पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८२

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घडघडाहट ही आवाज आने लगी जिससे वे पॉचों कैदी बहुत ही ताज्जुब और घबडाहट में आ गये। मगर कुमार ने उन्हें समझा कर शान्त किया और कुछ खाने-पीनेकी फिक्र में लगे। पहर भर बाद वह आवाज वन्द हुई और तब कुमार भी हर तरह से निश्चिन्तहो गये। दोपहर दिन ढलने के बाद पाँचों कैदियों को साथ लिए हुए दानों कुमार पुन तहखाने के अन्दर उतरे। जब उस कमरे में पहुंचे तो वहा शेर और चबूतरे का नाम निशान भी न पाया. हा उसके बदले में उस जगह एक गडहा दखा जिसमें उतरन के लिए छ सात सीढिया बनी हुई थी। कैदियों को भी साथ लिए और तिलिस्मी रञ्जर की रोशनी किए हुए दोनों कुमार इस सुरग में घुसे और लगभग पचास कदम जान याद पुन एक कमरे में पहुचे। यह कमरा भी पहिले ही कमरे के बराबर था और इसके सामने की दीवार में पुन आगे जाने के लिए एक सुरग का मुहाना नजर आ रहा था अर्थात् इस कमरे को लाघ कर पुन आगे बढ जाने के लिए भी रामन की तरफ सुरग दिखाई दे रही थी। यह कमरा पहिले ही तरह खाली या सूनसान न था। इसमें तरह-तरह की वशकीमत चीजो तथा जवाहिरात और अशर्फियों के भी जगह जगह ढेर लगे हुए थे जिन्हें देखकर उन पाचों कैदियों में से एक ने कुअर इन्द्रजीतसिह से पूछा इतनी बड़ी रकम यहा किसके लिए रक्खी हुई है ? इन्द्र-यह सब दोलत हमारे लिए रक्खी हुई है केवल इतनी ही नहीं बल्कि इसी तरह और भी कई जगह इससे भी बढ के अच्छी-अच्छी और कीमती चीजे दिखाई देंगी। कैदी-इन चीजों को आप क्योंकर बाहर निकालेंग? इन्द-जब हम लोग तिलिरम ताडत हुए चुनारगद पहुचेंगे तब ये सब चीजें निकलवा ली जायगी। कैदी-तब तक इसी तरह ज्यों की त्यों पड़ी रहेगी? इन्द्र-हा। इस कमरे में चारों तरफ की दीवारों के साथ तरह-तरहक यशकीमत हर्व लटक रहे थे जिन पर इस खयाल से कि जग इत्यादि लग कर खराब न हो जाय एक किस्म का मोमी रोगन लगा हुआ था। नीचे दोसन्दूक जड़ाऊ जेवरों से भर हुए थ जिनमें ताले लगे हुए न थे। इसके अतिरिक्त सोन के बहुत से जड़ाऊ खुशनुमा और नाजुक वर्तन भी दिखाई दे रहे थे। इन चीजों की देखभाल कर कुमार आगे बढे और सुरग के दूसरे मुहाने में घुस कर दूर तक चले गये। अवकी दफे का सफर सीधा न था बल्कि घूम-घुमौवा था। लगभग दो या डेढ कास जाने के बाद पुन एक कमरे में पहुचे। पहिले कमरे की तरह इसमें भी आमन-सामन दोनों तरफ सुरग बनी हुई थी। इस कमरे में सोने चादी या जवाहिरात की कोई चीज न थी हा दीवारों पर बड़ी-बडीतस्वीरे लटक रही थीं जो एक किस्म के रोगनी कपडे पर जिस पर सर्दी गर्मी का असर नहीं पहुच सकता था बनी हुई थीं। इन तस्वीरों में रोहतासगढ और युनार की तस्वीरें ज्यादे थी और तरह-तरह के नक्शें भी जगह-जगह लटक रहे थे जिन्हें बड़े गौर से दोनों कुमार देर तक देखते रहे। इस कमरे की कैफियत को देख के इन्द्रजीतसिह ने आनन्दसिह से कहा 'मालूम होता है ब्रह्म मण्डल यही है इसी जगह हम लोगों को वरावर आना पडेगा तथा चुनारगढ के तिलिस्म की चाभी भी इसी जगह से हमें मिलेगी। आनन्द-वशक यही बात है इस जगह के प्रहामण्डल होने में कुछ भी शक नहीं हो सकता। इन्द-फिर अब तुम्हारी क्या राय है? इस समय यहा कुछ काम किया जाय या नहीं? क्योंकि इस काम को हम लोग अपनी इच्छानुसार कर सकते है। आनन्द-मेरी राय में तो इस समय यहा कोई काम न करना चाहिये क्योंकि (कैदियों की तरफ इशारा करके ) इन लोगों को तकलीफ होगी पहिले इन लोगों को तिलिस्म के बाहर कर देना उचित होगा फिर हम लोग यहा आकर अपना काम किया करेंगे। इन्द्र-में भी यही उचित समझता है, इसके अतिरिक्त हम लोगों को यहा कई दफे आने की जरूरत पड़ेगी अस्तु इस समय अगर यहा अटककर कोई काम करेंगे तो बाहर निकलने में बहुत दर हो जायगी और हम भी परशान और दुखी हो जायगे। इतना कहकर इन्दजीतसिह आगे की तरफ बढे और सभों को लिए सामने वाली सुरग में घुस । अबकी दफे दोनों कुमारों और कदियों का बहुत ज्याद चलना पड़ा और साथ ही इसके भूख प्यास की भी तकलीफ उठानी पडी। कई कोस का सफर करने के बाद जब वे लोग सुरग के बाहर निकले तो सुबह की सफेदी आसमान पर फैल चुकी थी इसलिए + - देवकीनन्दन खत्री समग्र ८७४