पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१४

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cut तलवार की लडाई लड़कर यह दिखा दिया कि मैं तुमसे ताकत में कम नहीं हूँ। कम-(हॅसकर ) क्या खूब ! मैं और आपका मुकाबला करूँ ।। आपने मुझ भी क्या कोई पहलवान समझ लिया है? इन्द्र-आखिर बात क्या थी जो उस दिन मैं तुमसे हार गया था । कम-आपको उस बेहोशी की दवा ने कमजोर और खराब कर दिया था जो एक अनाडी ऐयार की बनाई हुई थी। उस समय केवल आपको चैतन्य करने के लिए मैं लड़ पड़ी थी नहीं तो कहाँ मैं और कहाँ आप ॥ इन्द-खैर ऐसा ही होगा मगर इसमें तो काई शक नहीं कि तुमने मेरी जान बचाई केवल उसी दफे नहीं बल्कि उसके बाद भी कई दफे। कम-मया भया अब इन सब बातों को जाने दीजिए मैं ऐसी बातें नहीं सुना चाहती। हो यह बतलाइए कि तिलिस्म के अन्दर आपने क्या-क्या देखा और क्या-क्या किया? इन्द्र-मैं सब हाल तुमसे कहूंगा बल्कि उन नकाबपोशों की कैफियत भी तुमसे बयान करूँगा जो मुझे तिलिस्म के अन्दर मिले हैं और जिनका हाल अभी तक मैंने किसी से बयान नहीं किया मगर तुम यह सब हाल अपनी जुबान से किसी से न कहना। कम-बहुत खूब। इसके बाद कुँअर इन्द्रजीतसिह ने अपना कुल हाल कमलिनी से बयान किया और कमलिनी ने भी अपना पिछला किस्सा और उसी के साथ-साथ भूतनाथ नानक तथा तारा वगैरह का हाल बयान किया जो कुमार को मालूम न था इसके बाद पुन उन दोनों में बातचीत होने लगी इन्द्र-आज तुम्हारी जुबानी बहुत सी ऐसी बातें मालूम हुई है जिनके विषय में मैं कुछ भी नहीं जानता था । कम-इसी तरह आपकी जुबानी उन नकाबपोशों का हाल सुनकर मेरी अजीब हालत हो रही है क्या करूँ आपने मना कर दिया है कि किसी से इस बात का जिक्र न करना नहीं तो अपने सुयोग्य पति से उनके विषय में इन्द-(चोककर ) हैं । क्या तुम्हारी शादी हो गई ? कम-(कुमार के चेहरे का रग उडा हुआ देख मुस्कराकर ) मैं अपने उस तालाब वाले मकान में अर्ज कर चुकी थी कि मेरी शादी बहुत जल्द होन वाली है। इन्द्र-(लम्बी सॉस लेकर ) हो मुझे याद है मगर यह उम्मीद न थी कि वह इतनी जल्दी हो जायगी । कम-तो क्या आप मुझे हमेशा कुँआरी ही देखना पसन्द करते थे? इन्द-नहीं ऐसा तो नहीं है मगर कम-मगर क्या ? कहिए-कहिए रुके क्यों ? इन्द्र-यही कि मुझसे पूछ ता लिया होता । कम-क्या खूब ! आपन क्या मुझसे पूछ कर इन्द्रानी के साथ शादी की थी जो मैं आपसे पूछ लेती .. इतना कह कर कमलिनी हॅस पडी और कुमार ने शर्मा कर सिर झुका लिया मगर इस समय कुमार के चेहरे से मालूम होता था कि उन्हें हद दर्जे का रज है और कलेजे में बेहिसाब तकलीफ हो रही है। कुमार-( कमलिनी के पास से कुछ खिसककर ) मुझे विश्वास था कि जन्म भर तुमसे हॅसने बोलने का मौका मिलेगा। कम-मेरे दिल में भी यही बात बैठी हुई थी और यही तै कर मैने शादी की है कि आपसे कभी अलग होने की नौबत न आवे । मगर आप हट क्यों गये? आइये आइये जिस जगह बैठे थे बैदिए। कुमार-नह-नहीं पराई स्त्री के साथ एकान्त में बैठना ही धर्म के विरुद्ध है न कि साथ सटकर मगर आश्चर्य है कि तुम्हें इस बात का कुछ भी खयाल नहीं है ! मुझे विश्वास था कि तुमसे कभी कोई काम धर्म के विरुद्ध न हा सकेगा। कम-मुझमें आपने कौन सी बात धर्म-विरुद्ध पाई ? कुमार-यही कि तुम इस तरह एकान्त में धैठ कर मुझसे बातें कर रही हो इससे भी बढ़ कर वह बात जो अभी तुमन अपनी जुबान से क्यूल की है कि तुमसे कभी अलग न होऊँगी । क्या यह धर्म विरुद्ध नहीं है ? क्या तुम्हा! पति इस यात को जानकर भी तुम्हें पतिव्रता कहेगा? कम-कहगा और जरूर कहेगा अगर न कहे तो इसमें उसकी भूल है। उसे निश्चय है और आप सच समझिए कि कमलिनी ग्राण दे देना स्वीकार करेगी परन्तु धर्म-विरुद्ध पथ पर चलना कदापि नहीं आपको मरी नीयत पर ध्यान देना चाहिए दिल्लगी क कामों पर नहीं क्योंकि मैं ऐयारा भी हूँ। यदि मेरा पति इस समय यहाँ आ जाय तो आपका मालूम हा देवकीनन्दन खत्री समग्र ९०६