पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९१

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नकाय-अभी तक तो ऐसा करने का इरादा नहीं था, मगर अब जैसा मुनासिब समझा जायगा वैसा किया जायगा भूत-उन भेदों को आपके अतिरिक्त आपकी मण्डली में और भी कोई जानता है ? नकाय-इसका जवाब देना भी उचित नहीं जान पडता! भूत-आप बड़ी जबर्दस्ती करते है ! नकाब-जबर्दस्ती करने वाले तो तुम थ मगर अब क्या हो गया? भूत--(तेजी के साथ) मुमकिन है कि मैं अब भी जबर्दस्ती का बर्ताव करू । कोई क्या जान सकता है कि तुम लोगों को कौन उठा ले गया। नकाय-(हसकर) ठीक है. तुम समझते हो कि यह बात किसी को मालूम न होगी कि हम लोगों को भूतनाथ उठा ले गया है। भूत-(जोर देकरा) ऐसा ही है इसके विपरीत भी क्या कोई समझ सकता है ? इतने ही में थोड़ी दूर पर से यह आवाज आई, 'हा समझ सकता हे और विश्वास दिला सकता है कि यह बात छिपी हुई नहीं है।' अब तो भूतनाथ की कुछ विचित्र हालत हो गई वह घबडाकर उस तरफ देखने लगा जिधर से आवाज आई थी और फुर्ती के साथ अपने आदमियों से बोला पकडो जाने न पाये ! भूतनाथ के आदमी तेजी के साथ उस चोलने वाले की खोज में दौड गये मगर नतीजा कुछ भी न निकला अर्थात् वह आदमी गिरफ्तार न हुआ और भागकर निकल गया। यह हाल देख दोनों नकाबपोश खिलखिला कर हस दिये और कहा, 'क्यों अब तुम अपनी क्या राय कायम करते हो?' भूत-हा मुझे विश्वास हा गया कि आपका यहा रहना छिपा नहीं रहा अथवा हमारे पीछे आपका कोई आदमी यहा तक जरूर आया है। इसमें कोई शक नहीं कि आप लोग अपने काम में पक्के है कच्चे नहीं मगर ऐयारी के फन में मैंने आपको दवा लिया। नकाय-यह दूसरी बात है तुम ऐयार हो और हम लोग ऐयारी नहीं जानते. मगर इतना होने पर भी तुम हमारे लिये दिन रात परेशान रहते हो और कुछ करते-धरते नहीं बन पडता । मगर भूतनाथ, हम तुमसे फिर भी कहते हैं कि हम लोगों के फेर में न पड़ो और कुछ दिन सब करो, फिर आप से आप तुम्हें हम लोगों का हाल मालूम हो जायगा। ताज्जुब है कि तुम इतने बडे ऐयार होकर जल्दबाजी के साथ ऐसी ओछी कार्रवाई करके खुदबखुद अपना काम बिगाडने की कोशिश करते हो | उस दिन दर्वार में तुम देख चुके हो और जान भी चुके हो कि हम लोग तुम्हारी तरफदारी करते हैं तुम्हारे ऐयों को छिपाते हैं, और तुम्हें एक विचित्र ढग से माफी दिला कर खास महाराज का कृपापात्र बनाया चाहते है फिर क्या सबब है कि तुम हम लोगों का पीछा करके खामखाह हमारा क्रोध बढ़ा रहे हो ? भूत-(गुस्से को दवा कर नर्मी के साथ)नहीं-नहीं, आप इस बात का गुमान भी न कीजिए कि मै आप लोगों को दुख दिया चाहता हू और . नकाय-(बात काट के लापरवाही के साथ) दु ख देने की बात मैं नहीं कहता क्योंकि तुम हम लोगों को दुख दे ही नहीं सकते। भूत-खैर न सही मगर मैं अपने दिल की बात कहता हू कि किसी बुरे इरादे से मैं आप लोगों का पीछा नहीं करता क्योंकि मुझे इस बात का निश्चय हो चुका है कि आप लोग मेरे सहायक है, मगर क्या करू अपनी स्त्री को आपके मकान में देखकर हैरान हू और मेरे दिल के अन्दर तरह-तरहकी बातें पैदा हो रही है आज में इसी इरादे से आप लोगों को यहा ले आया था कि जिस तरह हो सके अपनी स्त्री का असल भेद मालूम कर लू । नकाय-जिस तरह हो सके केकया मानी? हम कह चुके है कि तुम हमें किसी तरह की तकलीफ नही पहुचा सकते और न उरा-धमका कर ही कुछ पूछ सकते हो क्योंकि हम लोग बड़े ही जबर्दस्त है। भूत-अब इतनीशेखी तो नहीं बधारिये, क्या आप ऐसे मजबूत है कि हमारा हाथ कोई काम कर ही नही सकता। नकाब-हमारे कहने का मतलब यह नहीं है बल्कि यह है कि ऐसा करने से तुम्हे कोई फायदा नहीं हो सकता, क्योंकि हमारे सगी साथी सभी कोई तुम्हारे भेद को जानते है मगर तुम्हें नुकसान पहुचाना नहीं चाहते। हमारी ही तरफ ध्यान देकर देख लो कि तुम्हारे हार्थो दुखी होकर भी तुम्हें दु ख देना नहीं चाहते और जो कुछ तुम कर चुके हो उसे सह कर भूत-हमने आपको क्या दुख दिया है? नकाय-अगर हम इस बात का जवाब देंगे तो तुम औरों को तो नही. मगर हमें.पहिचान जाआगे। बैठे है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २०