पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८५

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JAN जब उन दोनों ने उस लाश को उठा लिया और फूलों की खुशबू को तेजी के साथ दिमाग में घुसने का मौका मिला तब उन दोनों नकाबपोशों ने समझा कि हमारे साथ ऐयारी की गई मगर अब कर ही क्या सकते थे? तुरन्त सर में चक्कर आने लगा जिसके सबब से वे दोनों बैट गये और साथ ही इसके बेहोश होकर जमीन पर लम्बे हो गये। उस समय औरत की लाश भी चैतन्य हो गई और वह देहाती गूगा भी उनकी खोपडी पर आ मौजूद हुआ। उस औरत ने देहाती गूर्ग से कहा अब क्या करना चाहिये? देहाती-अब हमारा काम हो गया अब इन्हें मालूम हो जायगा कि 'भूतनाथ कोई साधारण ऐयार नहीं है। औरत-मगर अब भी आपको इस वात के सोचने का मौका है कि नकाबपोश लोग आपसे रज न हो जाय और इस रखेडे का नतीजा बुरा न निकले। देहाती इन बातों को मैं खूब सोच चुका हू। उन दोनों नकाबपोशों को जो हमारे राजा साहब के दर्वार में जाया करते है मैं रज होने का मौका ही न दूगा और इन दोनों में से भी केवल एक ही को उठा ले जाऊगा और उसी से अपना काम निकालूगा। इतना कह उस देहाती ने दोनों नकाबपाशों के चेहरे पर से नकाब उलट दी मगर असली सूरत पर निगाह पडते ही चौक के उस औरत की तरफ देखकर कहा ओफ आह य सूरतें तो वे ही है जिन्होंने दारे-आम में दारोगा और जैपाल को बदहवास कर दिया था पहिले दिन जब एक नकाबपोश ने अपने चेहरे पर से नकाब हटाई थी तो दारोगा के सर में चक्कर *आ गया था और दूसरे दिन जब दूसरे नकाबपोश ने सूरत दिखाई तो जैपाल की जान शरीर से निकलने की तैयारी करने लगी थी ** 1 इसी बीच में वह औरत भी उठकर हर तरह से दुरुस्त हो गई थी जिसे थोडी देर पहिले दोनों नकाबपोश मुर्दा समझ कर उठा ले चले थे असल में उसका हाथ कटा हुआ न था. असली हाथ कपडे के अन्दर छिपा हुआ था और एक बनावटी कटा हुआ हाथ लगा कर दिखा दिया गया था ! ऊपर की बात-चीत से हमारे पाठक समझ गये होंगे कि ये देहाती महाशय असल में भूतनाथ है और दोनों औरतें उसके नौजवान शागिर्द तथा मर्द है । भूतनाथ की आखिरी बात सुनकर उसके एक शामीद ने जो औरत की सूरत में था कहा. 'क्या ये ही दोनों हमारे महाराज के दबारी में जाया करते है। . भूत-दर में जब नकाबपोशों ने सूरत दिखाई थी तब दो दफे इन्हीं दोनों की सूस्तें देखने में आई थीं मगर मै नहीं कह सकता कि वहा जाने वाले दोनों नकाबपोश यही है। मेरा दिल तो यही गवाही देता है कि दोनों नकाबपोश कोई दूसरे है और जब दर्वार में जाते है तो केवल नकाब ही डाल कर नहीं बल्कि अपनी सूरतें भी बदल कर जाते हैं और उस दिन इन्हीं की सी सूरत बना कर गये थे। शागिर्द-बेशक ऐसा ही है। e, भूत-खैर अब मै इन दोनों में से एक को छोड न जाऊँगा जैसा कि पहिल इरादा कर चुका था बाल्क दोनों ही को उठा कर ले जाऊगा और असली भेद मालूम करके ही छोडूगा । इतना कहकर भूतनाथ ने ऐयारी ढग पर उन दोनों नकाबपोशों की गठरी बाधी और तीनों आदमी मिलजुल कर उन्हें उठा ले गये।

  • देखिये चन्द्रकान्ता सन्तति उन्नीसदा भाग दसवा बयान।
  • *देखिय चन्द्रकान्ता सन्तति उन्नीसवा भाग बारहवा क्यान।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ८७७