पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९०४

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और स्त्री पर चाहे केसी आफत क्यों न आये और मुझे भी चाहे कितना ही कष्ट क्यों न भोगना पडे भगर आज से दारागा का नाम भी न लूँगा ओर न अपनी स्त्री के विषय मे ही किसी से कुछ जिक्र करूँगा. जो कुछ तुम्हें करना हो करोऔर उस कम्बख्त दारोगा से भले ही कह दो कि इन बातों की खबर इन्द्रदेव को नहीं दी गई। मे भी अपने का ऐसा ही बनाऊँगा कि दारोगा को किसी तरह का खुटका न होगा और वह मुझे निरा उल्लू ही समझता रहेगा।" इन्द्रदेव की यह बात मेरे कलेजे में तीर की तरह लगी और मैं यह कहकर उठ खड़ा हुआ कि दोस्त, मुझे माफ करो, वेशक मुझसे वजी मूल हुई। अब मैदारोगा को कभी न छोडूंगा और जो कुछ उससे लिया है उसे वापस कर दूंगा' । मगर इतना कहते ही इन्द्रदेव ने मेरी कलाई पकड ली और जोर के साथ मुझे बैठा कर कहा, 'भूतनाथ, मैंने यह बात तुमसे ताने के ढग पर नहीं कही थी कि सुनने के साथ ही तुम उठ खड़े हुए। नहीं-नहीं ऐसा कभी न होने पायेगा, हमने और तुमने जो कुछ फिया सा किया और जो कहा सो कहा अव उसके विपरीत हम दोनों में से कोई भी न जा सकेगा। सुरेन्द्र-शावाश ॥ इतना कहकर सुरेन्द्रसिह ने मुहब्बत की निगाह से इन्द्रदेव की तरफ देखा और भूतनाथन फिर इस तरह कहना शुरू किया - 'भूत-मेन बहुत कुछ कहा मगर इन्ददेव ने एक न माना और बहुत बडी कसम दकर मेरा मुह बन्द कर दिया मगर इस बात का नतीजा यह निकला कि उसी दिन से हम दोनों दोस्त दुनिया से उदासीन हो गये भेरी उदासीनता मे ता कुछ कसर रह गई मगर इन्द्रदेव की उदासीनता में किसी तरह की कसर न रही। यही सवय था कि इन्द्रदय के हाथ से दारोगा बच गया और दारोगा इन्द्रदेव की तरफ से ( मेरे कहे मुताविक ) वैफिक्र रहा। सुरेन्द्र-बेशक इन्द्रदेव ने यह बडे हौसले और सन का काम किया। गोपाल-दोस्ती का हक अदा करना इसे कहते हैं, जितने एहसान भूतनाथ ने इज पर किये थे सभों का बदला एक ही बात से चुका दिया । भूत-(गोपालसिह की तरफ देख के) कुअर इन्दजीतसिह और आनन्दसिह से इन्दिरा ने अपना हाल किस तरह पर बयान किया था सो मुझे मालूम न हुआ। अगर यह मालूम हो जाता तो अच्छा होता कि इन्द्रिा ने जो कुछ चयान किया था वह ठीक है अथवा उसने जो कुछ सुना था वह सच था ? गोपाल-जहाँ तक मेरा खयाल है मैं कह सकता हूँ कि इन्दिरा ने अपने विषय में कोई बात ज्यादे नहीं कही बल्कि ताज्जुब नहीं कि वह कई बातें मालूम न होने के कारण छोड़ गई हो। मैने उसका पूरा पूरा किस्सा महाराज को लिख भेजा था। (जीतसिह की तरफ देख कर ) अगर मेरी वह चीठी यहाँ मौजूद हो तो भूतनाथ को दे दीजिये उसमें से इन्दिरा का किस्सा पढकर ये अपना शक मिटा लें! हॉ वह चीठी मौजूद है इतना कह कर जीतसिह उठे और आलमारी से वह कितावनुमा चीठी निकाल कर और इन्दिरा का किस्सा यता कर भूतनाथ को दे दी। भूतनाथ उसे तेजी के साथ पढ गया और अन्त में बोला 'हॉ ठीक है. करीब करीब सभी बातें उसे मालूम हो गई थी और आज मुझे भी एक नई मालूम हुई अर्थात आखिरी मर्तने जब मैं इन्दिरा को दारोगा के कब्जे से निकाल कर ले गया और अपने एक अडडे पर हिफाजत के साथ रख गया था तो पहाँ से एकाएक उसका गायव हो जाना मुझे बड़ा ही दुखदाई हुआ। मै ताज्जुब करता था कि इन्दिरा वहा से क्योंकर चली गई। जब मैंने अपने आदमियों से पूछा तो उन्होंने कहा कि हम लोगों को कुछ भी नहीं मालूम कि वह कंव निकल कर भाग गई क्योंकि हम लोग कैदियों की तरह उस पर निगाह नहीं रखते थे बल्कि घर का आदमी समझकर कुछ बेफिक्र थे। परन्तु मुझे अपने आदमियों की बात पसन्दै न आई और मैंने उन लोगों को सख्त सजा दी। आज मालूम हुआ कि वह कॉटा मायाप्रसाद का बोया हुआ था। मैं उसे अपना दोस्त समझता था मगर अफसोस, उसने मेरे साथ बडी दगा की । गोपाल-इन्दिरा की जुबानी यह किस्सा सुन कर मुझे भी निश्चय हो गया कि मायाप्रसाद दारोगा का हिती है अस्तु मैने उसे तिलिस्म में कैद कर दिया है। अच्छा यह तो बताओ कि उस समय जब तुम आखिरी मर्तबे इन्दिरा को दारोगा के यहाँ से निकालकर अपने अडडे पर रख आये और लौट कर पुन जमानिया गये तो फिर क्या हुआ, दारोगा से कैसी निपटी और सर्दू का पता क्यों न लगा सके ? भूत-इन्दिरा को उस ठिकाने रख कर जब मैं लौटा तो पुन जमानिया गया परन्तु अपनी हिफाजत के लिए पाँच आदमियों को अपने साथ लेता गया और उन्हें ( अपने आदमियों को ) कब क्या करना चाहिए इस बात को भी अच्छी तरह समझा दिया क्योंकि वे पॉचों आदमी मेरे शागिर्द थे और कुछ ऐयारी भी जानते थे। मुझे सर्दू के लिए दारोगा से फिर मुलाकात करने की जरूरत थी मगर उसके घर में जाकर मुलाकात करने का इरादा न था क्योंकि मैं खूब समझता था कि यह दूध का जला छाछ फूंक के पीता होगा और मेरे लिये अपने घर में कुछ न कुछ बन्दोबस्त जरूर कर रक्खा होगा । अगर अबकी दिलेरी के साथ उसके घर में आऊँगा तो बेशक फंस जाऊँगा, इसलिये बाहर ही उससे मुलाकात देवकीनन्दन खत्री समग्र