पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९०

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नकाब-(कुछ सोचकर ) अच्छा पूछो क्या पूछते हो? भूत-पहली बात मै यह पूछता हू कि देवीसिह के साथ मैं आप लोगों के मकान में गया था यह यात आपको मालूम है या नहीं? 1 नकाब-हा मालूम है। भूत-खैर और दूसरी बात यह है कि वहा मैने अपने लडके हरनामसिह को देखा, क्या वह वास्तव में हरनामसिह ही. था। नकाय-(कुछ क्रोध की निगाह से भूतनाथ को देखकर ).हा था तो सही, फिर? भूत-(लापरवाही के साथ ) कुछ नहीं, मैं केवल अपना शक मिटाना चाहता था। अच्छा अव तीसरी बात यह जानना चाहता हूं कि वहा देवीसिह ने अपनी स्त्री को और मैंने अपनी स्त्री को देखा था, क्या वे दोनों वास्तव में हम दोनों की स्त्रियों थीं या कोई और ? नकाय-चम्पा के बारे में पूछने वाले तुम कौन हो हा अपनी स्त्री के बारे में पूछ सकते हो सो मै साफ कह देता है कि वह बेशक तुम्हारी स्त्री रामदेई थी। यह जवाब सुनते ही भूतनाथ चौका और उसके चेहरे पर क्रोध और ताज्जुब की निशानी दिखाई देने लगी। भूतनाथ को निश्चय था कि उसकी स्त्री का असली नाम रामदेई किसी को मालूम नहीं है मगर इस समय एक अनजान आदमी के मुह से उसका नाम सुनकर भूतनाथ को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और इस बात पर उसे क्रोध भी चढ आया कि मेरी स्त्री इन लोगों के पास क्यों आई. क्योंकि वह एक ऐसे स्थान पर थी जहा उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई जा नहीं सकता था ऐसी अवस्था में निश्चय है कि वह अपनी खुशी से बाहर निकली और इन लोगों के पास आई। केवल इतना ही नहीं उसे इस बात केखयाल सेऔर भी रज हुआ कि मुलाकात होने पर भी उसकी स्त्री ने उससे अपने को छिपाया बल्कि एक तौर पर धोखा देकर बेवकूफ बनाया-आदि इसी तरह की बातों को परेशानी और रज के साथ भूतनाथ सोचने लगा। नकाय-अब जो कुछ पूछना था पूछ चुके या अभी कुछ बाकी है ? भूत हा अभी कुछ और पूछना है। नकाय तो जल्दी से पूछते क्यों नहीं सोचने क्या लग गये? भूत-अब यह पूछना है कि मेरी स्त्री आप लोग के पास कैसे आई और वह खुद आप लोगों के पास आई या उसके साथ जबर्दस्ती की गई? नकाब-अब तुम दूसरी राह चले, इस बात का जवाब हम लोग नहीं दे सकते। भूत-आखिर इसका जवाब देने में हर्ज ही क्या है ? नकाब-हो या न हो मगर हमारी खुशी भी तो कोई चीज है। भूत-(क्रोध में आकर ) ऐसी खुशी से काम नहीं चलेगा आपको मेरी बातों का जवाब देना ही पड़ेगा। नकाव-(इस कर ) मानों आप हम लोगों पर हुकूमत कर रहे हैं और जबर्दस्ती पूछ लेने का दावा रखते है ? भूत-क्यों नहीं आखिर आप लोग इस समय मेरे कब्जे में है। इतना सुनते ही नकाबपोश को भी क्रोध चढ आया और उसने तीखी आवाज में कहा इस भरोसे न रहना कि हम लोग तुम्हारे कब्जे में हैं, अगर अब तक नहीं समझते थे तो अब समझ रकखो कि उस आदमी का तुम कुछ नहीं बिगाड सकते जो अपने हाथों से तुम्हारे छिपे हुए ऐवों की तस्वीर बनाने वाला है। हा-हावेशक तुमने वह तस्वीर हमारे मकान में देखी होगी अगर सचमुच अपने लडके हरनामसिह को उस दिन देख लिया है तो।' यह एक ऐसी बात थी जिसने भूतनाथ के होश हवास दुरूस्त कर दिये। अब तक जिस जोश और दिमाग के साथ वह बैठा बातें कर रहा था वह बिल्कुल जाता रहा और घबराहट तथा परेशानी ने उसे अपना शिकार बना लिया वह उतकर खडा हो गया और बेचैनी के साथइधर-उधरटहलने लगा। बड़ी मुश्किल से कुछ देर में उसने अपने को सम्हाला और तब नकाबपोश की तरफ देखकर पूछा क्या वह तस्वीर आपके हाथ की बनाई थी? नकाय-बेशक । भूत-तो आप ही ने उस आदमी को वह तस्वीर दी भी होगी जो मुझ पर उस तस्वीर की बाबत दावा करने के लिये कहता था । नकाव-इस यात का जवाब नहीं दिया जायगा। भूत-तो क्या आप मेरे उन भेदों को दर्बार में खोला चाहते हैं? देवकीनन्दन खत्री समग्र ८८२