पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/८९८

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Get मै नहीं कह सकता कि बेहोश होने बाद मेरे साथ कैसा सलूक किया गया, हा जब मै होश में आया और मेरी आखें खुली तो मैने एक सुन्दर सजे हुए कमरे में अपने को हथकडी बेडी से मजबूर पाया। उस कमरे में रोशनी बखूबी हो रही थी और मेरे सामने साफ फर्श के ऊपर कई औरतें बैठी हुई थीं जिनमें मेरी औरत ऊची गद्दी पर बैठी हुई उन समो की सर्दार मालूम पड़ती थी। ॥ बीसवा भाग समाप्त। चन्द्रकान्ता सन्तति इक्कीसवॉ भाग पहिला बयान भूतनाथ अपना हाल कहते-कहते कुछ देर के लिए रुक गया और इसके बाद एक लम्बी सॉस लेकर पुन यों कहने लगा - भूत में अपने को कैदियों की तरह और अपने सामने,अपनी ही स्त्री को सरदारी के दग पर बैठे हुए देख कर एक दर्फ घबडा गया और सोचने लगा कि यह क्या मामला है ? मेरी स्त्री मुझे सामन ऐसी अवस्था में देखें और सिवाय मुस्कुराने के कुछ न बोले ! अगर वह चाहती तो मुझे अपने पास गद्दी पर बैठा लेती क्योंकि इस कमरे में जितने दिखाई दे रहे हैं उन सभों की वह सर्दार मालूम पडती है इत्यादि बातों को सोचते-सोचतेमुझे क्रोध चढ आया और मैंने लाल आँखो से उसकी तरफ देख कर कहा, ' क्या तू मेरी स्त्री वही रामदेई है जिसके लिए मैंने तरह-तरह के कष्ट उठाये और जो इस समय मुझे कैदियों की अवस्था में अपने सामने देख रही है ? इसके जवाब में मेरी स्त्री ने कहा 'हो मै वहीं रामदेई हूँ जिसके लड़के को तुम किसी जमाने में अपना होनहार लडका समझ कर चाहते और प्यार करते थे-मगर आज उसे दुश्मनी की निगाह से देख रहे हो मैं वही रामदेई हूँ जो तुम्हारे असली भेदों को न जानकर और तुम्हें नेक ईमानदार तथा सच्चा ऐयार समझ कर तुम्हारे फदे में फंस गई थी मगर आज तुम्हारे असली भेदों का पता लग जाने के कारण डरती हुई तुमसे अलग हुआ चाहती हूँ, मै वही रामदेई हूँ जिसे तुमने नकाबपोशों के मकान में देखा था, और मैं वहीं रामदेई हूँ जिसने उस दिन तुम्हें जगल में धोखा देकर बैरग वापस होने पर मजबूर किया था, मगर मै वह रामदेई नहीं हूँ जिसे तुम लामाघाटी में छोड़ आए हो। मुझे उस औरत की बातों ने ताज्जुब में डाल दिया और में हैरानी के साथ उसका मुंह देखने लगा। अनूठी बाततो यह थी कि वह अपनी बातों में शुरू से तो रामदेई अथवा मेरी स्त्री बनती चली आई मगर आखीर में बोल बैठी कि मगर मैं वह रामदेई नहीं हूँ जिसे तुम लामाघाटी में छोड आए हो' "आखिर बहुत सोच-विचारकर मैंने पुन उससे कहा, "अगरतू वह रामदेई नहीं है जिसे में लामाघाटी में छोड़ आया था तो तू मेरी स्त्री भी नहीं है।" स्त्री-तो यह कौन कहता है कि मैं तुम्हारी स्त्री हूँ। मै-अभी इसके पहिले तूने क्या कहा था ? स्त्री-( हसकर ) मालूम होता है कि तुम अपने होश में नहीं हो। इतना सुनते ही मुझे क्रोध चढ़ आया और मैं अपनी हथकडी बेड़ी तोडने का उद्योग करने लगा। यह हाल देखकर उस औरत को भी क्रोध आ गया और उसने अपनी एक सखीया लौडी की तरफ देखकर कुछ इशारा किया। वह लोडी इशारा पाते ही उठी और उसी जगह आले पर से एक बोतल उठा लाई जिसमें किसी प्रकार का अर्क था। उस अर्क से चुल्लू भर उसने दो-तीन छीटे मेरे मुँह पर दिये जिसके सयब से मै बेहोश हो गया और मुझे तनोबदन की सुध न रहीं। मैं यह नहीं बता सकता कि इसके बाद कै घण्टे तक मैं उसके कब्जे में रहा परन्तु जब होश में आया तो मैंने अपने को जगल में एक पेड़ के नीचे पाया। घण्टों तक ताज्जुब के साथ चारो तरफ देखता रहा, इसके बाद एक चश्मे के किनारे जाकर हाथ-मुँह धोने के बाद इस तरफ रवाना हुआ ! बस यही सबब था कि मुझे हाजिर होने में देर हो गई। भूतनाथ की बातें सुन कर सभों को ताज्जुब हुआ मगर वे दोनों नकाबपोश एकदम खिल-खिला कर हँस पड़े और उनमें से एक ने भूतनाथ की तरफ देख कर कहा- देवकीनन्दन खत्री समग्र