पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रसन्नता स वह चीठी जा खास इन्द्रजीतसिह के हाथ की लिखी हुई थी पढी और इसके बाद बारी-बारीसे सभों के हाथ में वह चीठी घूमी। उसमें यह लिखा हुआ था -- प्रणाम इत्यादि के बाद - आप के आशीर्वाद से हम लोग प्रसन्न है। दोनों एयारों क न होने से जो तकलीफ थी अब वह भी जाती रही। रामसिह ओर लक्ष्मणसिह ने हम लोगों की बडी मदद की इसमें कोई सन्देह नहीं। हम लोग तिलिस्म का बहुत ज्यादे काम खत्म कर चुके हैं। आशा है कि आज क तीसरे दिन हम दोनों भाई आपकी सवा में उपस्थित होंग और इसक बाद जो कुछ तिलिस्म का काम बचा हुआ है उसे आपकी सेवा में रहकर ही पूरा करेंगे। हम दोनों की इच्छा है कि तब तक आप कैदिया का मुकदमा भी वन्द रक्खें क्योंकि उसके देखने और सुनने के लिए हम दोनों बैचेन हो रहे है। उपस्थित होने पर दोनों अपना अनूठा हाल भी अर्ज करेंग।' इस चीठी को पढ कर और यह जान कर सभी प्रसन्न हुए कि अब कुअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिह आया ही चाहते हैं इसी तरह इस उपन्यास के प्रेमी पाठक भी जान कर प्रसन्न हाँगे कि अव यह उपन्यास भी शीघ ही समाप्त हुआ चाहता है। अस्तु कुछ देर तक खुशी के चर्चे होते रहे और इसके बाद पुन नकाबपोशों से बातचीत होने लगी - एक नकाबपोश-भूतनाथ लोटकर आया या नहीं? तेज-ताज्जुब है कि अभी तक भूतनाथ नहीं आया। शायद आपके साथियों ने उसे नकाबपोश-नहीं-नहीं हमारे साथी लोग उसे दुख नहीं देंग मुझे तो विश्वास था कि भूतनाथ आ गया होगा क्योंकि वे दोनों नकाबपोश लोट कर हमारे यहा पहुच गये जिन्हें भूतनाथ गिरफ्तार कर के ले गया था। मगर अच शक होता है कि भूतनाथ पुन किसी फेर में तो नहीं पड़ गया या उसे पुन हमारे किसी साथी को पकड़ने का शौक तो नहीं हुआ तेज-आपके साथी ने लौटकर अपना हाल तो कहा होगा? नकाबपोश-जी हां, कुछ हाल कहा था जिससे मालूम हुआ कि उन दोनों को गिरफ्तार करके ले जान पर भूतनाथ को पछताना पडा। तेज क्या आप बता सकते है कि क्या-क्या हुआ? नकार बतासकते हैं मगर यह बात भूतनाथ को नापसन्द होगी क्योंकि भूतनाथ को उन लोगों ने उसके पुराने ऐको को बता कर डरा दिया था और इसी सवव से वह उन नकाबपोशों का कुछ बिगाड़ न सका। हा हम लोग उन दोनों नकाबपोशों को अपने साथ यहा ले आये है यह सोचकर कि भूतनाथ यहा आ गया होगा अस्तु उनका मुकाविला हुजूर के सामने करा दिया जायगा ! तेज-हॉ वे दोनों नकाबपोश कहा है? नकाबपोश-वाहर फाटक पर उन्हें छोड आया हू, किसी को हुक्म दिया जाय बुला लावे । इशारा पाते ही एक चोबदार उन्हें बुलाने के लिए चला गया और उसी समय भूतनाथ भी दार में हाजिर होता दिखाई दिया। कौतुक की निगाह से सभों ने भूतनाथ का देखा, भूतनाथ ने सभों को सलाम किया और आज्ञा पा देवीसिह के बगल में बैठ गया । जिस समय भूतनाथ इस इमारत की ड्योढी पर आया था उसी समय उन दोनों नकाबपोशों को फाटक पर टहलता हुआ देखकर चौक पड़ा था। यद्यपि उन दोनों के चेहरे नकाबसे खाली न थे मगर फिर भी भूतनाथ ने उन्हें पहिचान लिया कि ये दोनों वही नकाबपोश है जिन्हें हम फंसा ले गये थे। अपने घडकते कलेजे और परेशान दिमाग को लिए हुए भूतनाथ फाटक के अन्दर चला गया और दार में हाजिर होकर उसने दोनों सर्दार नकाबपोशों को देखा। एक नकाबपोश-कहो भूतनाथ अच्छे तो हौ ? भूत-हूजूर लोगों के एकवाल से जिन्दा हूँ मगर दिन-रात इसी सोच में पड़ा रहता हूँ कि प्रायश्चित करन या क्षमा मागन से ईश्वर भी अपने भक्तों के पापों को भुलाकर क्षमा कर देता है परन्तु मनुष्यों में वह वात क्यों नहीं पाई जाती । नकाक्-र्जा लोग ईश्वर के भक्त हैं और जो निर्गुण और सगुण सर्वशक्तिमान जगदीश्वर का भरोसा रखते है व जीव मात्र के साथ वैसा ही बर्ताव करते है जैसा ईश्वर चाहता है या जैसा कि हरि इच्छा समझी जाती है। अगर तुमने सच्चे दिल से परमात्मा से छमा माग ली और अब तुम्हारी नीयत साफ है तो तुम्हें किसी तरह का दुख नहीं मिल सकता अगर कुछ मिलता है तो इसका कारण तुम्हारे चित का विकार है। तुम्हारे चित्त में अभी तक शान्ति नहीं हुई और तुम एकाग्र होकर उचित कार्यों की तरफ ध्यान नहीं देते इसलिए तुम्हें सुख प्राप्त नहीं होता। अब हमारा कहना इतना ही है तुम शान्ति के स्वरूप बनो और ज्यादे खोज-धीन के फेर में न पडो। यदि तुम इस बात को मानोगे तो नि सन्देह अच्छे रहोगे और तुम्हें किसी तरह का कष्ट न होगा। देवकीनन्दन यात्री समग्र