पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१७

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art घोडे पर सवार महाराज सुरन्दसिह राजा वीरेन्द्रसिह जीतसिह गोपालसिह इन्दजीतसिह और आनन्दसिह तथा पैदल तेजसिह देवीसिह भूतनाथ पडित बद्रीनाथ रामनारायण पन्नालाल वगैरह अपने ऐयार लोग जा रहे थे। तिलिस्म के अन्दर मिले हुए कैदी अर्थात् नकाबपोश लोग तथा भैरोसिह और तारासिह इस समय साथ न थे। इस समय देवीसिह से ज्याद भूतनाथ का कलेजा उछल रहा था और वह अपनी स्त्री का असली भेद जानन के लिए बेताब हो रहा था। जब से उस इस बात का पता लगा कि वे दोनों सर्दार पकाबपोश यही दोनों कुमार हैं तथा उस विचित्र मकान के मालिक भी यही है तब से उसके दिल का खुटका कुछ कम तो हो गया मगर खुलासा हाल जानने और पूछने का मौका न मिलन के सवब उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई थी। वह यह भी जानना चाहता था कि अब उसकी स्त्री तथा लडका हरनामसिह किस फिक्र में है। इस समय जब वह फिर उसी ठिकाने जा रहा था जहाँ अपनी स्त्री की बदौलत गिरफ्तार होकर अपने लडके का विचित्र हाल देखा था तब उसका दिल और बैचेन हो उठा था, मगर साथही इसके उसे इस बात की भी उम्मीद हो रही थी कि अब उसे उसकी स्त्री का हाल मालूम हो जायगा या कुछ पूछने का मौका ही मिलेगा। ये लागधीरे-धीरे बातचीत करते हुए उसी खोह या सुरग की तरफ जा रहे थे। पहर मर दिन से ज्यादे न चढा होगा जय ये लोग उस ठिकाने पहुंच गए। महाराज सुरेन्द्रसिह और बीरेन्द्रसिह वगैरह घोडे पर से नीचे उतर पड़े साईसों ने घोड़े थाम लिए और इसके बाद उन सभों ने सुरग के अन्दर पैर रक्खा । इस सुरग वाले रास्ते का कुछ खुलासा हाल हम इस सन्तति के उन्नीसवें भाग में लिख आये हैं जब भूतनाथ यहाँ आया था, अब पुन दोहराने की आवश्यकता नहीं जान पडती हॉ इतना लिख देना जरूरी जान पड़ता है कि दोनों कुमारों ने सभों को यह बात समझा दी कि यह रास्ता बन्द क्यों कर हो सकता है। बन्द होने का स्थान वही चबूतरा था जो सुरग के बीच में पड़ता था। जिस समय ये लोग सुरगतै करके मैदान में पहुँचे सामने वही छोटा बॅगला दिखाई दिया जिसका हान हम पहिले लिख चुके हैं। इस समय उस बगले के आगे वाले दालान में दो नकाबपोश औरतें हाथ में तीर कमान लिए टहलती पहरा दे रही थी जिन्हें देखते ही खास करके भूतनाथ और देवीसिह को बडा ताज्जुब हुआ और उनके दिल में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगी। मूतनाथ का इशारा पाकर देवीसिह ने कुँअर इन्द्रजीतसिह से पूछा 'ये दोनों नकाबपोश औरतें कौन है जो पहरा दे रही है? इसके जवाब में कुमार तो चुप रह गए मगर महाराज सुरेन्द्रसिह ने कहा इसके जानने की तुम लोगों को क्या जल्दी पड़ी हुई है ? जो कोई होंगी सब मालूम ही हो जायगा ! इस जवाब ने देवीसिह और भूतनाथ को देर तक के लिए चुप कर दिया और विश्वास दिला दिया कि महाराज को इनका हाल जरूर मालूम है। जय उन औरतों ने इन सभों को पहिचाना और अपनी तरफ आते दखा तो बंगले के अन्दर घुसकर गायब हो गई तब तक ये लोग भी उस दालान में जा पहुंचे। इस समय भी यह बॅगला उसी हालत में था जैसा कि भूतनाथ और देवीसिह ने देखा था। हम पहिले लिख चुके हैं और अब भी लिखते हैं कि यह बेंगला जैसा बाहर से सादा और साधारण मालूम होता था वैसा अन्दर से न था और यह बात दालान में पहुंचने के साथ ही सभों को मालूम हो गई। दालान की दीवारों में निहायत खूबसूरत और आला दर्ज की कारीगरी का नमूना दिखाने वाली तस्वीरों को देख कर सब कोई दग हो गए और मुसौवर के हाथों की तारीफ करने लगे। ये तस्वीरें एक निहायत आलीशान इमारत की थीं और उसके ऊपर बडे बर्ड हरफों में यह लिखा हुआ था - यह तिलिस्म चुनारगढ के पास ही एक निहायत खूबसूरत जगल में कायम किया गया है जिसे महाराज सुरेन्द्रसिह के लड़के वीरेन्द्रसिह तोड़ेंगे। इस तस्वीर को दखते ही सभों को विश्वास हो गया कि वह तिलिस्मी खंडहर जिसमें तिलिस्मी बगुला था और जिस पर इस समय निहायत आलीशान इमारत बनी हुई है पहिले इसी सूरत शक्ल में था जिसे जमाने के हेर-फेरने अच्छी तरह बर्वाद करके उजाड और भयानक बना दिया। इमारत की उस बडी और पूरी तस्वीर के नीचे उसके भीतर वाले छोटे-छोटे टुकडे भी बना कर दिखलाए गए थे और उस बगुले की तस्वीर भी बनी हुई थी जिसे राजा चीरेन्द्रसिह ने बखूबी पहिचान लिया और कहा 'वेशक अपने जमान में यह बहुत अच्छी इमारत थी। सुरेन्द-यद्यपि आजकल जो इमारत तिलिस्मी खंडहर पर बनी है और जिसके बनवाने में जीतसिह ने अपनी तबीयतदारी और कारीगरी का अच्छा नमूना दिखाया है बुरी नहीं है मगर हमें इस पहिली इमारत का ढंग कुछ अनूठा और सुन्दर मालूम पडता है। जीत-यशक ऐसा ही है। यदि इस तस्वीर को मैं पहिले देखे हुए होता तो जरूर इसी ढग की इमारत बनवाता । चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २१ ९०९