पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८७९

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६ तारासिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कर रहे थे और मौके पर भूतनाथ तथा नकाबपोशों का भी जिक आता था। दोनों नकाबपोश वहा आ के इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह का किस्सा सुना गये थे उसे आज तीन दिन का जमाना गुजर गया। इस बीच में न तो वे दोनों नकाबपोश आये और न उनके विषय में कोई बात ही सुनी गई। साथ ही इसके अभी तक भूतनाथ का कोई हाल-चाल मालूम न हुआ। खुलासा यह कि इस समय के दर्यार में इन्हीं सब बातों की चर्चा थी और तरह-तरहके ख्याल दौडाये जा रहे थे। इसी समय चोयदार ने दोनों नकाबपोशों के आने की इत्तिला की। हुक्म पाकर वे दोनों हाजिर किए गये और सलाम करके आज्ञानुसार उचित स्थान पर बैठ गए। एक नकाय-(हाथ जोड़ के राजा वीरेन्द्रसिह से) महाराज ताज्जुब करते होंगे कि तावेदारों ने हाजिर होने में दो- तीन दिन का नागा किया। बीरेन्द्र-वेशक ऐसा ही है क्योंकि हम लोग इन्द्रजीत और आनन्द का तिलिस्मी किस्सा सुनने के लिए बेचैन हो रहे थे। नकाव-ठीक है हम लोग हाजिर न हुए इसके कई सबब है। एक तो इसका पता हम लोगों को लग चुका था कि भूतनाथ जो हम लोगों की फिक्र में गया था अभी तक लौट कर नहीं आया और इस सवव से कैदियों के मुकदमें में दिलचस्पी नहीं आ सकती थी। दूसरे कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के किस्से में कई बातें ऐसी थीं जिनका हाल दरियाफ्त करना बहुत जरूरी था और इस काम के लिए हम लोग तिलिस्म के अन्दर गये हुए थे। बीरेन्द्र-क्या आप लोग जब चाहे तब उस तिलिस्म के अन्दर जा सकते है जिसे वे दोनों लडके फतह कर रहे है? नकाय-जी सब जगह नहीं मगर खास-खास ठिकाने कभी-कभी जा सकते हैं जहा तक कि हमारे गुरु महाराज जाया करते थे, मगर उनकी खबर एक-एक घडी की हम लोगों को मिला करती है। वीरेन्द्र-अप लोगों के गुरु कौन और कहा है ? नका-अब तो वे परमधाम को चले गए। बीरेन्द-खैर तो जब आप लोग तिलिस्म में गए थे तो क्या दोनों लड़कों से मुलाकात हुई थी ! नकाब-मुलाकात तो नहीं हुई मगर जिन बातों का शक था वह मिट गया और पुन उनका किस्सा कहने के लिए तैयार है। (देवीसिह की तरफ देखकर ) आपने भूतनाथ को अकेला ही छोड़ दिया ! देवी-हा, क्योंकि मुझे आप लोगों का भेद जानने का उतना शौक न था जितना भूतनाथ को है। मैं तो उस दिन केवल इतना ही जानने के लिए गया था कि देखें भूतनाथ कहा जाता है और क्या करता है मगर मेरी तबीयत इतने ही में भर गई। नका-मगर भूतनाथ की तबीयत अभी नहीं भरी। तेज-वह भी विचित्र दग का ऐयार है ? साफ-साफ देखता है कि आप लोग उसके पक्षपाती है मगर फिर भी आप लोगों का असल हाल जानने के लिए बेताब हो रहा है। यह उसकी भूल है तथापि आशा है कि आप लोगों की तरफ से उसे किसी तरह की तकलीफ न पहुचेगी। नकाब-नहीं-नहीं कदापि नहीं। (वीरेन्दसिह की तरफ देख के और हाथ जोड़ के) हम लोगों को अपना लड़का समझिए और विश्वास रखिए कि आपके किसी ऐयार को हम लोगों की तरफ से किसी तरह की तकलीफ नही पहुच सकती चाहे वे लोग हमें किसी तरह का रज पहुचावें। बीरेन्द्र-आशा तो ऐसी ही है, और हमारे ऐयार भी बड़े ही नालायक होंगे अगर आप लोगों को किसी तरह की तकलीफ पहुचाने का इरादा करेंगे। देवी-मै कल से एक और तरवुद में पड़ गया है। नका-वह क्या? देवी-कल से मेरे लड़के तारासिह का पता नहीं है, न मालूम वह क्यों और कहा चला गया ! नकाब-तारासिह के लिए आपको तरवुद न करना चाहिये, आशा है कि घण्टे भर के अन्दर ही यहा आ पहुचेगा। देवी-आपके इस कहने से तो मालूम होता है कि आपको उसका हाल मालूम है। नका-बेशक मालूम है मगर मै अपनी जुबान से कुछ भी न कहूगा, आप स्वय उससे जो कुछ पूछना होगा पूछ लेंगे। (बीरेन्दसिह से) आज जिस समय हम लोग घर से यहा की तरफ रवाना हो रहे थे उसी समय एक चीठी कुअर इन्द्रजीतसिह की मुझे मिली जिसमें उन्होंने लिखा था कि तुम महाराज के पास जाकर मेरी तरफ से अर्ज करो कि महाराज भैरोसिह और तारासिह को मेरे पास भेज दें क्योंकि उनके बिना हम लोगों को कई बातों की तकलीफ हो रही है. चन्द्रकान्ता सन्ततिभाग २० ८७१