पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२४

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को क्रोध भी चढ़ आया और लाल-लाल आखें करके उन औरतों की तरफ देखने लगे। उन्हीं के साथ ही साथ और लोगों ने भी ताज्जुब के साथ उन औरतों को देखा। इस समय उन दोनों औरतों का चेहरा नकाब से खाली था मगर भूननाथ और देवीसिह के चेहरे पर निगाह पहले ही उन दोनों ने आचल से अपना चेहरा छिपा लिया और पलटकर पुन उसी आलमारी के अन्दर जा लोगों की निगाह से गायब हो गई। उनकी इस करतूत ने भूतनाथ और देवीसिंह के क्रोध को और भी बढा दिया। आठवाँ बयान अब हम पीछे की तरफ लौटते है और पुन उस दिन का हाल लिखते है जिस दिन मझराज सुरेन्द्रसिह और वीरेन्द्रसिह वगैरह तिलिस्मी तमाशा देखने के लिए रवाना हुए है। हम ऊपर के बयान में लिख आये है कि उस समय महाराज और कुमार लोगों के साथ भैरोसिह और तारासिह न थे अर्थात वे दानों घर ही पर रह गए थे. अस्तु इस समय उन्हीं दानों का हाल लिखना बहुत जरूरी हो गया है। महाराज सुरेन्द्रसिह, बीरेन्द्रसिह, कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह वगैरह के चले जाने बाद भैरोसिंह अपनी माँ से मिलन के लिए तारासिह को साथालए हुए महल में गये। उस समय चपला अपनी प्यारी सखी चम्पा के कमरे में बैठी हुई धीरे-धीरे कुछ बातें कर रही थी जो भैरोसिह और तारासिह को आते देख चुप हो गई और इन दोनों की तरफ देख कर बोली. 'क्या महाराज तिलिस्मी तमाशा देखने के लिए गए ?" भैरोसिह-हाँ अभी थोड़ी ही देर हुई है कि वे लोग उसी पहाड़ी की तरफ रवाना हो गए। चपला (चम्पा से ) तो अब तुम्हें भी तैयार हो जाना पड़ेगा। चम्मा-जभर, मगर तुम भी क्यों नहीं चलती? चपला-जी तो मेरा ऐसा ही चाहता है मगर मामा साहब की आज्ञा हो तब तो। चम्पा-जहाँ तक मैं खयाल करती हूँ वे कभी इनकार न करेंगे। बहिन जब से मुझे यह मालूम हुआ कि इन्द्रदेव • तुम्हारे मामा होते है तब से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। चपला-मगर मेरी खुशी का तुम अन्दाजा नहीं कर सकती खैर इस समय असल काम की तरफ ध्यान देना चाहिए। ( भैरोसिह और तारासिह की तरफ देखकर ) कहो तुम लोग इस समय यहाँ कैसे आये ? तारा-(चपला के हाथ में एक पुर्जा दकर ) जो कुछ है इसी से मालूम हो जायगा। चपला ने तारासिह के हाथ से पुर्जा लेकर पढा और फिर चम्पा के हाथ में देकर कहा, अच्छा जाओ कह दो कि हम लोगों के लिए किसी तरह का तरदुद न करें मैं अभी जाकर कमलिनी और लक्ष्मीदेवी से मुलाकात करके सब बातें कर लेती हूँ।' 'बहुत अच्छा ' कहकर भैरोसिह और तारासिह वहाँ से रवाना हुए और इन्द्रदेव के डेरे की तरफ चले गये। जिस समय महाराज सुरेन्द्रसिह वगैरह तिलिस्मी कैफियत देखन के लिए रवाना हुए हैं उसके दो या तीन घडी बाद घोड़े पर सवार इन्द्रदेव भी अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए उसी पहाडी की तरफ रवाना हुए मगर ये अकेले न थे बल्कि और भी तीन नकाबपोश इनके साथ थे। जब ये चारों आदमी उस पहाडी के पास पहुंचे तो कुछ देर के लिए रुके और आपुस में यो बात-चीत करने लगे- इन्द्रदेव-ताज्जुब है कि अभी तक हमारे आदमी लोग यहां नहीं पहुंचे। दूसरा-और जब तक वे लोग न आवेंगे तब तक यहाँ अटकना पड़ेगा। इन्द्रदेव-देशक । तीसरा-व्यर्थ यहाँ अटके रहना तो अच्छा न होगा। इन्द्रदेव-तब क्या किया जायगा? वीसरा-आप लोग जल्दी से वहाँ पहुँचकर अपना काम कीजिये और मुझे अकेले इसी जगह छोड दीजिए मैं आपके आदमियों का इन्तजार करुगा और जब वे आ जायेंगे तो सब चीजें लिए आपके पास पहुंच जाऊँगा। इन्द्रदेव-अच्छी बात है मगर उन सब चीजों को क्या तुम अकेले उठा लोगे? तीसरा-उन सब चीजों की क्या हकीकत है कहिए तो आपके आदमियों को भी उन चीजों के साथ पीठ पर लाद कर लेता आऊँ। इन्द्र-शाबाश । अच्छा रास्ता तो न भूलोगे? तीसरा-कदापि नहीं अगर मेरी आँखों पर पट्टी बाँध कर भी आप वहाँ तक ले गये होते तब भी मैं रास्ता न भूलता देवकीनन्दन खत्री समग्र ९१६