पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दि जिस पर एक बेशकीमत पोशाक लटक रही थी उस पर एक टुकड़ा सफेद कपड़े का सीया हुआ था और उस टुकड़े पर यह लिखा था- यह भूदेवसिह अपने का बड़ा ही वहादुर लगाता था।' इसके बाद एक दूसरी पोशाक के पास गए जो किसी जमींदार की मालूम पड़ती थी और उसके साथ भी तुफेद कपडे का टुकडा सीया हुआ था और उस पर यह लिखा था , इसे अपनी जमीदारी का बड़ा ही घमण्ड था। किसी स उरता ही न था और अपने को जालिमसिह के नाम से मशहूर कर रखा था। इस पोशाक के बगल ही में एक जनानी साड़ी लटक रही थी और उस पर यह लिखा हुआ था, यह चन्द्रावती रनबीरसिह को अपनी गाद स उतारती ही न थी। इस लिखापट ने रनबीरसिह के गुस्से के साथ वह काम किया जो घी भभकती हुई आग के साथ करता है मगर क्रोध का मौका न जानकर उन्होंने रडी कोशिश से अपने को सम्हाला तथा फिर और किसी पोशाक के पास जान का इरादा न किया इतने ही में वह आवाज फिर सुनाई दी जिसे सुन कर रनवीरसिह घेताय हुए थे मगर अबकी दफे शब्द बदले हुए थे अर्थात कहन वाले न यह कहा- हाय कुसुन तर साथ किसी न दगा नहीं की ! वीरसिंह को निश्चय हा गया कि इन शब्दों का कहने वाला भी वही है क्योंकि बनिस्थत पहिले के यह आवाज कुछ पास मालूप हुई रनवीरसिह का ध्यान जमीन की तरफ गया और एक तहखाने के दर्ज पर निगाह पड़ी जा कवल जजीर के सहारे बन्द था। रनधीरसिह ने उस दर्वाजे का खाला ता नीच उतरन के लिय सीढ़ियों दिखाई दी हाथ में चिराग लिय हुए नीव (तहखान मे) र गए। यह तहखाना वास्तव में कैदखाना था क्योंकि यहाँ लोह के छडों से बनी हुई एक कोठरी के अन्दर उदास सुस्त और हथकी बेड़ी से बेबस एक कैदी पर रनवीरसिह की निगाह पड़ी और साथ ही इसके यह भी दिखाई दिया कि उस कैदखाने में आने जाने के लिय एक दूसरी राह भी है जिसका अधपुला दर्वाजा सामने की तरफ दिखाई दे रहा था। कैदी के ऊपर रनबीरसिह की निगाह पड़ने के पहिले ही कैदी की निगाह रनवीरसिह पर पड़ी क्योकि कैदखान का दर्वाजा खुलने की आहट से चौक कर यह आने वाले को देखने के लिय पहिले ही से तैयार था। कैदी की अवस्था इस समय बहुत ही बुरी हो रही थी, सर और दाढ़ी के बाल बढे रहने और कैद की तकलीफ बहुत दिनों तक उठाने के कारण उसकी उम्र का अन्दाजा करना इस समय बहुत ही कठिन है उसकी बड़ी बड़ी आखें भी इस समय गड़हे के अन्दर घुसी हुई थी और शरीर के ऊपर अन्दाज से ज्यादे मैल चढी हुई थी इतने पर भी रनवीरसिह ने उस कैदी को देखने के साथ ही पहिचान लिया और कैदी ने भी इनको गहरी निगाह स देखन में किसी तरह की त्रुटि नहीं की । रनवीरसिह ने जगला खोला और अन्दर जा कर तेजी के साथ कैदी के पैरों पर गिर पड़े बोलने के लिये उद्योग किया मगर रुलाई ने गला दबा दिया, उधर उस कैदी ने मुहय्यत से रनबीरसिह के सिर पर हाथ फेरा ही था कि सिर में एक छोटा सा गडहा पाकर चौक उठा और बोला, यद्यपि तूने रगकर अपना चेहरा और बदन विगाड़ रक्या है तथापि यह गडडा और मेरा दिल गवाही दता है कि तू मरा प्यारा पुत्र रनवीरसिह है! है. है और अवश्य यही है इतना ही में पीछे से आवाज आई है है वशक ही है सतगुरु देवदत के नाम से धोखा देनवाला यही रनवार है। भला कम्बख्त अब जाता कहाँ है ॥" रनबीरसिह ने चौक कर पीछे की तरफ देखा तो उसी सर्दार पर निगाह पड़ी जो इस जगह और यहाँ के रहने वालों का मालिक था। उनतीसवां बयान जिस समय रनवीरसिह ने चौंककर पीछे की तरफ देखा और उस सर पर निगाह पड़ी जो वहाँ के रहने वालों का मालिक था तो उनका क्रोधचौगुना बढ़ गया। यद्यपि यह ऐसा मौका था कि देखने के साथ ही रनबीरसिह उससे डर जाते मगर नहीं, डरके बदले में कोध से उनकी भुजा फड़क उठी क्योंकि उनका प्यारा बाप जो न मालूम कितने दिनों से दुख भोग रहा था कैदियों की तरह बेयस उनके सामने मौजूद था और जिसने उनके बाप को कैद कर रक्खा था और हर तरह का दुख दिया था उसने भी माफी मांगने के बदले में धमकी की आवाज दी थी। इस समय रनबीरसिह ने जितनी तेजी और फुर्ती दिखाई उससे ज्यादे कोई आदमी दिखा नहीं सकता था। उनके दिल में क्रोध के साथ ही साथ इस खयाल ने भीतुरन्त जगह पकडली कि-"कहीं यह सार इस जगले वाली कोठरी का दर्वाजा बाहर से बन्द करके मेरे पिता की तरह मुझे भी बेबस और मजबूर न कर दे।" अस्तु रनवीरसिह बिजली की तरह लपक कर कोठरी के बाहर निकल आये और आते ही उन्होंने उस सर्दार के गले में हाथ डाल दिया । यद्यपि वह सर्दार ताकतवर और बहादुर था मगर इस समय रनवीरसिह के सामने उसके बलकौशल ने उसका कोई साथ न दिया. यहाँ तक कि वह म्यान से तलवार भी न निकाल निन्दन खत्री समग ११००