पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९११

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दि वन्दोवस्त पहिले से हो चुका था और इशारा भी बधा हुआ था अतएव जिस समय कुमार महाराज के चरणों पर गिरे है उसी समय फाटक पर से बाजे की आवाज आने लगी जिससे बाहर वालों को भी मालूम हो गया कि कुअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह आ गये। इस सम्य की खुशी का हाल लिखना हमारी ताकत से बाहर है हाँ अन्दाज पाठकगण स्वयम् कर सकते है कि जय दोनों कुमार मिलने के लिए महल के अन्दर गए तो औरतों में खुशी का दरिया कितने जोश के साथ उमडा होगा। महल के अन्दर दोनों कुमारों का इन्तजार बनिस्बत बाहर के ज्यादा होगा यह सोचकर महाराज ने दोनों कुमारों को ज्यादे देर तक बाहर राकना मुनासिब न समझकर शीघ ही महल में जाने की आज्ञा दीऔरदोनों कुमार भी खुशी-खुशी महल क अन्दर जाकर सभों से मिले। उनकी मा और दादी की बढती हुई खुशी का ता आज अन्दाज करना बहुत ही कठिन है जिन्होंने लडकों की जुदाई तथा रज और नाउम्मीदी के साथ ही साथ तरह-तरह की खबरों से पहुची हुई चोटों को अपने नाजुक काजों पर सन्हाल कर और देवताओं की मिन्नतें मान कर आज का दिन देखने के लिए अपनी नन्ही सी जान को बचा रक्खा था। अगर उन्हें समय और नीति पर विशष ध्यान न रहता तो आज घटो तक अपने बच्चों को कलेजे से अलग करके बातचीत करने और महल के बाहर जाने का मौका न देती। दानों कुमार खुशी-खुशी सभों से मिले। एक-एक करके सभों से कुशल मगल पूछा कमलिनी और लाडिली से भी घार आखं हुई मगर किशोरी और कामिनी की सूरत दिखाई न पडी जिनके बारे में सुन चुक थे कि महल के अन्दर पहुंच चुकी है। इस सबब से उनके दिल का जो कुछ तकलीफ थी उसका अन्दाज औरों को तो नहीं मगर कुछ-कुछ कमलिनी और लाडिली को मिल गया और उन्होंने बात ही बात में इस भेद को खुलवा कर कुमारों की तसल्ली करवा दी। थाडी देर तक दोनों भाई महल के अन्दर रहे और इस बीच में बाहर से कई दफे तलबी का सन्देश पहुचा अस्तु पुन मिलने का वादा करके वहा से उठ करके बाहर की तरफ रवाना हुए और उस आलीशान कमरे में पहुचे जिसमें कई खास-खासआदमियां और आपुस वालों के साथ महाराज सुरेन्द्रसिह और बीरेन्द्रसिह उनका इन्तजार कर रहे थे। इस समय इस कमरे में यद्यपि राजा गोपालसिह नकाबपाश लोग जीतसिह तेजसिह, भूतनाथ और ऐयार लोग भी मौजूद थे मगर कोई आदमी ऐसा न था जिसके सामने भेद की बातें करने में किसी तरह का सकोच हो। दोनों कुमार इशारा पाकर अपने दादा साहब के बगल में बैठ गए और धीरे-धीरे बात-चीत होने लगी। सुरेन्द्र-(दोनों कुमारों को तरफ देख क) भैरोसिह ओर तारासिह तुम्हारे पास गये हुए थे, उन दोनों को कहा छोडा ? इन्द्रजीत-( मुस्कुराते हुए ) जी वे दोनों तो हम लोगों के आने के पहिले ही से हजूर में हाजिर है । सुरेन्द-(ताज्जुब से चारो तरफ देख के) कहा? महाराज के साथ ही साथ और लोगों ने भी ताज्जुव के साथ एक दूसरे पर निगाह डाली। इन्दजीत--(दोनों सार नकाबपोशों की तरफ बता कर जिनके साथ और भी कई नकाबपोश थे ) रामसिह और लक्ष्मणसिह का काम आज वे ही दोनों पूरा कर रहे है। इतना सुनते ही दोनों नकाबपोशों में अपने अपने चेहरे पर नकाब हटा दी और उनके बदले में भैरोसिह तथा तारासिह दिखाई देने लगे। इस जादू के से मामले को देख कर सभी को विचित्र अवस्था हो गई और सब साज्जुब में आकर एक दूसरे का मुंह देखने लगा भूतनाथ और देवीसिह की तो और ही अवस्था हो रही थी। बड़े जोरों के साथ उनका कलेजा उछलने लगा और वे कुल बातें उन्हें याद आ गई जो नकाबपोशों के मकान में जाकर देखी सुनी थी और वे दोनों ही ताज्जुध के साथ गौर करने लगे। सुरेन्द-(दोनों कुमारों से ) जब भैरो और तारासिह तुम्हारे पास नहीं गये और यहा मौजूद थे तब भी तो रामसिह और लक्ष्मणसिह कई दफे आये थे उस समय इस विचित्र पर्दे ( नकाब) के अन्दर कौन छिपा हुआ था? इन्द्रजीत-(और सब नकाबपोशों की तरफ बताकर) कई दफे इन लोगों में से बारी-बारीसे समयानुसार और कई दफे स्वय हम दोनों भाई इसी पोशाक और नकाब को पहिर कर हाजिर हुए थे। कुँअर इन्द्रजीतसिह की इस बात ने इन लोगों को और भी ताज्जुब में डाल दिया और सब कोई हैरानी के साथ उनकी तरफ देखने लगे। भूतनाथ और देवीसिह की तो बात ही निराली थी इनको तो विश्वास हो गया कि नकाबोशों की टोह में जिस मकान के अन्दरहमलोग गए थे उसके मालिक ये ही दोनों है इन्हीं दोनों की मर्जी से हम लोग गिरफ्तार हुए थे और इन्हीं दोनों के सामने पेश किए गए थे। देवीसिह यद्यपि अपने दिल को बार-बार समझा घुझाकर सम्हालते थे मगर इस बात का ख्याल हो ही जाता था कि अपने ही लोगों ने मेरी बेइज्जती की और मेरे ही लड़के ने इस काम में शरीक होकर मेरे साथ दगा की। मगर देखना चाहिए इन सब बातों का भेद सबब और नतीजा क्या खुलता है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २१