पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 भूत-अगर आपको पहिचान भी जाऊगा तो क्या हर्ज है ? मैं फिर प्रतिज्ञापूर्वक कहता हू कि जब तक आप स्वय अपना भेद न खालेगे तब तक मैं अपने मुह से कुछ भी किसी के सामने न कहूगा आप इसका निश्चय रखिये। नकाव-(कुछ सोचकर ) मगर हमारा जवाब सुनकर तुम्हें गुस्सा चढ आवेगा और ताज्जुब नहीं कि खञ्जर का वार कर बैठो। भूत-नहीं-नहीं कदापि नहीं क्योंकि मुझे अव निश्चय हो गया कि आपका यहा आना छिपा नहीं है, अगर मैं आपके साथ कोई बुरा बर्ताव करगा तो किसी लायक न रहूगा ! नकाव-हा ठीक है और बेशक बात भी ऐसी ही है (फिर कुछ सोचकर ) अच्छा तो अब तुम्हारी उस बात का जयाय देते हैं सुनो और अपने कलेजे को अच्छी तरह सम्हालो । भूत--कहिये मै हर तरह से सुनने के लिए तैयार है। नकाव-उस पीतल वाली सन्दूकसी में जिसके खुलने से तुम डरते हो जो कुछ है वह हमारे ही शरीरकाखून है उसे तुम हमारे ही सामने से उठा ले गये थे और हमारा ही नाम दलीपशाह है। यह एक ऐसी बात थी कि जिसके सुनने की उम्मीद भूतनाथ को नहीं हो सकती थी और न भूतनाथ में इतनी ताकत थी कि ये बातें सुन कर भी अपने को सम्हाले रहता उसका चेहरा एक दम जर्द पड गया कलेजा धड कने लगा हाथ पैर में कपकपी होने लगी और वह सकते की सी हालत में ताज्जुब के साथ नकाबपोश के चेहरे पर गौर करने लगा। नकाब-तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास हुआ या नहीं ! भूत-नहीं तुम दलीपशाह कदापि नहीं हो सकते. यद्यपि मैने दलीपशाह की सूरत नहीं देखी है मगर मैं उसके पहिचानने में गलती नहीं कर सकता और न इसी बात की उम्मीद हो सकती है कि दलीपशाह मुझे माफ कर देगा या मेरे साथ दोस्ती का बर्ताव करेगा। नकाब-तो मुझे दलीपशाह होने के लिए कुछ और भी सबूत देना पडेगा और उस भयानक रात की ओर इशारा करना पडेगा जिस रात को तुमने वह कार्रवाई की थी, जिस रात को घटा-टोपअधेरी छाई हुई थी, बादल गरज रहे थे बार बार बिजली चमक-चमक कर औरतों के कलेजों को दहला रही थी, बल्कि उसी समय एक दफे बिजली तेजी के साथ चमक कर पास ही वाले खजूर के पेड पर गिरी थी. और तुम स्याह कम्बल की घोंघी लगाए आम की बारी में घुस कर यकायक पाय हो गये थोकहो कुछ और भी परिचय दूं या बस ! भूत-(कापती हुई आवाज में)बस-बस मैं ऐसी बातें सुनना नहीं चाहता (कुछ रुक कर) मगर मेरा दिल यही कह रहा है कि तुम दलीपशाह नहीं हो । नकाब-हॉ!तब तो मुझे कुछ और भी कहना पड़ेगा। जिस समय तुम घर के अन्दर घुसे थे तुम्हारे साथ में स्याह कपडे का एक बहुत बड़ा लिफाफा था जब मैने तुम पर खजर का वार किया तब वह लिफाफा गिरपडा और मैंने उठा लिया जो अभी तक मेरे पास मौजूद है, अगर तुम चाहो तो में दिखा सकता हू! भूत-(जिसका बदन डर के मारे काँप रहा था)बसूबस मैं तुम्हें कह चुका हू और फिर चाहता हूं कि ऐसी बातें सुना नहींचाहता और न इसके सुनने से मुझे विश्वास ही हो सकता है कि तुम दलीपशाह हौं। मुझ पर दया करो और अपनी चलती फिरती जुबान रोको ! नकाय-अगर विश्वास नहीं हो सकता तो मैं कुछ और भी कहूगा और अगर तुम न सुनोगे तो अपने साथी को सुनाऊगा । (अपने साथी नकाबपोश की तरफ देख के) मै उस समय अपनी चारपाई के पास बैठा हुआ लिख रहा था जब यह भूतनाथ मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। कम्बल की घोंघी एक क्षण के लिये इसके आगे की तरफ से हट गई थी -और इसके कपडे पर पड़े हुए खून के छीटे दिखाई दे रहे थे। यद्यपि मेरी तरह इसके चेहरे पर भी नकाब पड़ी हुई थी मगर मैथूब समझता था कि यह भूतनाथ है। मै उठ खड़ा हुआ और फुरती के साथ इसके चेहरे पर से नकाब हटा कर इसकी सूरत देख ली। उस समय इसके चेहरे पर भी खून के छींटे पडे हुए दिखाई दिये। भूतनाथ ने मुझे डॉट कर कहा कि 'तुम हट जाओ और मुझे अपना काम करने दो । तब तक मुझे इस बात की कुछ भी खबर न थी कि यह मेरे पास क्यों आया है और क्या चाहता है। जब मैने पूछा कि तुम क्या किया चाहते हो और मैं यहा से क्यों हट जाऊ तब इसने मुझ पर खञ्जर का वार किया क्योंकि यह उस समय बिल्कुल पागल हो रहा था और मालूम होता था कि इस समय अपने पराये को पहिचान नहीं सकता भूत-(बात काटकर) ओफ, बस करो वास्तव में उस समय मुझमें अपने पराये को पहिचानने की ताकत न थीं, मैं अपनी गरज में मतवाला और साथ ही इसके अन्धा भी हो रहा था ! 3 . देवकीनन्दन खत्री समग्र ८८४