पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

8. दसवॉ बयान यह दालान जिसमें इस समय महाराज सुरेन्दसिह वगैरह आराम कर रहे हैं, यनिरवत उस दालान के जिसमें ये लोग पहिले पहल पहुचे थे बड़ा और खूबसूरत बना हुआ था। तीन तरफ दीवार थी और बाग की तरफ तेरह खम्भे और महराव लगे हुए थे जिससे इसे बारहदरी भी कह सकते है। इसकी कुर्सी लगभग ढाई हाथ के ऊंची थी और इसके ऊपर चढने के लिए पांच सीदियों बनी हुई थी। बारहदरी के आगे की तरफ कुछ सहन छूटा हुआ था जिसकी जमीन (फश) सगमर्मर और सगमूसा के चौखठे पत्थरों से बनी हुई थी। वारहदरी की छत में मीनाकारी का काम बना हुआ था और तीनों तरफ की दीवारों में कई आलमारिया भी थीं। रात पहर भर से कुछ ज्याद जा चुकी थी। इस बारहदरी में जिसमें सब कोई आराम कर रहे थे, एक आलमारी की कार्निस के ऊपर मोमबत्ती जल रही थी जो देवीसिह ने अपने ऐयारी के बटुए में से निकालकर जलाई थी। किसी को नींद नहीं आई थी बल्कि सब कोई बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे। महाराज सुरेन्द्रसिह याग की तरफ मुह किये बैठ थे और उन्हें सामने की पहाडी का आधा हिस्सा भी जिस पर इस समय अन्धकार की बारीक चादर भी पड़ी हुई थी दिखाई दे रहा था। उस पहाडी पर यकायक मशाल की रोशनी देखकर महाराज चौके और सभी को उस तरफ देखने का इशारा किया। सभों ने उस रोशनी की तरफ ध्यान दिया और दोनों कुमार ताज्जुब के साथ सोचने लगे कि यह क्या मामला है? इस तिलिस्म में हमारे सिवाय किसी गैर आदमी का आना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है. तब फिर यह मशाल की रोशनी कैसी खाली रोशनी ही नहीं बल्कि उसके पास चार-पॉचआदमी भी दिखाई देत है हॉ यह नहीं जान पडता कि वे सब औरत है या मर्द। और लोगों के विचार भी दोनों कुमारों ही की तरह के थे और मशाल के साथ कई आदमियों को देखकर सभी ताज्जुब कर रहे थे। यकायक वह रोशनी गायब हो गई और आदमी दिखाई देने से रह गये मगर थोड़ी ही देर बाद वह रोशनी फिर दिखाई दी। अबकी दफ रोशनी और भी नीचे की तरफ थी और उसके साथ के आदमी साफ साफ दिखाई देते थे। गोपाल-(इन्द्रजीतसिह से) मै समझता था कि आप दोनों भाइयों के सिवाय कोई गैर आदमी इस तिलिस्म में नहीं आ सकता। इन्द्रजीत-मेरा भी यही खयालथा मगर क्या आप भी यहाँ तक नहीं आ सकते? आप तो तिलिस्म के राजा है। गोपाल-हॉ मै आ तो सकता हूँ मगर सीधी राह से और अपने को बचाते हुए वे काम में नहीं कर सकता जो आप कर सकते हैं परन्तु आश्चर्य तो यह है कि वे लोग पहाड़ पर से आते हुए दिखाई दे रहे हैं जहाँ से आने का रास्ता ही नहीं है। तिलिस्म बनाने वालों ने इस बात को जरूर अच्छी तरह विचार लिया होगा। इन्दजीत-देशक ऐसा ही है मार यहॉ पर क्या समझा जाय? मेरा खयाल है कि थोड़ी ही देर में वे लोग इस बाग में आ पहुंचेंगे। गोपाल-येशक ऐसा ही होगा (रूककर) देखिए रोशनी फिर गायब हो गई. शायद वे लोग किसी गुफा में घुस गये। कुछ देर तक सन्नाटा रहा और सब कोई बड़ गौर से उस तरफ देखते रहे उसके बाद यकायक बाग के पश्चिम तरफ वाले दालान में रोशनी मालूम होने लगी जो उस दालान के ठीक सामने था जिसमें हमारे महाराज तथा ऐयार लोग टिके हुए थे मगर पेड़ों के सवव से साफ नहीं दिखाई देता था दालान में कितने आदमी आए है और क्या कर रहे है। जब सभों को निश्चय हो गया कि वे लोगधीरे-धीरे पहाडों के नीचे उतरकर बाग के दालान या चारहदरी में आ गए है तब महाराज सुरेन्द्रसिह ने तेजसिह को हुक्म दिया कि जाकर देखो और पता लगाओ कि वे लोग कौन है और क्या कर गोपाल-(महाराज से) तेजसिहजी का वहॉ जाना उचित न होगा क्योंकि तिलिस्म का मामला है और यहाँ की बातों से ये बिल्कुल बेखबर है यदि आज्ञा हो तो कुँअर इन्दजीतसिह को साथ लेकर मैं जाऊँ। महाराज-ठीक है अच्छा तुम्हीं दोनों आदमी जाकर देखो क्या मामला है। वॉअर इन्द्रजीतसिह और राजा गोपालसिह वहाँ से उठे और धीरे-धीरेतथा पेडों की आड में अपने को छिपाते हुए उस दालान की तरफ रवाना हुए जिसमें राशनी दिखाई दे रही थी, यहाँ तक कि उस दालान अथवा बारहदरी के बहुत पास पहुँच गये और एक पेड की आड में खड़े होकर गौर से देखने लगे। देवकीनन्दन खत्री समग्र ९२०