पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८८९

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-- तेरहवाँ बयान 1 2 रात घण्टे भर से कुछ ज्यादे जा चुकी है। पहाड के एक सूनसान दर्रेम जहा किसी आदमी का जाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव जान पडता है सात आदमी बैठ हुए किसी के आने का इन्तजार कर रहे हैं और उन लोगों के पास ही एक लालटेन जल रही है। यह स्थान चुनार गढ के तिलिस्मी मकान से लगभग छ सात कास की दूरी पर होगा। यह दा पहाडों के बीच वाला दर्रा बहुत बड़ा पचीदा ऊचा-नीचा और ऐसा भयानक था कि साधारण मनुष्य एक सायत के लिए भी यहा खडा रहकर अपने उछलते और कापते हुए कलेजे को सम्हाल नहीं सकता था। इस दर्रे में बहुत सी गुफाए . ऐसी है जिनमें सैकडा आदमी आराम से रहकर दुनियादारी की आखों से बल्कि बहम और गुमान से भी अपने को छिपा सकत है और इसी से समझ लेना चाहिये कि यहा ठहरने या वैठने वाला आदमी साधारण नहीं बल्कि बडे जीवट और कर्ड दिल का होगा। व सातों आदमी जिन्हें हम बेफिक्री के साथ बैठे देखते हे भूतनाथ के साथी है और उसी की आज्ञानुसार ऐसे स्थान में अपना घर बनाय पडे हुए है। इस समय भूतनाथ यहा आने वाला है, अस्तु ये लोग भी उसी का इन्तजार कर रहे है। इसी समय भूतनाथ भी उन दोनों नकाबपोशों को जिन्हे आज ही धोखा देकर गिरफ्तार किया था लिए हुए आ पहुचा। मूतनाथ को देखते ही वे लोग उठ खडे हुए और नकाबपोशों की गठरी उतारने म सहायता दी । दानों वेहाश जमीन पर सुला दिए गये और इसके बाद भूतनाथ ने अपने एक साथी की तरफ देखकर कहा थोडा पानी ले आआ में इन दोनों के चहरे धोकर देखा चाहता हूँ । इतना सुनते ही एक आदमी दौडता हुआ चला गया और थोडी देर दूर पर एक गुफा के अन्दर घुस कर पानी भरा हुआ लोटा ले कर चला आया। भूतनाथ ने बडी होशियारी से (जिसमें उनका कपडा भीगने न पावे) दोनों नकाबपोशों का चेहरा धोकर लालटेन की रोशनी में गौर स दखा मगर किसी तरह का फर्क न पाकर धीरे से कहा इन लोगों का चेहरा रंगा हुआ नहीं है। इसके बाद भूतनाथ ने उन दोनों को लखलखा सुघाया जिससे वे तुरन्त ही होश में आकर उठ बैठे और घबराहट के साथ चारों तरफ देखने लगे। लालटेन की राशनी में भूतनाथ के चेहरे पर निगाह पडते ही उन दोनों ने भूतनाथ को पहिचान लिया और हस कर उससे कहा "बहुत खास | तो ये सब जाल आप ही के रच हुए थे? भूत-जी हा मगर आप इस बात का ख्याल भी अपने दिल में न लाइयेगा कि मैं आपको दुश्मनी की नीयत से पकड लाया है। एक नकापोश-(हस कर) नहीं नहीं यह बात हम लोगों के दिल में नहीं आ सकती और न तुम हमें किसी तरह का नुकसान पहुचा ही सकते हो, मगर मै यह पूछता है कि तुम्हें इस कार्रवाई के करने से फायदा क्या होगा? भूत-आप लोगों से किसी तरह का फायदा उठाने की भी मेरी नीयत नही है। मतो केवल दो-चारवातों का जवाब पाकर ही अपनी दिलजमई कर लूगा और इसके बाद आप लोगों को उसी ठिकान पहुंचा दूगा जहाँ से लाया हूँ। नकाक्-मगर तुम्हारा यह ख्याल भी ठीक नहीं है क्योंकि तुम खुद समझ गये हागे कि हम लोग थोडे ही दिनों के लिए अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए हैं और अपना भेद प्रकट होने नहीं देते इसके बाद हम लोगों का भेद छिपा नहीं रहगा अस्तु इस बात को जान कर भी तुम्हें इतनी जल्दी क्यों पड़ी है और क्यों तुम्हारे पेट में चूह कूद रहे हैं? क्या तुम नहीं जानते कि स्वय महाराज सुरेन्द्रसिह और राजा वीरेन्द्रसिह हम लोगों का भेद जानने के लिए बताब हो रहे थे मगर कई बातों पर ध्यान दकर हम लोगों ने अपना भेद खोलने से इनकार कर दिया और कह दिया की कुछ सब कीजिए फिर आपसे आप हम लोगों का भेद खुल जायगा, फिर तुम हो क्या चीज जो तुम्हारे कहने से हम लोग अपना भेद खाल देंगे? नकाबपाश की कुरुखी मिली हुई बातें सुन कर यद्यपि भूतनाथ को क्रोध चढ आया मगर क्रोध करने का मौका न दख वह चुप रह गया और नरमी के साथ फिर बात-चीत करने लगा। भूत-आपका कहना ठीक है में इस बात को खूब जानता हू, मगर मै उन नेदों को खुलवाना नहीं चाहता जिन्हें हमारे महाराज जानना चाहते हैं मैं तो केवलदो-चार मामूली बातें आप लोगों से पूछना चाहता हू जिनका उत्तर देने में न तो आप लोगों का भेद ही खुलता है और न आप लोगों का कोई हज ही होगा इसके अतिरिक्त मै वादा करता हूँ कि मेरी बातों का जो कुछ आप जवाब देंगे उसे मैं किसी दूसर पर तब तक प्रकट न करुगा जब तक आप लोग अपना भेद न खोलेंगे। चन्द्रकान्ता सन्तति नाग २० ८८१