पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१०

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भूत-अभी थोडी ही देर हुई। मैं इस समय महाराज के पास से ही आ रहा है। इतना कहकर भूतनाथ ने आज रात का बिल्कुल हाल देवीसिह से बयान किया। इसके बाद भूतनाथ और देवीसिह में देर तक बातचीत होती रही और जब दिन अच्छी तरह निकल आया तब दोनों ऐयार वहा से उठे और स्नान सध्या की फिक्र में लगे। जरूरी कामों से निश्चिन्ती पा और स्नान-पूजा से निवृत्त होकर भूतनाथ अपने पुराने मालिक रणधीरसिह के पास चला गया। बेशक उसके दिल में इस बात का खुटका लगा हुआ था कि उसका पुराना मालिक उसे देखकर प्रसन्न न होगा बल्कि सामना होने पर भी कुछ देर तक उसके दिल में इस बात का गुमान बना रहा मगर जिस समय भूतनाथ ने अपना खुलासा हाल बयान किया उस समय रणधीरसिह को बहुत मेहरवान और प्रसन्न पाया। रणधीरसिह ने उसको खिलअत और इनाम भी दिया और बहुत देर तक उससे तरह तरह की बातें करते रहे। चौथा बयान यह बात तोतै पा चुकी थी कि सब कामों के पहिले कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह की शादी हो जानी चाहिए अस्तु इसी खयाल से जीतसिह शादी के इन्तजाम में जी जान से कोशिश कर रहे हैं और इस बात की खबर पाकर सभी प्रसन्न हो रहे हैं कि आज दोनों कुमार यहा आ जायेंगे और शीघ्र ही उनकी शादी भी हो जायेगी। महाराज की आज्ञानुसार जीतसिह मुलाकात करने के लिए रणधीरसिह के पास गये और हर तरह की जरूरी बातचीत करने के बाद इस बात का फैसला भी कर आय कि किशोरी के साथ ही साथ कामिनी का भी कन्यादान रणधीरसिह ही करेंगे। साथ ही इसके रणधीरसिहकी यह बात भी जीतसिह ने मजूर कर ली कि इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के आने के पहिले किशोरी और कामिनी उनके ( रणधीरसिह के ) खेमे में पहुचा दी जायगी। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् किशोरी और कामिनी बड़ी हिफाजत के साथ रणधीरसिह के खेमे में पहुचा दी गई और बहुत से फौजी सिपाहियों के साथ पन्नालाल, रामनारायण चुन्नीलाल और पण्डित बद्रीनाथ ऐयार खास उनकी हिफाजत के लिए छोड दिए गए ! आज कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के आने की उम्मीद में लोगखुशी-खुशी तरह-तरह के खर्च कर रहे हैं। आज ही के दिन आने के लिए दोनों कुमारों ने चीठी लिखी थी इस लिए आज उनके दादा-दादी बाप मा दोस्तों और मुहब्बतियों को उम्मीद हो रही है कि उनकी तरसती हुइआिखे टडी होंगी और जुदाई के सदमों से मुझाया हुआ दिल हरा होगा। अहलकार और खैरखाह लोग जरूरी कामों को भी छोडकर तिलिस्मी इमारत में इकट्ठे हो रहे है। इसी तरह हर एक अदना ओर आला दोनों कुमारों के आने की उम्मीद में खुश हो रहा है। गरीयों और मोहताजों की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं उन्हें इस बात का पूरा विश्वास हो रहा है कि अब उनका दारिद्रय दूर हो जायगा । दोपहर दिन ढलने के बाद दानों नकाबपोश भी आकर हाजिर हो गए है केवल वे ही नहीं बल्कि उनके साथ और भी कई नकाबपोश है जिनके बारे में लोग तरह-तरह के चर्चे कर रह है और साथ ही यह भी कह रहे है कि जिस समय ये नकाबपोश लाग अपने चहरों से नका हटावेंगे जस समय जरूर कोई न कोई अनूठी घटनादेखने-सुनने में आवगी। नकाबपोशों की जुबानी यह तो मालूम हो ही चुका था कि दोनों कुमार उसी पत्थर वाले तिलिस्मी चबूतरे के अन्दर से प्रकट होंगे जिस पर पत्थर का आदमी सोया हुआ है"इसलिए इस समय महाराज राजा साहब और सलाहकार लोग उसी दालान में इकट्ट हो रहे है और वह दालान भी सज-सजा कर लोगो के बैठने लायक बना दिया गया है। तीन पहर दिन बीत जान पर तिलिस्मी चबूतरे के अन्दर से कुछ विचित्र ही ढग के बाजे की आवाज आने लगी जो कि भारी मगर सुरीली थी और जिसके सबब से लोगों का ध्यान उसी तरफ खिचा। महाराज सुरेन्द्रसिह बीरेन्द्रसिह जीतसिह तेजसिह गोपालसिह तथा दोनों नकाबपोश उठकर उस चबूतरे के पास गये। ये लोग बडे गौर से उस चबूतरे की अवस्था पर ध्यान दिये रहे क्योंकि इस बात का पूरा गुमान था कि पहिले की तरह आज भी उस चबूतरे का अगला हिस्सा किवाड के पल्ले की तरह खुलकर जमीन के साथ लग जायगा। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात जिस तरह बलभद्रसिह के आने और जाने के वक्त उस चबूतरे का अगला हिस्सा खुल गया था उसी तरह इस समय भी वह किवाड के पल्ले की तरह धीरे-धीरे खुलकर जमीन के साथ लग गया और उसके अन्दर से कुअर इन्द्रजीतसिह तथा आनन्दसिह बाहर निकलकर महाराज सुरेन्द्रसिह के पैरों पर गिर पडे। उन्होंने बड़े प्रेम से उठा कर छाती से लगा लिया। इसके बाद दोनों कुमारों ने अपने पिता का चरण छूआ फिर जीतसिह और तेजसिह को प्रणाम करने के बाद राजा गोपालसिह से मिले। इसके बाद बारी-बारीनकाबपोशों ऐयारों दोस्तों से भी मुलाकात की। - देवकीनन्दन खत्री समग्र ९०२