पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८७

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J स्त्री को दखा था और उसके पीछे-पीछे गये थे। इस समय आप यह सुनकर और ताज्जुब करेंगे कि आपसे अलग होकर भूतनाथ ने उसी दिन अर्थात् कल सध्या के समय उन दोनों नकाबपोशों को गिरफ्तार कर लिया जिनकी सूरत यहा दरबार में देख कर दारोगा और जैपाल वदहवास हो गये थे।. वीरेन्द-(ताज्जुब से) | मगर वे दोनों नकाबपोश तो आज भी यहा आये थे जिनका जिक्र तुम कर रहे हो । तारा-जी हा उन्हें तो में अपनी आखों ही से देख चुका है, मगर मेरे कहने का मतलब यह है कि भूतनाथ ने कल जिन दोनों नकाबपोशों को गिरफ्तार किया है उनकी सूरतें ठीक वैसी ही हैं जैसी दारोगा और जैपाल ने यहा देखी थीं चाहे ये लोग हो कोई भी। तेज-और भूतनाथ ने उन्हें गिरफ्तार कहा पर किया ? तारा-उसी खोह के मुहाने पर उसने उन्हें धोखा दिया जिसमें नकाबपोश लोग रहते थे। देवी-मालूम होता है कि हम लोगों की तरह तुम भी कई दिनों से नकाबपोशों की खोज में पडे हो? तारा-खोज में नहीं बल्कि फेर में। बीरेन्द्र-खैर तुम खुलासे तौर पर सब हाल बयान कर जाओ इस तरह पूछने और कहने से काम नहीं चलेगा। तारा-जो आज्ञा मगर मेरा हाल कुछ बहुत लम्बा चौडा नहीं, केवल इतना ही कहना है कि मैं भी पाच-सातदिन से उन नकाबपोशों के फेर में पड़ा हू और इत्तिफाक से मैं भी उसी खोह के अन्दर जा पहुचा जिसमें वे लोग रहते हैं। (कुछ सोच और जीतसिह की तरफ देखकर ) अगर कोई हर्ज न हो तो दो घण्टे के बाद मुझसे मेरा हाल पूछा जाय ! जीत-(महाराज की तरफ देखकर और कुछ इशारा पाकर ) खैर कोई चिन्ता नहीं, मगर यह बताओ कि इस दो घण्टे के अन्दर तुम क्या काम करोगे। तारा-कुछ भी नहीं, मैं केवल अपनी मा से मिलूगा और स्नान-ध्यान से छुट्टी पा लूगा । देवी-(धीरे से ) आज के लडके भी कुछ विचित्र ही पैदा होते हैं खास करके ऐयारों के। इसके जवाब में तारासिह ने अपने पिता की तरफ देखा और मुस्कुराकर सर झुका लिया। यह बात देवीसिह को कुछ धुरी मालूम हुई मगर बोलने का मौका न देखकर चुप रह गये। तेज-(तारा से) आज जब हम लोग तुम्हारे न मिलने से परेशान थे तो हमारी परेशानी को देख कर नकाबपोशों ने कहा था कि तारासिह के लिए आपको तरदूद न करना चाहिये आशा है कि वह घण्टे भर के अन्दर ही यहा आ पहुचेगा, और वास्तव में हुआ भी ऐसा ही, तो क्या नकाबपोशों को तुम्हारा हाल मालूम था? यह बात नकाबपोशों से भी पूछी गई थी मगर उन्होंने कुछ जवाब न दिया और कहा कि इसका जवाब तारा ही देगा । तारा-नकाबपोशों की सभी बातें ताज्जुब की होती है मैं नहीं जानता कि उन्हें मेरा हाल क्योंकर मालूम हुआ । तेज-क्या तुम्हें इस बात की खबर है कि इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह ने तुम्हें और भैरोसिह को बुलाया है ? तारा-जी नहीं। तेज-( कुमार की चीठी तारा को दिखाकर ) लो इसे पढो । तारा-(चीठी पढकर ) नकाबपोशो ही के हाथ यह चीठी आई होगी? तेज-हा और उन्हीं नकाबपोशों के साथ तुम दोनों को जाना भी पडेगा। तारा-जब मर्जी होगी हम दोनों चले जायगे। इसके बाद महाराज की आज्ञानुसार दरि बर्खास्त हुआ और सब कोई अपने-अपने ठिकाने चले गये। तारासिह भी महल में अपनी मा से मिलने के लिये चला गया और घण्टे भर से ज्यादे देर तक उसके पास बैठायात-चीतकरता रहा इसके बाद जय महल से बाहर आया तो सीधे जीतसिह के डेरे में चला गया और जब मालूम हुआ कि वे महाराज सुरेन्द्रसिह के पास गये हुए है तो खुद भी महाराज सुरेन्दसिह के पास चला गया। हम नहीं कह सकते कि महाराज सुरेन्द्रसिह जीतसिह और तारासिह में देर तक क्या क्या बातें होती रही हा इसका नतीजा यह जरूर निकला कि तारासिह को पुन अपना हाल किसी से कहना न पडा अर्थात महाराज ने उसे अपना हाल बयान करने से माफी द दी ओर तारासिह को भी जो कुछ कहना-सुननाथा महाराज से है, कह-सुनकर छुटटी पा ली। औरों को तो इस बात का ऐसा ख्याल न हुआ मगर देवीसिह को यह चालाकी बुरी मालूम हुई और उन्हें निश्चय हो गया कि तारासिह और चम्पा दोनों मा बेटे मिले हुए है और साथ ही इसके बडे महाराज भी इस भेद का जानते हैं मगर ताज्जुब है कि ऐयारो पर प्रकट नहीं करते, इसका कोई न कोई सबब जसर है ओर तब देवीसिह की हिम्मत न पड़ी कि अपने लड़के को कुछ कहें या डाटें। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ८७९