पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९५

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दि भूत-(कोध से खजर निकाल कर) क्या वह तुम ही थे ? नया दलीप (खजरका जवाब खजर हीसे देने के लिए तैयार होकर) बेशक मै ही था और मैंने तुम्हारे बटुए में क्या देखा सो भी इस समय बयान करुगा। पहलादलीप-(भूतनाथ को डपटकर) बस खबरदार होश में आओ और अपनी करतूतों पर ध्यान दो। हमर्न पहिले ही कह दिया था तुम क्रोध में आकर अपने को बर्बाद कर दोगे। बेशक तुम बर्बाद हो जाओगे और कौडी काम के न रहोगे, साथ ही इसके यह भी समझ रखना कि तुम दलीपशाह का कुछ नहीं बिगाड सकते और न उसे तुम्हारे तिलिस्मी-खजर की परवाह है। भूत-मैं आपसे किसी तरह तकरार नहीं करता मगर इसको सजा दिये बिना भी न रहूगा क्योंकि इसने मेरे साथ दगा करके मुझे बड़ा नुकसान पहुचाया है और यही शख्स है जो मुझ पर दावा करने वाला है. अस्तु हमारे इसके इसी जगह सफाई हो जाय तो बेहतर है। पहिला दलीप खैर जब तुम्हारी बदकिस्मती आ ही गई है तो हम कुछ नहीं कह सकते तुम लडके देख लो और जो - कुछ बदा है भोगो मगर साथ ही इसके यह भी सोच लो तुम्हारे तरह इसके और मेरे हाथ में भी तिलिस्मी खजरों की चमक में तुम्हारे आदमी तुम्हें कुछ भी मदद नहीं पहुचा सकते। भूत-(कुछ सोचकर और फिर रुक के ) तो क्या आप इसकी मदद फ्रेंगे? पहिला दलीप-बेशक । भूत-आप तो मेरे सहायक है ।। पहिला दलीप-भगर इतने नहीं कि अपने साथियों को नुकसान पहुचावें। भूत-आखिर ये जब मुझे नुकसान पहुचाने के लिए तैयार है तो क्या किया जाय ? पहिला दलीप इनसे भी माफी की उम्मीद करो क्योंकि हम लोगों के सर्दार तुम्हारे पक्षपाती है। भूत-(खजर म्यान में रखकर ) अच्छा अब हम आपकी मेहरबानी पर भरोसा करते है, जो चाहे कीजिये। पहिला दलीप-(नये दलीप से) आओ जी मेरे पास बैठ जाओ। , नया दलीप-मै तो इससे लड़ता ही नहीं मुझे क्या कहते हो। लो मै तुम्हारे पास बैठ जाता हू, मगर यह तो बताओ कि अब इसी भूतनाथ के कब्जे में पड़े रहोगे या यहा से चलोगे भी? पहिला दलीप-(भूतनाथ से) कहो अब मेरे साथ क्या सलूक किया चाहते हो ? तुम्हें मुनासिब तो यही है कि हमें कैद करके दर्बार में ले चलो। भूत-नहीं मुझमें इतनी हिम्मत नहीं बल्कि आप मुझे माफी की उम्मीद दिलाए तो मैं यहा से चला जाऊ । पहिला दलीप हा तुम माफी की उम्मीद कर सकते हो मगर इस शर्त पर कि अब हम लोगों का पीछा न करोगे! भूत-नहीं अब ऐसा न करूंगा। चलिए मैं आपको आपके ठिकाने पहुचा हूँ। नया दलीप-हमें अपना रास्ता मालूम है किसी मदद की जरूरत नहीं। इतना कहकर नया दलीपशाह उठ खडा हुआ और साथ ही वे दोनों नकाबपोश भी जिन्हें भूतनाथ बेहोश करके लध्या था उठे और अपने मकान की तरफ चल पड़े। पन्द्रहवां बयान महाराज सुरेन्द्रसिह के दर्वार में दोनों नकाबपोश दूसरे दिन नहीं आये, बल्कि तीसरे दिन आये आज्ञानुसार बैठ जाने पर अपनी गैरहाजिरी का सबब एक नकाबपोश ने इस तरह बयान किया भैरोंसिह और तारासिह को साथ लेकर यद्यपि हम लोग इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के पास गये मगर रास्ते में कई तरह की तकलीफ हो जाने के कारण जुकाम (सर्दी) और बुखार के शिकार बन गये गले में दर्द और रेजिश के सबब साफ बोला नहीं जाता था बल्कि अभी तक आवाज साफ नहीं हुई इस लिए कुवर इन्द्रजीतसिह ने जोर देकर हम लोगों को रोक लिया और दो दिन अपने पास से हटने न दिया लाचार हम लोग हाजिर न हो सके बल्कि उन्होंन एक चीठी भी महाराज के नाम की दी है। यह कह के नकाबपोश ने एक चीठी जेब से निकाली और उठ कर महाराज के हाथ में दे दी। महाराज ने बडी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २० ८८७