पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१५

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६ जाय कि मुझ पर वह जरा भी शक नहीं करता और मेरा इस तरह बैठना उस कुछ भी नहीं गढाता। कुमार-( कुछ सोचकर ) ताज्जुब हे ! कम-अभी क्या आगे आपको और भी ताज्जुब होगा । इतना कहकर कमलिनी ने कुमार की कलाई पकड ली और अपनी तरफ खींच कर कहा पहिल आप अपनी जगह पर आ कर बैठ जाइये तो मुझसे बात कीजिए। कुमार-नहीं-नहींकमलिनी तुम्हें एसा उचित नहीं है। दुनिया में धर्म से बढ कर और काई वस्तु नहीं है अतएव तुम्हें भी धर्म पर ध्यान रखना चाहिए अब तुम स्वतन्त्र नहीं हो पराये की स्त्री हो । कम-यह सच है परन्तु मै आपसे पूछती हूँ कि यदि मेरी शादी आपके साथ होती तो क्या मैं आनन्दसिह से हॅमने बोलने या दिल्लगी करने लायक न रहती? कुमार-बेशक उस हालत में तुम आनन्द से हस बोल और दिल्लगी भी कर सकती थी क्योंकि यह बात हम लोगों में लौकिक व्यवहार के ढग पर प्रचलित है। कम-बस तो में आपसे भी उसी तरह हॅस बोल सकती हूँ और ऐसा करने के लिए मेरे पति ने मुझे आज्ञा दे दी है मैं उनका पत्र आपको दिखा सक्ती हूँ इसलिए कि मरा आपका नाता ही ऐसा है एक नहीं बल्कि तीन-तीन नाते हैं । इन्द्र-सा कैसा कम-सुनिए में कहती हूँ। एक ता मैं किशोरी का अपनी बहिन समझती हूँ अतएत आप मेरे बहनोई हुए कहिए हाँ। कुमार-यह कोई बात नहीं है क्योंकि अभी किशारी की शादी मेरे साथ नहीं हुई है। कम-खैर जाने दीजिए मै दूसरा और तीसरा नाता बताती हूँ। जिनके साथ मेरी शादी हुई है वे राजा गोपालसिह के भाई है इसके अतिरिक्त लक्ष्मीदेवी की मैं छोटी बहिन हूँ अतएव आपकी साली भी हुई। कुमार-(कुछ सोचकर ) हाँ इस बात स तो मै कायल हुआ मगर तुम्हारी नीयत में किसी तरह का फर्क न आना चाहिए। कम-इससे आप वफिक्र रहिए मै अपना धर्म किसी तरह नहीं बिगाड सकती और न दुनिया में काई ऐसा पैदा हुआ है जो मेरी नीयत विगाड सके। आइए अब अपन ठिकान पर बैठ जाइए। लाचार कुँअर इन्द्रजीतसिह अपने ठिकाने पर जा बैठे और पुन, बात-चीतकरने लगे मगर उदास बहुत थे और यह बात उनके चेहरे से जाहिर होती थी। यकायक कमलिनी ने मसखरेपन के साथ हॅस दिया जिससे कुमार को खयाल हो गया कि इसन जो कुछ कहा सब झूठ और केवल दिल्लगी के लिए था मगर साथ ही इसके उनके दिल का खुटका साफ नहीं हुआ। कम--अच्छा आप यह बताइये कि तिलिस्म की कैफियत देखने के लिए राजा साहब तिलिस्म के अन्दर जायेंगे या नहीं? कुमार-जरुर जायेंगे। कम-कब? कुमार-सो मैं ठीक नहीं कह सकता शायद कल या परसों ही जॉय कहते थे कि तिलिस्म के अन्दर चल कर देखने का इरादा है। इसके जवाब में भाई गोपालसिह ने कहा कि जरुर और जल्द चल कर देखना चाहिए । कम-तो क्या हम लोगों को साथ ले जायेंग? कुमार-सो मै कैसे कहूँ? तुम गांपाल भाई से कहो वह इसका बन्दोबस्त जरूर कर देंगे, मुझे तो कुछ कहते शर्म मालूम होगी। कम-तो तो ठीक है अच्छा में कल उनसे कहूँगी। कुमार-मगर तुम लोगों के साथ किशोरी भी अगर तिलिस्म के अन्दर जाकर वहाँ की कैफियत न देखेगी तो मुझे इस बात का रज जरुर होगा। कम-यात तो वाजिब है मगर वह इस मकान में तभी आवेंगी जब उनकी शादी आपके साथ हो जायगी ओर इसीलिए वह अपने नाना के डेरे में भेज दी गई है। खैर तो आप इस मामले को तब तक के लिए टाल दीजिएजब तक आपकी शादी न हो जाय । कुमार-मै भी यही उचित समझता अगर महाराज मान जायें तो। कम--या आप हम लोगों को फिर दूसरी दफे ल जाइयेगा । चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २१ ९०७