पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२५

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8 और टटोलता हुआ वहाँ तक पहुँच ही जाता। इन्द्रदेव-(हँसकर ) बेशक तुम्हारी चालाकी के आगे यह कोई कठिन काम नहीं है अच्छा हम लोग जाते हैं तुम सब चीजें लकर हमारे आदमियों को फौरन वापस कर देना ! इतना कहकर इन्ददेव ने उस तीसरे नकाबपोश को उसी जगह छोडा और दो नकाबपोशों को साथ लिए हुए आगे की तरफ बढे। जिस सुरग की राह से राजा बीरेन्द्रसिह वगैरह उस तिलिस्मी बँगले में गये थे उनसे लगभग आध कोस उत्तर की तरफ हटकर और भी एक सुरग का छोटा सा मुहाना था जिसका बाहरी हिस्सा जगली लताओं और बेलों से बहुत ही छिपा हुआ था। इन्द्रदेव दोनों नकाबपोशों को साथ लिए तथा पेडों की आड देकर चलते हुए इसी दूसरी सुरंग के मुहाने पर पहुंचे और जगली लताओं को हटाकर बड़ी होशियारी से इस सुरग के अन्दर घुस गये। नौवॉ बयान देवीसिह का चम्पा की सचाई पर भरोसा था और वह उसे बहुत ही नेक तथा पतिव्रता भी समझते थे जिस पर चम्पाने देवीसिह के चरणों की कसम खा कर विश्वास दिला दिया था कि वह नकाबपोशों के घर में नहीं गई और सवच न था कि देवीसिह चम्पा की बात झूठ समझते। इस जगह यद्यपि देवीसिह पुन चम्पा को देखकर क्रोध में आ गये मगर तुरन्त ही नीचे लिखी बातें विचारकर ठण्डे हो गये और सोचने लगे- क्या मुझ पहिचानने में धोखा हुआ? नहीं-नहीं. मेरी आँखें ऐसी गन्दी नहीं हैं। तो क्या वास्तव में वह चम्पा ही थी जिसे अभी मैंने देखा था या पहिले भी देखा था यह भी नहीं हो सकता !चम्पा ऐसी नेक औरत कसम खाकर मुझसे झूठ भी नहीं बोल सकती। हॉउसने क्या कसम खाई थी ? यही कि 'मैं आपके चरणों की कसम खाकर कहती हूँ कि मुझे कुछ भी याद नहीं कि आप कब की बात कर रहे हैं । ये ही उसके शब्द हैं मगर यह कसम तो ठीक नहीं। यहाँ आने के बारे में उसने कसम नहीं खाई बल्कि अपनी याद के बारे में कसम खाई है, जिसे ठीक नहीं भी कह सकते। तो क्या उसने वास्तव में मुझे भूलभुलैये में डाल रक्खा है ? खैर यदि एसा भी हो तो मुझे रज न होना चाहिये क्योंकि वह नेक है. यदि ऐसा किया भी होगा तो किसी अच्छे ही मतलब से किया होगा या फिर कुमारों की आज्ञा से किया होगा। ऐसी बातों को सोचकर देवीसिह ने अपने क्रोध को ठण्डा किया मगर भूतनाथ की बेचैनी दूर नहीं हुई। वे दोनों औरतें जव आलमारी के अन्दर घुसकर गायब हो गई तब हमारे दोनों कुमार तथा महाराज सुरेन्द्रसिह और वीरेन्द्रसिह ने भी उसके अन्दर पैर रक्खा। दर्दाजे के साथ दाहिनी तरफ एक तहखाने के अन्दर जाने का रास्ता था जिसके बारे में दरियाफ्त करने पर इन्दजीतसिह ने बयान किया कि 'जमानिया जाने का रास्ता है तहखाने में उतर जाने के बाद एक सुरग मिलेगी जो वरावर जमानिया तक चली गई है । इन्द्रजीतसिह की बात सुन कर देवीसिह और भूतनाथ को विश्वास हो गया कि दोनों औरतें इसी तहखाने में उतर गई है जिससे उन्हें भागने के लिए काफी जगह मिल सकती है। भूतनाथ ने देवीसिह की तरफ देखकर इशारे से कहा कि 'इस तहखाने में चलना चाहिए मगर जवाब में देवीसिह ने इशारे से ही इनकार करके अपनी लापरवाही जाहिर कर दी। उस दीवार के अन्दर इतनी जगह न थी कि सब कोई एक साथ ही जाकर वहाँ की कैफियत देख सकते, अतएव दो तीन दफे करके सव कोई उसके अन्दर गये और उन सब पुरजों को देख बहुत प्रसन्न हुए जिनके सहारे वे तस्वीरें चलती-फिरती और काम करती थीं। जब सब कोई उस कैफियत को देख चुके तब उस दीवार का दर्वाजा बन्द कर दिया गया। इस काम से छुट्टी पाकर सब कोई इन्द्रजीतसिह की इच्छानुसार उस चबूतरे के पास आए जिस पर सुफेद पत्थर की खूबसूरत पुतली बैठी हुई थी। इन्द्रजीतसिह ने सुरेन्द्रसिह की तरफ देखकर कहा, 'यदि आज्ञा हो तो मैं इस दरवाजे को खोलूं और आपको तिलिस्म के अन्दर ले चलूँ । सुरेन्द्र हम भी यही चाहते हैं कि अब तिलिस्म के अन्दर चल कर वहॉ की कैफियत देखें मगर यह तो बताओ कि जब इस चबूतरे के अन्दर जाने याद हम यह तिलिस्म देखते हुए चुनारगढ वाले तिलिस्म की तरफ रवाना होंगे तो वहाँ पहुंचन में कितनी देर लगेगी? इन्द-कम से कम बारह घट। तमाशा देखने के सवब से यदि इससे ज्यादे देर हो जाय तो भी कोई ताज्जुब नहीं। सुरेन्द्र-रात हो जाने किसी तरह का हर्ज तो न होगा? प्त भाग२१ ९१७