पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१३

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दि कज म आ जायगा मगर एसा नहीं हुआ अर्थात कुमार के आने के पहिल ही वह अपने नाना के डेरे में भेज दी गई और 'उनका अरमान भरा दिल उसी तरह तडपता रह गया। यद्यपि उन्हें इस बत का भी विश्वास था कि अब उनकी शादी किशारी के साथ बहुत जल्दी होन वाली है मगर फिर भी उनका मनचला दिल जिसे उनके कब्ज के बाहर भय मुद्दत हो चुकी थी इन चापलूसियों को कर मानता था ! इसी तरह कमलिनी से भी मीठी-मीठीबातें करने के लिए व कम बताब न थ,मगर बडों का लहाज उन्हें इस बात की इजाजत नहीं देता था कि उससे एकान्त में मुलाकात करें यद्यपि ऐसा करते तो कोई हर्ज की बात न थी मगर इस लिए कि उसके साथ भी शादी होने की उम्मीद थी शर्म और लेहाज के फेर में पड़े हुए थे। परन्तु कमलिनी को इस बात का साच-विचार कुछ भी न था। हम इसका सबब भी बयान नहीं कर सकते हॉ इतना कहेगे कि जिस कमरे में कुअर इन्द्रजीतसिह का डेरा था उसी के पीछे वाले कमरे में कमलिनी का डेरा था और उस कमरे स कुअर इन्द्रजीतसिह क कमरे में आने जाने के लिए एक छोटा सा दरवाजा भी था जा इस समय भीतर की तरफ स अर्थात् कमलिनी की तरफ स बन्द था और कुमार को इस बात की कुछ भी खवर न थी। रात पहर भर से ज्याद जा चुकी थी। कुअर इन्द्रजीतसिह अपने पलग पर लेटे हुए किशोरी और कमलिनी के विषय में तरह-तरह की बातें सोच रह थे। उनके पास कोई दूसरा आदमीन था और एक तरह पर सन्नाटा छाया हुआ था एकाएक पीछ वाले कमरे का (जिसमें कमलिनी का डेरा था) दरवाजा खुला और अन्दर से एक लौडी आती हुई दिखाई पडी। कुमार ने चौंककर उसकी तरफ देखा और उसने हाथजोड कर अर्ज किया 'कमलिनोजी आपसे मिला चाहती हैं आज्ञा हो ता स्वय यहाँ आर्वे या आप ही वहा तक चलें। कुमार-द कहा है? लौडी-(पिछल कमरे की तरफ बताकर ) इसी कमरे में तो उनका डेरा है। कुमार-(ताज्जुब से) इसी कमरे में । मुझे इस बात की कुछ भी खवर न थीं। अच्छा मैं स्वय चलता हूँ, तू इस कमरे का दरवाजा चन्द कर दे आज्ञा पाते ही लौडी ने कुमार के कमर का दरवाजा बन्द कर दिया जिसमें बाहर से कोई यकायक आ न जाय। इसके बाद इशारा पाकर लौडी कमलिनी के कमरे की तरफ रवाना हुई और कुमार उसके पीछे-पीछे चले। चौखट के अन्दर पैर रखते ही कुमार की निगाह कमलिनी पर पड़ी और वे भौचक्के से होकर उसकी सूरत देखने लगे। इस समय कमलिनी की सुन्दरता बनिस्वत पहिले के बहुत ही बढी चढी देखने में आई। पहिले जिन दिनों कुमार ने कमलिनी की सूरत देखी थी उन दिनों वह बिल्कुल उदासीन और मामूली ढग पर रहा करती थी। मायारानी के झगडे की बदौलत उसकी जान जोखिम में पड़ी हुई थी और इस कारण से उसके दिमाग को एक पल के लिए भी छुट्टी नहीं मिलती थी। इन्हीं सब कारणों से उसके शरीर और चेहरे की रौनक में भी बहुत बड़ा फर्क पड़ गया था तिस पर भी वह कुमार की सच्ची निगाह में एक ही दिखाई देती थी। फिर आज उसकी खुशी और खूबसूरती का क्या कहना है जब कि ईश्वर की कृपा स वह अपने तमाम दुश्मनों पर फतह पा चुकी है तरदुदों के बोझ से हलकी हो चुकी है और मनमानी उम्मीदों के साथ अपने को बनाने सवारने का भी मुनासिब मौका उसेमिल गया है यही सबब है कि इस समय वह रानियों की सी पोशाक और सजावट में दिखाई देती है। कमलिनी की इस समय की खूबसूरती ने कुमार पर बहुत बडा असर किया और बनिस्बत पहिले के इस समय बहुत ज्याद कुमार के दिल पर अपना अधिकार जमा लिया। कुमार को देखते ही कमलिनी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कुमार ने आगे बढ कर बड़े प्रेम से उसका हाथ पकडकर पूछा 'कहो अच्छी तो हो ? अब भी अच्छी न होऊगी | कहकर मुस्कुराती हुई कमलिनी ने कुमार को ल जाकर एकाऊची गद्दी पर बैठाया और आप भी उनके पास बैठकर यों बातचीत करने लगी। कम-कहिए तिलिस्म के अदर आपको किसी तरह की तकलीफ तो नहीं हुई ! इन्द-ईश्वर की कृपा से हमलोग कुशलपूर्वक यहा तक चले आए और अब तुम्हें धन्यवाद देते है क्योंकि यह सब बातें तुम्हारी ही बदौलत नसीब हुई है। अगर तुम मदद न करती तो न मालूम हम लोगों की क्या दशा हुइ होती ' हमारे साथ तुमने जो कुछ उपकार किया है उसका बदला चुकाना मेरी सामर्थ्य के बाहर है सिवाय इसके मै क्या कह सकता हू कि ( अपनी छाती पर हाथ रख के) यह जान और शरीर तुम्हारा है। कम-(मुस्कुराकर ) अव कृपा कर इन सब बातों को तो रहन दीजिए क्योंकि इस समय मैंने इस लिए आपको तकलीफ नहीं दी है कि अपनी यडाई सुनू या आप पर अपना अधिकार जमाऊँ। इन्द्र अधिकार तो तुमने उसी दिन मुझ पर जमा लिया जिस दिन एयार के हाथ से मेरी जान बचाई और मुझसे चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २१ ९०५