पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गए है। इस तिलिस्म का दारोगा असल में इन्ददव है, और आज के पहिले भी इसी के बुजुर्ग लोगदारोगा होते आए है। सुरेन्द्र-यह तुमने बड़ी खुशी की बात सुनाई मगर अफसास यह है कि इन्द्रदेव ने हमें इन बातों की कुछ मी खबरन की। आनन्द-अगर इन्द्रदेव ने इन सब बातों को आपसे छिपाया तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है तिलिस्मी कायदे के मुताधिक एसा हाना ही चाहिए या ! सुरेन्द-ठीक है ता मालूम हाता है कि यह सब सामान तुम्हारी खातिरदारी के लिए इन्ददेव की आज्ञानुसार किया गया है। आनन्द-जी हाँ उसके आदमियों की जुबानी मैन भी यही सुना है। इसके बाद बडी देर तक य लोग इन तस्वीरों को दखते ओर ताज्जुब भरी बातें करते रहे और फिर आगे की तरफ यद। जब पहिले भूतनाथ और देवीसिह यहाँ आए थे तब हम लिख चुके हैं कि इस कमरे में सदर सर्वाजे के अतिरिक्त और भी तीन दर्वाजे थे-इत्यादि। अस्तु उन दोनों एयारों की तरह इस समय भी सभी को साथ लिए हुए दोनों कुमार दाहिने तरफ वाले दर्वाज के अन्दर गए और घूमते हुए उसी बहुत बडे और आलीशान कमरे में पहुंचे जिसमें पहिले भूतनाथ और देवीसिह ने पहुंच कर आश्चर्य भरा तमाशा देखा था। इस आलीशान कमरे की तस्वीरें खूबी और खूबसूरती में सब तस्वीरों से वढी-चढी थीं तथा दीवारों पर जगल मैदान पहाड,खाह दरे झरने शिकारगाह तथा शहरपनाह किले मोर्चे और लडाई इत्यादि की तस्वीरें बनी हुई थी जिन्हें सब कोई गौर और ताज्जुब के साथ दखन लगे। सुरेन्द-(एक किले की तरफ इशारा करके ) यह तो चुनारगढ किले की तस्वीर है। इन्द्रजीत-जी हाँ ( उँगली का इशारा करके ) और यह जमानिया के किले तथा खास बाग की तस्वीर है। इसी दीवार में से वहाँ जाने का भी रास्ता है। महाराज सूर्यकान्त के जमाने में उनके शिकारगाह और जगल की यह सूरत थी। वीरेन्द्र-और यह लडाई की तस्वीर कैसी है? इसका क्या मतलब है? इन्दजीत इन तत्वीरों में बडी कारीगरी सर्च की गई है। महाराज सूर्यकान्त ने अपनी फौज को जिस तरह की कवायद और व्यूह-रचना इत्यादि का ढग सिखाया था वे सब बात इन तस्वीरों में भरी हुई हैं। तीव करने से ये संव तस्वीरे चलती-फिरतो और काम करती नजर आएगी और साथ ही इसके फौजी बाजा भी बजता हुआ सुनाई देगा अर्थात् इन तस्वीरों में जितन बाजे वाले हैं वे सब भी अपना अपना काम करते हुए मालूम पडेंगे। परन्तु इस तमाशे का आनन्द रात को मालूम पड़ेगा दिन का नहीं। इन्ही तस्वीरों के कारण इस कमरे का नाम व्यूह-मण्डल रक्खा गया है वह देखिए ऊपर की तरफ बडे हरफों में लिखा हुआ है। सुरेन्द-यह बहुत अच्छी कारीगरी है। इस तमाशे को हम जरूर देखेंगे बल्कि और भी कई आदमियों को दिखाए मे। इन्द्र-बहुत अच्छा रात हा जाने पर मैं इसका बन्दावस्त करूँगा तब तक आप और चीजों को देखें। य लाग जिस दर्याजे से इस कमरे में आये थे उसके अतिरिक्त एक दर्वाजा ओर भी था जिस राह से समों को लिए दोनों कुनार दूसर कमरे में पहुंचे। इस कमरे की दीवार विल्कुल साफ थी अर्थात उस पर किसी तरह की तस्वीर बनी हुई न थी। कमरे क वीचालीच दो चबूतर सगमर्मर के बने हुए थ जिसमें एक खाली था और दूसरे चबूतरे के ऊपर सफेद पत्थर की एक खूबसूरत पुतली बैठी हुई थी। इस जगह पर ठहर कर कुँअर इन्द्रजीतसिह ने अपने दादा और पिता की तरफ दखा और कहा 'नकायपाशों की जुबानी हम लागों का तिलिस्मी-हाल जो कुछ आपने सुना है वह ता याद ही हागा अस्तु हम लोग पहिली दफे तिलिस्म स बाहर निकलकर जिस सुहावनी घाटी में पहुंचे थे वह यही स्थान है। इसी चबूतर के अन्दर से हम्लाग बाहर हुए थे। उसू 'रिक्तगन्य की बदौलत हम दोनों नाई यहाँ तक तो पहुँच गए मगर उसके बाद इस चबूतर वालोनिनिस्म कोखोल न सके हॉ इतना जरूर है कि उस रिक्तगम्थ की ग्दौलत इस चबूतर में स (जिस पर एक पुतली बैठी हुई थी उसकी तरफ इशारा करके ) एक दूसरी किताब हाथ लगी जिसकी बदौलत हम लोगों ने उस चबूतरे बाल तिलिस्म को खाला और उत्ती राह स आपकी सेवा में जा पहुंचे। आप सुन चुके हैं कि जब हम दोनों भाई राजा गोपालसिह को मायारानी की कैद से छुडाकर जमानिया के खास बाग द्राले दवमन्दिर में गये थे तब वहाँ पहिले आनन्दसिह तिलिस्म के फन्दे में फंस गये थ उन्हें छुडान के लिए जब मैं भी उनी गडह या कूएँ में कूद पडा ता चलता-चलताएक दूसर दाग में पहुंचा जिसकीचा-बीच में एक मन्दिर था। उस मन्दिर पाल तिलिम का जब मैने तोडा ता वहाँ एक पुतली के अन्दर काई चमकती हुई चीज मुझ मिली।

  • दखिय चन्द्रकान्ना सन्तति बीसदा भाग नौवॉ दयान।

देखिये दसवा भाग पहिला बयान । चन्द्रकान्ता सन्तति भाग २१ ९११