पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८

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नौजवान अहा, आप महात्मा देवदत्त की गद्दी के चेले है तब तो आप हमलोगों के गुरु है * ॥ रनबीर-(ताज्जुब से) क्या तुम हमारे चेले हो? नौजवान केवल मै ही नहीं बल्कि (मकान की तरफ इशारा करके) इस मकान में जितने आदमी रहते है सब सत्तगुरु देवदत्तजी की गद्दी को मानते है और आपके चेले है। रनवीर-(हस कर) तब तो हम अपनी राजधानी में आ पहुचे !! नौजवान-येशक । रनबीर-(आसमान की तरफ देख के) अहा । तू ही तो है ।। नौजवान-(रनवीर का पैर छूकर) अब आप कृपा कर के मकान के अन्दर चलिये तो हमलोग आपका चरणामृत लेकर कृतार्थ हो। रनबीर-(सिर हिला कर) नहीं नहीं, मैं मकान के अन्दर तब तक न जाऊगा जब तक मुझको यह न मालूम हो जायगा कि मैं यहाँ क्योंकर आ पहुँचा । कल सन्ध्या के समय में एक चश्मे के किनारे पर था, रात को सत्तगुरु का ध्यान करने लगा। सत्तगुरु ने दर्शन दिया और कहा कि यहाँ क्यों घूम रहा है-कुछ काम कर अपने शिष्यों के पास जा और उन लोगों को नित्य-क्रिया का उपदेश दे क्योंकि वे लोग अपनी नित्य-क्रिया को बहुत दिनों तक छोड देने के कारण भूल गए है, और इससे उनके ऊपर एक भारी आफत आने वाली है ! (कुछ सोचकर) न मालूम क्या बात थी कि मुझे यकायक नींद आ और आँख खुली तो अपने को यहाँ पाता हूँ। अहा तू ही तो है !! अब लो सबके पहिले गुरू की आज्ञा का पालन करूँगा और अपने शिष्यों से मिल कर उन्हें उपदेश करूँगा मैं तुम्हारे साथ उस मकान में नहीं जा सकता, (खडे होकर) पहिले मैं उन चेलों को खोजूंगा और उन्हें उपदेश करूगा । नौजवान-(पैरों पर गिर कर) बस बस अब मुझे निश्चय हो गया कि सत्तगुरुने आपको हमारी ही लिये यहाँ भेजा है. हमी लोग उपदेश पाने योग्य हैं और नित्य क्रिया भूले हुए हैं। रनबीर-(झूम कर) अहा, तू ही तो है। मगर मैं तुम्हारी बातें नहीं मान सकता, यहाँ से चले जाओ, आधी घडी के लिये मुझे छोडदो, हम सतगुरु से पूछ लें। इतना कहकर रनबीरसिह चट्टान पर बेठ गए और सिद्धासन होकर ध्यान करने लगे। नौजवान थोडी देर तक पास खड़ा रहा इसके बाद जल्दी जल्दी कदम बढाता हुआ मकान के अन्दर चला गया और थोड़ी ही दर में उन्नीस बीस आदमियों को साथ लिये रनबीरसिह के पास आ पहुचा। एनबीरसिह अभी तक ध्यान में बैठे हुए थे इसलिये वे लोग उन्हें चारो तरफ से घेरे चुपचाप अदब से बैठ गए। उन लागों की पोशाक बेशकीमत और सिपाहियाना ठाठ की थी और वे लोग नौजवान और देखने में हाथ पैर से मजबूत और लड़ाके मालूम होते थे। थोडी देर बाद रनबीरसिह ने आँखें खोली और अपने चारो तरफ भीड देख कर बोले, "तू ही तो है नौजवान से)हॉ ठीक है, सत्तगुरु की आज्ञा हो गई बेशक यहाँ के रहने वाले तीन आदमियों को छोडकर बाकी सब हमारे चेले हैं, इसलिये मैं सभों को उपदेश करूगा! नौजवान-(जिससे पहिले मुलाकात हुई थी) वे तीन आदमी कौन है जिन्हें आप अपना चेला नहीं मानते ? वेशक सत्तगुरु उनसे रुष्ट हैं यदि आप कृपा करके उन तीनों का पता सत्तगुरु से पूछ के हमें बतावे तो उन्हें अवश्य दण्ड दिया जाय। रनबीर- (झूमकर) अहा! तू ही तो है। अच्छा देखा जायगा घबडाओ मत मुझे सत्तगुरु ने पन्द्रह दिन तक यहा रहने की आज्ञा दी है। नौजवान-(खुश होकर) सत्तगुरु की हमलोगों पर बडी भारी कृपा है। अब आप कृपा करके मकान के अन्दर चलें तो हम लोगों का चित्त प्रसन्न हो। थोड़ी देर तक मस्ताने ढग की बातें करने के बाद रनबीरसिह मकान के अन्दर जाने के लिये उठ खड़े हुए, नौजवान और उसके साथी बड़े ही आदर सत्कार के साथ अपने अनूठे गुरु रनबीरसिह को मकान के अन्दर ले गए और उनके रहने के लिये एक उत्तम स्थान का प्रबन्ध किया। इस मकान के अन्दर जाने और उसकी बनावट देखने से रनबीरसिह को बहुत ताज्जुब हुआ क्योंकि यह मकान सैकड़ों आदमियों के रहने लायक और विचित्र ढग का बना हुआ था और इसमें

  • उस मकान के रहने वाले जिनका असल हाल आगे चल कर मालूम होगा सत्तगुरु देवदत्त की गद्दी को मानते थे

और उस गद्दी के चेलों को गुरु के समान मानते और उनसे डरते थे। देयकीनन्दन खत्री समग्र १०९६