पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९०८

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अजायबघर का भेद मेरे पिता और उस दारोगा के सिवाय कोई नहीं जानता था। मेरे पिता ही ने दारोगा को वहा का मालिक बना दिया था. जब भूतनाथ ने उसकी ताली मुझे ला दी तब मुझे भी वहा का पूरा-पूरा हाल मालूम हुआ। जीत-( भूतनाथ से ) खैर यह बताओ कि मनोरमा और नागर से तुमसे क्या सम्बन्ध था? यह सवाल सुनकर भूतनाथ सन्न हा गया और सिर झुकाकर कुछ सोचने लगा। उस समय गापालसिह ने उसकी मदद की और जीतसिह की तरफ देखकर कहा इस सवाल को छोड़ दीजिए क्योंकि वह जमाना भूतनाथ का बहुत ही बुरा तथा ऐयाशी का था। इसके अतिरिक्त जिस तरह राजा बीरेन्द्रसिहजी ने रोहतासगढ क तहखान में भूतनाथ का कसूर माफ किया था उसी तरह कमलिनी न भी इसका वह कसूर कसम खाकर माफ कर दिया और साथ ही इसके उन ऐबों को छिपाने का बन्दोबस्त कर दिया है। इसके जवाब में जीतसिह ने कहा, "खैर जाने दो, देखा जायगा।' गोपाल-जब से भूतनाथ ने कमलिनी का साथ किया है तब से इसने (भूतनाथ ने ) जोजो काम किये है उस पर ध्यान देने से आश्चर्य होता है। वास्तव में इसने वह काम किये है जिनकी ऐस समय में सख्त जरूरत थी. मगर इसका लडका नानक तो बिलकुल ही वादा और खुदगर्ज निकला। न तो कमलिनी के साथ मिलकर उसने काई तारीफ का काम किया और न अपने बाप को किसी तरह की मदद पहुचाई। भूत- बेशक ऐसा ही है, मैने कई दफा उसे समझाया मगर सुरेन्द--(गोपाल से) अच्छा अजायबघर में क्या बात है जिससे ऐसा अनूठा नाम उसका रक्खा गया। अब ता तुम्हें उसका पूरा-पूर हाल मालूम हो ही गया होगा। गोपाल-जी हा। एक किताब है जिसे 'ताली के नाम से सबोधन करते है उसके पढने से वहा का कुल हाल मालूम होता है। वह बड़े हिफाजत और तमाशे की जगह थी और कुछ है भी क्योंकि अब उसका काफी हिस्सा मायारानी की बदौलत वर्वाद हो गया। जीत-उस किताव (ताली ) की बदौलत मायारानी को भी वहा का हाल मालूम हो गया होगा? गोपाल-कुछ-कुछ क्योंकि उस किताब की भाषा यह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी। इसके अतिरिक्त उस अजायबघर का जमानिया के तिलिस्म से भी सबध है इसलिए कुअर इन्द्रजीतसिहऔर आनन्दसिह को वहा का हाल मुझसे भी ज्यादे मालूम हुआ होगा। जीत-ठीक है (सुरेन्द्रसिह की तरफ देख के) आज यद्यपि बहुत सी नई बातें मालूम हुई है परन्तु फिर भी जब तक दोनों कुमार यहा न आ जायगे तब तक बहुत सी बातों का पता न लगेगा। सुरेन्द्र सो तो हई है परन्तु इस समय हम केवल भूतनाथ के मामले को तय किया चाहते हैं। जहा तक मालूम हुआ हे भूतनाथ ने हम लोगों के साथ सिवाय भलाई के बुराई कुछ भी नहीं की। अगर उसन बुराई की ता इन्द्रदेव के साय या कुछ गोपालसिह क साथ सो भी उस जमाने में जब इनसे और हमसे कुछ सयच नहीं था। आज ईश्वर की कृपा से ये लाग हमारे साथ है बल्कि हमार अग है इससे कहा भी जा सकता है कि मूतनाथ हमारा ही कसूरवार है मगर फिर भी हम इसके कसूरों को माफ का अख्तियार इन्हीं दोनों अर्थात् गोपालसिह और इन्द्रदेव को देत है। ये दोनों अगर भूतनाथ का कसूर माफ कर दें तो हम इस बात को खुशी से मजूर कर लेंगे। हा. लोग यह कह सकते हैं कि इस माफी देने में बलभद्रसिह को भी शरीक करना चाहिए था। मगर हम इस बात को जरूरी नहीं समझते क्योंकि इस समय बलभद्रसिंह को कैद से छुड़ाकर भूतनाथ ने उन पर बल्कि सच तो ये है कि हम लोगों पर भी बहुत बडा अहसान किया है इसलिए अगर बलभद्रसिह को इससे कुछ रज हो तो भी माफी दने में वे कुछ उज नहीं कर सकते। गोपाल-इसी तरह हम दोनों को भी माफीदने में किसी तरह का उज न होना चाहिए। इस समय भूतनाथ ने मेरी बहुत बडी मदद की है और मेरे साथ मिलकर ऐसे अनूठे काम किये है कि जिनकी तारीफ सहज में नहीं हो सकती। इस हमदर्दी और मदद के सामने उन कसूरों की कुछ भी हकीकत नहीं अस्तु में इससे बहुत प्रसन्न हू और सच्चे दिल से इसे माफी देता है। इन्द्रदेव-माफी देनी ही चाहिए और जब आप माफी द चुके तो मै भी दे चुका. ईश्वर भूतनाथ पर कृपा करे जिससे अपनी नेकनामी बढाने का शौक इसके दिल में दिन-दिन तरक्की करता रहे। सच बात तो यह है कि कमलिनी की बदौलत इस समय हम लोगों को यह शुभ दिन देखने में आया और जब कमलिनी ने इससे प्रसन्न हो इसके कसूर माफ कर दिए तो हमलोगों को बाल बराबर भी उज नहीं हो सकता। जीत-बेशक बेशक ! सुरेन्द--इसमें कुछ भी शक नहीं । (भूतनाथ की तरफ देख के ) अच्छा भूतनाथ,तुम्हारा सब कसूर माफ किया जाता है और इन दिनों हमलोगों के साथ तुमने जो जो नेकिया की है उनके बदले में हम तुम पर भरोसा करके तुम्हें अपना देवकीनन्दन खत्री समग्र ९००