आड देकर उसे गिरफ्तार करने की नीयत से खडे हो गये। जब वह नकायपोश सवार इन दोनों की सीध पर पहुंचा और आग बढा ही चाहता था तभी भूतनाथ के हाथ की फेंकी हुई कमन्द उसके घोडे के गले में जा पडी। घोडा भडक कर उछलन कूदने लगा और तब दोनों ने लपक कर घोडे की लगाम थान ली। उस सवार ने खञ्जर खैच कर वार करना चाहा मगर कुछ सोच कर रुक गया और साथ ही इस के इन दोनों को भी उसने लडन के लिए तैयार देखा। नकाब-(भूतनाथ से ) तुम लोग मुझे व्यर्थ क्यों रोकते हो ? मुझस क्या चाहत हो । भूत-हम लोग तुम्हें किसी तरह की तकलीफ देना नहीं चाहते, बस थोड़ी देर के लिए घोडे से नीचे उतरा और हमारी दो-चार बातों का जवाब देकर जहा जी में आवे चले जाओ। देवकीनन्दन खत्री समग्र