पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१

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पैदा हो मगर सर्दार ने उनकी बात सुन सिर नीचा करके कुछ सोचा ओर कहा ठीक है परन्तु आशा है गुरु महाराज उस अपराध को क्षमा करेंगे। रनबीर-(मुस्कुरा कर) सत्तगुरुदेवदत्त से पूछ कर तुम्हारा अपराध क्षमा किया जायगा परन्तु तुम लोगों को कुछ प्रायश्चित करना होगा। सर्दार-आज्ञानुसार करने के लिए मै तैयार हूँ। रनवीर-अच्छा इस समय तुम लाग जाओ अपना अपना काम करो कल सन्ध्या का दखा जायगा। सर्दार-(हाथ जोडकर) गुरुमहाराज भी मकान के अन्दर पधारें जिसमें हमलोग सेवा करके जन्म कृतार्थ करे। रनवीर-आज हम (हाथ का इशारा करके) उस पेड़ के नीचे दिन भर और मकान के अन्दर रातभर उपासना करेंगे इस बीच में विना बुलाये मेरे पास कोई न आवे कल देखा जायेगा । अहा तू ही तो है सत्तगुरु की पूजा के लिए ग्यारह फल भेजो वस जाओ। अहा। तू ही तो है ! अहा। तू ही तो है । इस मकान के चारों तरफ की जमीन बहुत । साफ सुथरी और जगह जगह कुदरती फूल बूटों से बहुत ही भला मालूम देता था चारो तरफ ऊचे ऊचे पहाड थे जिनमें से पानी के कई झग्ने गिर रहे थे जो नीचे आकर एक हो गये थे और दक्षिण तरफ डालबी जमीन होने के कारण बह कर एक पहाड़ी के नीचे चले गये थे। रनबीसिह एक झरने के किनारे सुन्दर छाया देख कर बैठ गये और आँखें बन्द कर सोच विचार में दिन बिताने लगे। थोड़ी देर बाद एक आदमी ग्यारह फल लेकर आया और उनके पास रख कर चला गया। रनवीरसिह ने दिन भर उसी पेड के नीचे बिताया और वही ग्यारह फल खाकर आत्मा को सन्तोष कराया सन्ध्या होने पर मकान के अन्दर गए अगवानी क लिय आदमियों के साथ सर्दार को दर्वाजे पर मौजूद पाया झूमते और उन्हीं मामूली शब्दों का उच्चारण करते हुए मकान के अन्दर गये और अपने स्थान पर मृगछाला के ऊपर जा बिराजे। नैवेद्य की रीति पर खाने पीने की सामग्री आगे रक्खी गई मगर रनबीरसिह ने इन्कार करके कहा मैं फल के सिवाय और कुछ भी नहीं खाता इसके अतिरिक्त मैं तो तुमसे कही चुका है कि आज का पूरा दिन और रात उपासना में बिताऊगा अस्तु इसे ले जाओ कल देखा जायगा। अब मैं दर्वाजा बन्द करके ध्यान किया चाहता हू मगर यह मकान सन्नाटे का नहीं है उत्तर तरफ कोने में जो कोठरी है वह मुझे इस काम के लिये पसन्द हे कल घूम फिर के देखने के समय उसे भी मैने देखा इसक जवाब में सर्दार ने कहा जैसी इच्छा गुरु महाराज की चलिये। रनवीरसिह ने देखा कि आखिरी बात कहते समय सर्दार के चेहरे की रगत कुछ बदल गई परन्तु दिलावर रनवीर ने इसका कुछ खयाल न किया और उस स्थान पर चलने के लिये तैयार हो गये। सर्दार ने भी रनबीर की इच्छानुसार सब सामान उसी कोठरी में ठीक कर दिया रनवीर ने भीतर से दर्वाजा बन्द करके मृगछाला पर आराम किया कोठरी में गर्मी वहुत थी जिसे पखे से निवारण करने लगे। यह कोठरी यद्यपि बहुत लम्बी चौडी तो न थी तथापि इसमें चार पाँच चारपाई बिछने लायक जगह थी। एक तरफ दीवार में छोटा सा दर्वाजा था जिसमें एक साधारण पुराना ताला लगा हुआ था। आधी रात जान के बाद रनवीरसिह के कान में एक आवाज आई उन्हें साफ सुनाई दिया कि मानों किसी ने दिल के दर्द से दुखी होकर कहा 'प्यारे रनवीर तू इस दुनियों में है भी या नहीं। यह आवाज भारी और कुछ बुझी हुई थी रनबीसिह को केवल इतना ही निश्चय नहीं हुआ कि यह आवाज किसी मर्द की है बल्कि उन्हें और भी कई बातों का निश्चय हो गया जिससे वे बेताब हो गए। इस समय यदि कोई उन्हें देखता तो ठीक वैसी ही अवस्था में पाता जैसी गोली लगने पर शेर की होती है और इसका अनुभव उन्हीं को हो सकता है जिन्होंने शेर का शिकार किया या अच्छी तरह देखा है। रनवीरसिह मृगछाला पर से उठ खडे हुए और सोचने लगे कि यह आवाज किधर से आई ? उनकी ऑखें सुर्ख हो गई और क्रोध के मारे बदन कॉपने लगा। उनका ध्यान उस छोटे से दर्वाजे पर गया जिसमें साधारण छोटा सा ताला लगा हुआ था। रनवीरसिह उसके पास गए, कमर से कटार निकाल कर धीरे से उस ताले का जोड खोल डाला और कुडे से ताला अलग करन बाद दर्वाजा खोल कर अन्दर की तरफ झॉका। भीतर अन्धकार था जिससे कुछ मालूम न पडा : जहाँ रनवीरसिह का आसन लगा हुआ था उसके पास ही एक दीवार के ऊपर चिराग जल रहा था रनबीरसिह ने वह चिराग उठा लिया और उस छोटी सी खिडकी के अन्दर चले गए। यहाँ उन्होंने अपने को एक लम्बी चौडी कोठरी में पाया। चारो तरफ दीवार में सैकडो खूटियॉ गडी हुई थीं और उनमें तरह तरह की पोशाकें लटक रही थीं जिनमें से कोई कोई पोशाक तो बहुत ही बेशकीमत थी मगर बहुत दिनों तक यों ही पड़े रहने के कारण बर्याद सी हो रही थीं कोई पोशाक सौदागरों की सी, कोई सिपाहियों की सी और किसी किसी खूटी पर जनाने कपडे भी लटक रहे थे। रनवीरसिह एक खूटी के पास गए था कसम कमारी १०९९