पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७८

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दि इसके बाद देवीसिह बहुत देर तक चम्पा के पास बैठे रहे और जब वहा से जाने लगे तब वह कपडे वाली तस्वीर अपने साथ बाहर लेते गये। आठवॉ बयान महल के बाहर आने पर भी देवीसिह के दिल को किसी तरह का चैन न पडा। यद्यपि रात बहुत बीत चुकी थी तथापि राजा बीरेन्द्रसिह से मिलकर उस तस्वीर के विषय में बातचीत करने की नीयत से वह राजा साहब के कमरे में चले गए मगर वहा जाने पर मालूम हुआ कि बीरेन्द्रसिह महल में गए है लाचार होकर लौटा ही चाहते थे कि राजा बीरेन्द्रसिह भी आ पहुँचे और अपने पलग के पास देवीसिह को देखकर बोले रात को भी तुम्हें चैन नहीं पडती । (मुस्कुराकर) मगर ताज्जुब यह है कि चम्पा ने तुम्हें इतने जल्दी बाहर आने की छुट्टी क्योंकर दी। देवी-इस हिसाब से तो मुझे भी आप पर ताज्जुब करना चाहिए मगर नहीं असल तो यह है कि मैं एक ताज्जुब की बात आपको सुनाने के लिए यहा चला आया हू। बीरेन्दसिह-वह कौन सी बात है. तुम्हारे हाथ में यह कपडे का पुलिन्दा कैसा है ? देवी-इसी कम्बख्त ने तो मुझे इस आनन्द के समय में आपसे मिलने पर मजबूर किया। बीरेन्द्र-सो क्या ? (चारपाई पर बैठकर ) बैठ के बातें करो। देवीसिह ने महल में चम्पा के पास जाकर जो कुछ देखा और सुना था सब बयान किया इसके बाद वह कपडे वाली तस्वीर खोलकर दिखाई लथा उस नक्शे को भी अच्छी तरह समझाने के बाद कहा 'न मालूम यह नक्शा तारा को क्योंकर और कहा से मिला और उसने इसे अपनी मों को क्यों दे दिया।' वीरेन्द्र-तारासिह से तुमने क्यों नहीं पूछा। देवी-अभी तो मै सीधा आप ही के पास चला आया हू अव जो कुछ मुनासिब हो किया जाय। कहिए तो लड़के को इसी जगह बुलाऊँ? बीरेन्द्र क्या हर्ज है किसी को कहो बुला लावे । देवीसिह कमरे के बाहर निकले और पहरे के एक सिपाही को तारासिह को बुलाने की आज्ञा देकर पुन कमरे में चले आये और राजा साहब से बात-चीत करने लगे। थोडी देर में पहरे वाले ने वापस आकर अर्ज किया कि तारसिह से मुलाकात नहीं हुई और इसका भी पता न लगा कि वे कब और कहां गये हैं उनका खिदमतगार कहता है कि सध्या होने के पहिले ही से उनका पता नहीं है । बेशक यह बात ताज्जुब की थी। रात के समय बिना आज्ञा लिए तारासिह का गैरहाजिर रहना सभों को ताज्जुम में डाल सकता था, मगर राजा बीरेन्द्रसिह ने यह सोचा कि आखिर तारासिह ऐयार है शायद किसी काम की जरूरत समझ कर कहीं चला गया हो अस्तु राजा साहब ने भैरोसिह को तलब किया और थोड़ी देर में भैरोसिह ने हाजिर होकर सलाम किया। बीरेन्द-(भैरो से) तुम जानते हो कि तारासिह क्यों और कहा गया है ? भैरो-तारा तो आज सध्या होने के पहिल ही से गायब है, पहर भर दिन बाकी था जब वह मुझसे मिला था उसे तरदुद में देखकर मैने पूछा भी था कि आज तुम तरदुद में क्यों मालूम पडते हो मगर इसका उसने कोई जवाब नहीं दिया। - वीरेन्द्र-ताज्जुब की बात है हमें उम्मीद थी कि तुम्हें उसका हाल जरूर मालूम होगा। भैरो-क्या मै, सुन सकता हूँ कि इस समय उसे याद करने की जरूरत क्यों पड़ी ? बीरेन्द्र-जरूर सुन सकते हो। इतना कहकर बीरेन्द्रसिह ने देवीसिह की तरफ देखा और देवीसिह ने कुछ कम बेश अपना और भूतनाथ का किस्सा बयान करने के बाद उस तस्वीर का हाल कहा और तस्वीर भी दिखाई। अन्त मैं भैरोसिह ने कहा मुझे कुछ भी मालूम नहीं कि तारासिह को यह तस्वीर कब और कहा से मिली मगर अब इसका हाल जानने की कोशिश जरूर करूंगा। हुक्म पाकर भैरोसिह बिदा हुआ और थोड़ी देर तक बात-चीत करने बाद देवीसिह भी चले गये। दूसरे दिन मामूली कामों से छुट्टी पाकर राजा बीरेन्द्रसिह जब दार खास में बैठे तो पुन तारासिह के विषय में यात-चीत शुरू हुई और इसी बीच में नकाबपोशों का भी जिक्र छिडा। उस समय वहा राजा बीरेन्द्रसिह गोपालसिह तेजसिह तथा देवीसिह वगैरह अपने ऐयारों के अतिरिक्त कोई गैर आदमी न था। जितने थे सभी ताज्जुब के साथ देवकीनन्दन खत्री समग्र ८७०