पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७६

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cert तेज-खैर कोई चिन्ता नहीं, वे नकाबपोश खुशदिल नेक और हमारे प्रेमी मालूम होते हैं. इसलिए आशा है कि मूतनाथ को अथवा तुम्हारे किसी आदमी को तकलीफ पहुंचाने का ख्याल न करेंगे। मीरेन्द्र-हमारा भी यही ख्याल है। (देवीसिह से मुस्कुराकर ) तुम्हारा दिल भी तो अपनी बीबी साहेबा को देखने के लिए बेताब हो रहा होगा? देवी-बेशक मेरे दिल में धुकनी सी लगी हुई है और मैं चाहता हू कि किसी तरह आपकी बात पूरी हो तो महल में जाऊ। - बीरेन्द-मगर हमसे तो तुमने पूछा ही नहीं कि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी बीबी महल में थी या नहीं। देवी-( हसकर, जी आपसे पूछने की मुझे कोई जरूरत नहीं और न मुझे विश्वास ही हैं कि आप इस बारे में मुझे से सच बोलेंगे। वीरेन्द्र-(हस कर) खैर मेरी बातों पर विश्वास न करो और महल में जाकर अपनी रानी को देखो मैं भी उसी जगह पहुचकर तुम्हें इस बेयातबारी का मजा चखाता हू इतना कहकर राजा बीरेन्द्रसिह उठ खडे हुए और देवीसिह भी हसते हुए वहा से चले गये। महल के अन्दर अपने कमरे में एक कुर्सी पर बैठी चम्पा रोहतासगढ़ पहाडी और किले की तस्वीर दीवार के ऊपर बना रही है और उसकी दो लौडिया हाथ में मोमी शमादान लिए हुए रोशनी दिखाकर इस काम में उसकी मदद कर रही हैं। चम्पा का मुह दीवार की तरफ और पीठ सदर दर्वाजे की तरफ है। दोनों लौडिया भी उसी की तरह दीवार की तरफ देख रही है इसलिए चम्पा तथा उसकी लौडियों को इस बात की कुछ भी खबर नहीं कि देवीसिहधीरे-धीरे पैर दबाते हुए इस कमरे में आकर दूर से और कुछ देर से उनकी कार्रवाई देखते हुए ताज्जुब कर रहे है। चम्पा तस्वीर बनाने के काम में बहुत ही निपुण और शीघ्र काम करने वाली थी तथा उसे तस्वीरों के बनाने का शौक भी हद से ज्यादे था। देवीसिहने उसके हाथ की बनाई हुई सैकडों तस्वीरें देखी थीं मगर आज की तरह ताज्जुब करने का मौका उन्हें आज के पहिले नहीं मिला था। ताज्जुब इसलिये कि इस समय जिस ढग की तस्वीरें चम्पा मना रही थी ठीक उसी ढग की तस्वीरें देवीसिह ने भूतनाथ के साथ.जाकर नकाबपोशोके मकान में दीवार के ऊपरी हुई देखी थीं। कह सकते है कि एक स्थान या इमारत की तस्वीर अगर कोई कारीगर बनावे तो संम्भव है कि एक टैग की तैयार हो जाय मगर यहा यही बात न थी। नकाबपोशों के मकान में रोहतासगढ़ पहाड़ी की जो तस्वीर देवीसिह ने देखी थी उसमें दो नकाबपोश सवार पहाडी के ऊपर चढते हुए दिखलायेगयेथे जिसमें से एक का घोडा मुश्की और दूसरे का सब्ज था। इस समय जो तस्वीर चम्पा बना रही थी उसमें भी उसी ठिकाने उसी ढग के दो सवार इसने बनाये और उसी तरह इन दोनों सवारों में से भी एक का घोडा मुश्की और दूसरे का सब्ज था। देवीसिह का ख्याल है कि यह बात इत्तिफाक से नहीं हो सकती। ताज्जुब के साथ उस तस्वीर को देखते हुए देवीसिह सोचने लगे कि क्या यह तस्वीर इसने यों ही अन्दाज से तैयार की है ? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। अगर यह तस्वीर इसने अन्दाज से बनाई होती तो दोनों सवार और घोडे ठीक उसी रग के न बनते जैसा कि मैं उन नकाबपोशों के यहा देख आता है। तो क्या यह वास्तव में उन नकाबपोशों के यहा गई थी? बेशक गई होगी, क्योंकि उस तस्वीर के देखे बिना उसके जोड की तस्वीर यह बना नहीं सकती, मगर इस तस्वीर के बनाने से साफ जाहिर होता है कि यह अपनी उन नकाबपोशों के यहा जाने वाली बात गुप्त रखना भी नहीं चाहती मगर ताज्जुब है कि जब इसका ऐसा ख्याल है तो वहा (नकाबपोशों के घर पर) मुझे देख कर छिप क्यों गई थी? खैर अबबात-चीत करने पर जो कुछ भेद है सब मालूम हो जायगा। यह सोचकर देवीसिह दो कदम आगे बढे ही थे कि पैरों की आहट पाकर चम्पाचौकी और घूमकर देखने लगी। देवीसिह पर निगाह पडते ही कूची और रग की प्याली जमीन पर रखकर उठ खडी हुई और हाथ जोडकर प्रणाम करने बाद बोली आप सफर से लौट कर कब आये?. देवी-( मुस्कुराते हुए ) चार-पाच घण्टे हुए होंगे, मगर यहा भी मैं आधी घडी से तमाशा देख रहा है। चम्पा-(मुस्कुराती हुई) क्या खूब ! इस तरह चोरी से ताक-झाक करने की क्याजरूरत थी? देवी-इस तस्वीर और इसकी बनावट को देखकर मैं ताज्जुब कर रहा था और तुम्हारे काम में हर्ज डालने का इरादा नहीं होता था। चम्पा-( हसकर) बहुत ठीक, खैर आइये बैठिये। देवी-पहिले मैं तुम्हारी इस कुर्सी पर बैठ के इस तस्वीर को गौर से देखूगा ! इतना कह कर देवीसिह उस कुर्सी पर बैठ गए जिस पर थोडी देर पहिले चम्पा बैठी हुई तस्वीर बना रही थी और बर्ड देवकीनन्दन खत्री समग्र ८६८